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Lok Sabha Election 2024: देश के 15 मुख्यमंत्रियों के लिए यह चुनाव रहा 'अग्नि परीक्षा', पार्टी के लिए प्रचार में झोंक दी पूरी ताकत

Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव के सभी चरणों का मतदान कल संपन्न हो गया। वोटों की गिनती 4 जून को होगी। यह चुनाव कई मुख्यमंत्रियों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा। जिन्होंने अपने राज्य की जिम्मेदारी संभालते हुए अन्य राज्यों में भी ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो किए। कई मुख्यमंत्रियों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। पढ़िए जागरण की खास रिपोर्ट...

By Satish Shrvistava Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 02 Jun 2024 11:49 AM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: इस लोकसभा चुनाव में 15 मुख्यमंत्रियों ने निभाई पूरी जिम्मेदारी।
सतीश चंद्र श्रीवास्तव, रायपुर। देश के 15 मुख्यमंत्रियों के लिए पद संभालने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है। इसने उन्हें राष्ट्रीय पहचान बनाने का अवसर दिया है। ऐसे में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, छत्तीसगढ़ के विष्णुदेव साय, राजस्थान के भजनलाल शर्मा, हरियाणा के नायब सिंह सैनी, पंजाब के भगवंत मान, उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी, हिमाचल प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुक्खू और झारखंड के चम्पाई सोरेन ने अपनी-अपनी पार्टियों के लिए पूरा जोर लगा दिया है।

इनके अलावा असम के हिमंत बिस्वा सरमा, महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे, गुजरात के भूपेंद्र भाई पटेल, तेलंगाना के रेवंत रेड्डी, पुडुचेरी के एन रंगास्वामी, मिजोरम के लाल दुहोमा और त्रिपुरा के माणिक साहा के लिए भी मुख्यमंत्री रहते यह पहला लोस चुनाव रहा।

डॉ. मोहन यादव की राष्ट्रीय स्तर पर बनी पहचान

यह चुनाव मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के लिए प्रतिष्ठा के प्रश्न के साथ नई पहचान बनाने का माध्यम भी बना। मध्य प्रदेश में तो उन्होंने सभी 29 लोकसभा सीटों पर सभा और रोड शो किए ही, अन्य राज्यों में भी प्रचार करने के लिए उनकी काफी मांग रही।

मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाते समय ही पार्टी ने संकेत दिए थे कि उनका उपयोग अन्य राज्यों में भी किया जाएगा। उन्होंने आठ राज्यों की 26 सीटों पर प्रचार किया। मध्य प्रदेश में 142 जनसभा, 55 रथ सभा, 56 रोड शो किए।

भाजपा का आदिवासी चेहरा बने विष्णुदेव साय

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय नक्सलवाद और मतांतरण के विरुद्ध ठोस कार्रवाई के कारण पांच महीने में ही चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। आदिवासी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु के बाद भाजपा ने प्रदेश के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें प्रस्तुत किया है।

प्रदेश की सभी 11 सीटों के साथ ही मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना में भी उन्होंने एक-एक दिन में तीन से चार सभाएं की। साय ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि आदिवासी भी सनातन का अंग हैं।

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भगवंत के सामने आप का ‘मान’ बचाने की चुनौती

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में आप ने 2022 में 92 विधायकों के साथ सरकार बनाई। प्रदेश की 13 सीटों पर चुनाव भी उनके चेहरे पर लड़ा जा रहा है। आबकारी घोटाले में आरोपित होने और जमानत लेकर प्रचार में जुटे अरविंद केजरीवाल के बाद वह पार्टी का प्रमुख चेहरा है।

ऐसे में केजरीवाल ने पंजाब में ‘संसद में भी भगवंत मान’ का नारा दिया है। यद्यपि मान को गृहक्षेत्र संगरूर में ही कांग्रेस के सुखपाल खैहरा और खालिस्तान समर्थक सिमरनजीत सिंह मान से कड़ी चुनौती मिल रही है।

हरियाणा में एकसाथ कई मोर्चों पर नायब बने सैनी

हरियाण के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के लिए यह चुनाव चुनौती भरा रहा। मनोहर लाल के राजनीतिक शिष्य सैनी के मुख्यमंत्री बनने के दो माह बाद ही लोकसभा चुनाव आ गया। मनोहर लाल द्वारा खाली की गई करनाल विस सीट से उपचुनाव लड़ने के साथ ही वह पूरे प्रदेश में भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में जमकर प्रचार करते रहे।

ओबीसी वर्ग के सैनी को भाजपा नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी दी। सहज प्रवृत्ति और कार्यकर्ताओं से बेहद अपनेपन के भाव से मिलने वाले सैनी बड़े ही नरम तरीके से गरम से गरम बात कहकर विपक्ष को निशाने पर लेने में कामयाब रहे हैं।

राजनीतिक गुरु मनोहर लाल से प्राप्त यह गुण लोगों को भी पसंद आ रहा है। सैनी और मनोहर लाल ने राज्य में 134 कार्यक्रम किए और राज्य से बाहर दो दर्जन से अधिक कार्यक्रम कर सैनी अब नायब की भूमिका में उभरे हैं।

हिमाचल में सुक्खू के सामने दोहरी चुनौती

सुखविंदर सिंह सुक्खू के हिमाचल का मुख्यमंत्री बनने के बाद इस पहले चुनाव का परिणाम ही बताएगा उनकी गारंटी पर लोगों ने कितना विश्वास किया। सुक्खू अधिकतर समय हिमाचल के हमीरपुर क्षेत्र में ही सक्रिय रहे परंतु रायबरेली लोकसभा सीट पर राहुल गांधी का चुनाव प्रचार करने भी गए। लोकसभा की चार सीटों के साथ विधानसभा की छह सीटों पर हो रहा उप चुनाव भी बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के छह विधायकों के बागी होने से यह सीटें खाली हुई हैं।

ऐतिहासिक निर्णय से पुष्कर सिंह धामी की धाक

ऐतिहासिक निर्णय से पुष्कर सिंह धामी की धाक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने दूसरे कार्यकाल में दो साल के भीतर ही ऐतिहासिक निर्णय लेकर न सिर्फ छाप छोड़ी, बल्कि देशभर में चर्चा के केंद्र में भी रहे। विशेष रूप से समान नागरिक संहिता की धामी सरकार की पहल नजीर बन गई है।

भाजपा ने भी अपने संकल्प पत्र में देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का इरादा जताया है। इससे धामी का राजनीतिक कद बढ़ा है और भाजपा ने भी लोकसभा चुनाव में उनका भरपूर उपयोग किया।

चम्पाई के सामने झामुमो का चेहरा बनने की चुनौती

झारखंड के मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के लिए राज्य की 14 लोकसभा सीटों के लिए हुआ लोकसभा चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन की अस्वस्थता और पूर्व मुख्यंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झामुमो की ओर से सबसे बड़े स्टार प्रचारक के तौर पर चम्पाई सोरेन ने ही मोर्चा संभाला। मुख्यमंत्री होने के नातेभी अपने गठबंधन (आइएनडीआइए) की जीत-हार उनके लिए प्रतिष्ठा का विषय है।

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