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Lok Sabha Election 2024: चुनावी अभियान में नजर आई विपक्षी दलों की एकजुटता, शुरूआत में लड़खड़ाहट, लेकिन बाद में पकड़ा तालमेल का ट्रैक

Lok Sabha Election 2024 लंबे चले चुनावी दौर में विपक्षी खेमे के शीर्ष नेताओं के बीच की राजनीतिक केमेस्ट्री भी परवान पर पहुंच गई। मतदान खत्म होने के बाद नतीजों को लेकर साझी रणनीति पर चलने की घोषणा में भी यही रंग नजर आया जो इस बात का संकेत है कि परिणाम के बाद भी विपक्ष भविष्य की राजनीतिक लड़ाई संगठित होकर लड़ना चाहता है।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 04 Jun 2024 06:57 AM (IST)
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Lok Sabha Election: विपक्ष के बीच चुनाव अभियान के दौरान बेहतर आपसी तालमेल दिखाई दिया।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के चार जून को आने वाले नतीजे चाहे जैसे रहें, पर इस सियासी मुकाबले में विपक्षी आईएनडीआईए के घटक दलों के बीच शुरुआती खींचतान को छोड़ दिया जाए तो पूरे चुनाव अभियान के दौरान बेहतर आपसी तालमेल दिखाई दिया।

लंबे चले चुनावी दौर के शिखर छूने के साथ ही विपक्षी खेमे के शीर्ष नेताओं के दरम्यान भी आपसी राजनीतिक केमेस्ट्री परवान पर पहुंच गई। सातों चरण का मतदान खत्म होने के बाद नतीजों को लेकर साझी रणनीति की राह पर चलने की घोषणा में भी यही रंग-रूप नजर आया है, जो इस बात का संकेत है कि चुनाव परिणाम के बाद भी विपक्ष भविष्य की राजनीतिक लड़ाई संगठित होकर लड़ने का इरादा रखता है।

लड़खड़ाता नजर आ रहा था गठबंधन

आईएनडीआईए के घटक दलों के बीच चुनावी जमीन के साथ राजनीतिक विमर्श की लड़ाई में एक-दूसरे के साथ खड़े होने की रणनीति ही रही कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु से लेकर दिल्ली जैसे राज्यों में चुनावी मुकाबला दमदार बना रहा, जबकि दिलचस्प यह रहा कि आम चुनाव की मार्च के मध्य में जब घोषणा की गई तब विपक्षी गठबंधन पूरी तरह लड़खड़ाता हुआ नजर आ रहा था।

सीट बंटवारे की लड़ाई उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इस मोड़ तक पहुंची, जहां सपा और राजद जैसे प्रमुख सहयोगी दल कांग्रेस को आंखे दिखाते हुए तालमेल तोड़ने की धमकी तक दे रहे थे। इसी तरह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना भी अधिक सीट लेने की जिद अंतिम समय तक नहीं छोड़ी, लेकिन पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन की शुरुआत होने के साथ ही मार्च के आखिर तक गठबंधन के दलों के बीच सीट बंटवारे का झगड़ा खत्म हुआ तो धीरे-धीरे विपक्षी दल अपनी-अपनी चुनावी संभावनाओं का समीकरण बनाने के लिए एक दूसरे के साथ आने लगे।

केजरीवाल की गिरफ्तारी बनी बुनियाद

दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शराब घोटाला मामले में गिरफ्तारी के बाद हुई रैली में आईएनडीआईए के सभी शीर्षस्थ नेता शामिल हुए और यहां से आपसी समन्वय की उनके बीच जो मजबूत बुनियाद पड़ी वह पूरे चुनाव अभियान के दौरान और मजबूत होती चली गई। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच उत्तर प्रदेश में सहयोग-समन्वय नीचे के कार्यकर्ता से लेकर दोनों दलों के नेतृत्व के स्तर पर दिखाई दिया।

राहुल-प्रियंका की हर चुनावी सभा में सपा के नेता-कार्यकर्ता मंच पर दिखे तो अखिलेश की रैलियों के मंच पर कांग्रेसी अपनी पार्टी का झंडा लिए मौजूद रहे। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनावी सभाएं, रैलियां और रोड शो किए तो बिहार में तेजस्वी यादव के साथ भी कुछ ऐसा ही समीकरण दिखा।

महाराष्ट्र में भी मजबूती से लड़ा गठबंधन

महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साथ भी कांग्रेस का समन्वय चुनावी अखाड़े में दिखाई दिया। इतना ही नहीं चुनाव अभियान के दौरान भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीखे प्रहारों का जवाब देने के लिए एक दूसरे के समर्थन में आए। केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ शीर्ष विपक्षी नेताओं ने एक सुर से आवाज उठाई।

भाजपा-पीएम के प्रहारों का एक स्वर में जवाब देने के कई उदाहरण भी नजर आए। जैसे राहुल गांधी के खिलाफ कटु निजी हमले को लेकर कई बार शरद पवार, उद्धव, अखिलेश और तेजस्वी नेताओं ने भाजपा नेतृत्व पर पलटवार किया तो पवार को भटकती आत्मा बताने के पीएम के हमलों के खिलाफ राहुल गांधी ने उन पर जवाबी हमला किया।

एक दूसरे का सहयोग

विपक्ष ने साझे चुनावी विमर्श के जरिये भी भाजपा को मजबूत चुनौती देने के लिए एक दूसरे का भरपूर सहयोग किया। कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र पर मंगलसूत्र, मुसलमान, मुस्लिम लीग, संपत्ति बांटने जैसे विवादों को भाजपा-पीएम ने तेवर दिया तो आईएनडीआईए के तमाम नेताओं ने अपने जवाबी प्रहारों के जरिये इसका ताप थामा। शिवसेना (यूबीटी) जैसे दल के नेताओं ने तो बकायदा कांग्रेस का घोषणापत्र लेकर चैनलों पर भाजपा नेताओं को चुनौती दी।

भाजपा के 400 सीटों का आंकड़ा पार करने के दावे के जवाब में कांग्रेस ने जब इसे संविधान बदलने तथा आरक्षण खत्म करने के संघ-भाजपा के इरादे और एजेंडे से जोड़ा तो आईएनडीआईए के तमाम दलों ने इसे हाथोंहाथ लपकते हुए इस आंकड़े को लेकर चुनावी विमर्श की दिशा बदल दी। इसका नतीजा रहा कि भाजपा को इस मुद्दे पर सफाई देनी पड़ी और पीएम को बार-बार आरक्षण खत्म नहीं करने का भरोसा देने को बाध्य होना पड़ा।

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