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Lok Sabha Election 2024: पर्दे के पीछे गढ़ी जाती है चुनावी अभियान की पटकथा, जानिए कैसे काम करता है पार्टियों का 'वॉर रूम'

Lok Sabha Election 2024 चुनावी अभियान में नेताओं और पार्टियों की जो रणनीति सामने देखती है या फिर जो बयान दिए जाते हैं उसकी पटकथा पार्टियों के वॉर रूम में तैयार की जाती है। इसमें पेशेवर रणनीतिकार होते हैं जो नेताओं को सलाह देते हैं। जानिए कैसे काम करते हैं ये वॉर रूम और किस तरह ये जनमत को करते हैं प्रभावित।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 14 Apr 2024 05:00 AM (IST)
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सभी प्रमुख पार्टियों के लिए पर्दे के पीछे से पेशेवरों की टीम विमर्श का एजेंडा तय करती है।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। हेलीकॉप्टर में तेजस्वी यादव का मछली खाते हुए वीडियो वायरल हो या राहुल गांधी को राजनीति से ब्रेक लेने की प्रशांत किशोर की सलाह पर राज बब्बर की त्वरित प्रतिक्रिया या फिर राहुल गांधी के “शक्ति” पर वॉर के विरुद्ध भाजपा का प्रहार, सब वॉर रूम की रणनीति है।

नवरात्र के समय तेजस्वी के मछली खाने पर विवाद भी इसी का हिस्सा है। पर्दे के पीछे से पेशेवरों की टीम विमर्श का एजेंडा तय कर रही है। मुद्दे को उछाल रही है। नेता के व्यक्तित्व को निखार रही और मनमाफिक परिणाम का वादा भी कर रही है।

रणनीतिकारों के हवाले अभियान

लोकतंत्र में वोट की ताकत का महत्व है, लेकिन विगत एक दशक से जनमत को प्रभावित करने का तरीका ढूंढ लिया गया है। चुनाव अभियान को रणनीतिकारों के हवाले कर दिया गया है। ऐसे में चुनाव का मतलब अब प्रतिनिधि चुनने का अनुष्ठान नहीं रह गया है।

महायुद्ध की तरह हो गया है, जिसमें प्रत्यक्ष तौर पर कई मोर्चे होते हैं पर अहम मोर्चा पर्दे के पीछे के बाजीगर के हाथ में होता है। चुनाव की पूरी प्रक्रिया उसकी धुन पर ही नाचती है। इस सेवा के बदले उसे मोटी रकम दी जाती है। किसी-किसी दल में किंगमेकर भी मान लिया जाता है।

भाजपा में केवल सुझाव देने का काम

हालांकि भाजपा में ऐसे कथित किंगमेकर को अब तिलांजलि देकर उन्हें फेसीलिटेटर यानी मदद करने वाले की संज्ञा तक सीमित कर दिया गया है। रणनीति की जिम्मेवारी नेतृत्व के पास ही रखी गई है। हां, क्षेत्रवार अध्ययन करने, मुद्दे सुझाने एवं मीडिया में विज्ञापन आदि के लिए कुछ ऐजेंसी की सेवाएं जरूर ली गई हैं।

पार्टी के ही कुछ नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है कि इन एजेंसियों के सुझावों को राजनीतिक अनुभव से परखें। उसके बाद ही अमल में लाएं, लेकिन कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दल उनके इशारे पर काम को ही जीत का मंत्र मानते हैं। यह जरूर है कि इसके एवज में ये रणनीतिकार जितनी कीमत वसूलते हैं वह छोटे दलों के लिए मुश्किल हो गया है। खासतौर पर अगर वह दल लंबे समय तक सत्ता से बाहर हो।

कांग्रेस ने जताया भरोसा

कांग्रेस ने पुरानी लीक नहीं छोड़ी है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसने सुनील कानूगोलू की टीम को जिम्मेवारी दी थी। सफलता नहीं मिली, लेकिन कर्नाटक एवं हिमाचल के विधानसभा चुनाव की सफलता ने विश्वसनीयता बनाए रखी है। टीम में सौ से अधिक प्रोफेशनल हैं। प्राथमिक चिंता शीर्ष नेता पर हुए हमले को रोकना और प्रतिकार करना है।

हाल में प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी को असफल बताते हुए जब पांच वर्ष के लिए राजनीति से ब्रेक लेने की सलाह दी तो कांग्रेस के रणनीतिकार कानूगोलू की टीम ने प्रतिरोध के लिए राज बब्बर को आगे किया। उन्होंने तुरंत प्रतिक्रिया दी, “पीके के साथ मैंने काम किया है। बिना पैसे के वह मशवरा भी नहीं देते हैं। जरूर इस बयान के लिए भी उन्हें कहीं से पैसे मिले होंगे।” राज बब्बर का संकेत भाजपा की तरफ था।

तेजस्वी के आवास में वॉर रूम

राजद ने पटना में तेजस्वी यादव के आवास में वॉर रूम बना रखा है। रणनीति राज्यसभा सदस्य मनोज झा एवं संजय यादव तय करते हैं। संजय लंबे समय से तेजस्वी के सलाहकार हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयान को उछालकर लालू प्रसाद ने भाजपा पर जो बढ़त बनाई थी, उसके पीछे संजय की सलाह थी।

इस चुनाव में भी तेजस्वी ने अपने गठबंधन के साथी वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी के साथ मछली खाते हुए जो वीडियो वायरल किया वह संजय का ही सुझाव है। मल्लाह समाज में संदेश देने का प्रयास किया गया है कि मुकेश सहनी से पुरानी अदावत खत्म। अब हम एक हैं।

जदयू की कमान पूर्व आईएएस के पास

जदयू की प्रचार कमान पूर्व आईएस मनीष वर्मा संभाल रहे हैं। राज्यसभा सदस्य संजय झा का निर्देशन होता है। हालांकि लगभग 40 सदस्यों की एक टीम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के व्यक्तित्व को निखारने के लिए 365 दिन काम करती है।

इस बार उसका मार्गदर्शन मनीष वर्मा और संजय झा ही कर रहे हैं। जदयू की टीम में काम कर चुके राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार कहते हैं कि वोटरों को रिझाने-भरमाने के लिए मुद्दों का विश्लेषण और नए नारे गढ़ने के साथ-साथ विरोधियों का ट्रैक रिकॉर्ड देखकर उसके कमजोर पक्ष को उछाला जाता है।

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सर्वव्यापी हुई पीके की टीम

देश में पहली बार अत्यधिक व्यवस्थित और आक्रामक रणनीति के साथ चुनावी अभियान चलाने का श्रेय प्रशांत किशोर (पीके) को जाता है। उन्होंने 2014 में सिटीजंस फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (सीएजी) नाम से कंपनी बनाकर भाजपा के लिए काम किया।

नीतीश कुमार, ममता बनर्जी एवं के चंद्रशेखर राव (केसीआर) जैसे कई लोगों के लिए काम किया। बाद में इसी टीम के सदस्यों में से कई अलग-अलग ग्रुप बनाकर विभिन्न राज्यों में फैल गए। पीके ने 2015 में आई-पैक नाम की कंपनी बनाई।

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पीके के साथ काम कर चुके जालंधर के राबिन शर्मा अब शोटाइम कंसल्टिंग नाम से अलग कंपनी चला रहे हैं। अभी महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे गुट) के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी और मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी का मोर्चा भी संभाल रहे।

पीके की प्रारंभिक टीम में रहकर कभी भाजपा के लिए काम कर चुके सुनील कानूगोलू अब कांग्रेस को सेवा दे रहे हैं, जबकि आईपैक की कमान ऋषि राज सिंह, प्रतीक जैन एवं विनेश चंदेल के हाथ में है।

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