तमाम तरीकों से होता है मतदान, क्या आप भी जानते हैं इनके बारे में, पढ़ें दिलचस्प कहानी
देश-दुनिया में मतदान के कई तरीके प्रचलित हैं। कहीं कागज पर ठप्पा लगाकर चुनाव होता है तो कहीं सरकार बनाने का बटन दबाया जाता है। देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल होता है। मगर कई चुनाव ऐसे भी हैं जहां मत पत्रों का इस्तेमाल होता है। आज बात मतदान के इन्हीं तमाम रोचक तरीकों की होगी।
इन दिनों हर तरफ चर्चा है आम चुनाव की। चुनाव आयोग तमाम तरीकों से इस बात को सुनिश्चित करता है कि हर चुनाव में ज्यादा से ज्यादा मतदान हो। कोई भी मतदाता मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित न रहे। आरती तिवारी बता रही हैं मतदान के दिलचस्प तरीकों के बारे में...
कभी सोचा है कि कक्षा में मॉनीटर हमेशा टीचर ही क्यों चुनती हैं? कैसा हो अगर मॉनीटर के लिए चुनाव हो? पर्ची में नाम निकाले जाएं या जिसके नाम पर समर्थन में सबसे ज्यादा हाथ खड़े हों, वही मॉनीटर बने। ऐसे ही कुछ तरीकों से देश-दुनिया में चुनाव होते हैं। कई देशों में मतदाता मतपत्र पर पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिन्ह पर मोहर लगाते है, तो वहीं भारत सहित कुछ देशों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का इस्तेमाल होता है।
कागज पर ठप्पा
बात भारत में आम चुनाव की है तो जान लो कि पहले जब चुनाव होते थे, तब मतदान अधिकारी पहचान का प्रमाणपत्र देखने के बाद मतदाता को कागज का मतपत्र देते थे। इसके बाद मतदाता उसी कमरे में कुछ जगह छोड़कर बने मतदान बूथ पर जाकर पसंदीदा उम्मीदवार के आगे मुहर लगाकर इसे मतपेटी (बैलेट बॉक्स) में डाल देते थे।समय के साथ भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इस प्रक्रिया को लगभग बंद कर दिया गया है क्योंकि कई बार असावधान मतदाता मतपत्र पर गलत निशान लगा देते थे। यदि मतपत्र पर सही स्थान पर निशान न लगाया गया हो तो उसे रद्द कर दिया जाता था।
चिट्ठी में बंद फैसला
हां, कुछ कारणों से डाक मत (पोस्टल बैलेट) को अभी भी सक्रिय रखा गया है। सैनिक-अर्धसैनिक बल, चुनाव ड्यूटी में तैनात कर्मचारी, अपने चुनाव बूथ से दूर कार्यरत सरकारी कर्मचारी और गंभीर दिव्यांग अथवा बुजुर्ग आदि ऐसे मतदाता माने जाते हैं जो सेवा या स्थिति के चलते चुनाव स्थल तक पहुंचने में असमर्थ होते हैं।ऐसे में चुनाव आयोग ने चुनाव नियमावली, 1961 के नियम 23 में संशोधन किया, ताकि इन लोगों को पोस्टल बैलेट या डाक मतपत्र की सहायता से मतदान की सुविधा मिल सके। इन्हें सर्विस वोटर्स कहते हैं। चुनाव आयोग डाक मतदान करने वालों की संख्या पता कर लेता है। मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार को मत देकर इस पोस्टल बैलेट को डाक या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से चुनाव आयोग को वापस भेज देते हैं।
सरकार बनाने का बटन
तकनीक के साथ तरक्की ने चुनाव प्रक्रिया को भी आसान बना दिया है। एक भी मत बेकार न जाए, इस उद्देश्य से अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम चुनाव प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंग बन गई है। साधारण बैटरी चलित एक ऐसी बेहतरीन मशीन, जो मतदान के दौरान डाले गए मतों को दर्ज करती है और गिनती भी करती है। तीन हिस्सों से बनी इस मशीन की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि अब लगभग हर संसदीय व विधानसभा चुनाव में इन्हें उपयोग किया जा रहा है। यह भी पढ़ें: दिल्ली की इस सीट पर कभी नहीं जीती महिला प्रत्याशी, शीला दीक्षित और आतिशी को भी मिल चुकी शिकस्तमतदाता बैलेटिंग यूनिट पर पसंदीदा उम्मीदवार के आगे लगा नीला बटन दबाकर अपना मत दर्ज करते हैं। मतपत्रों की तुलना में ईवीएम अधिक सटीक होती है। न कागज खोने-नष्ट होने का डर, न जाली मतदान और न बूथ कैप्चरिंग का खतरा, ये भी इसके कुछ खास फायदे हैं। बस टीं की आवाज हुई और पड़ गया वोट। इससे मतदाताओं को मत देने में आसानी होती है और चुनाव आयोग को गिनने में भी।आवाज से होता फैसला
आम चुनाव से अलग मतदान का एक और तरीका है, वह है ध्वनि-मत। मगर इसका प्रयोग आम नागरिक मतदाता नहीं, सदन में निर्वाचित होकर पहुंचे सांसद अथवा विधायक करते हैं। यह तरीका आमतौर पर सदन में फैसले लेने के लिए अपनाया जाता है। इसे ‘डिवीजन’ या विभाजन कहा जाता है। किसी फैसले पर सभी सहमत सदस्य अपनी बारी आने पर 'हां' और असहमत सदस्य अपनी बारी आने पर 'ना' की आवाज करते हैं। इसके बाद सदन के अध्यक्ष निर्णय लेते हैं कि बहुमत क्या है!- 1982 में केरल विधानसभा की परवूर सीट (एर्नाकुलम) में हुए उपचुनाव के दौरान हुआ था भारत में पहली बार ईवीएम का उपयोग।
- 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं ईवीएम की एक बैलेटिंग यूनिट में। ऐसी 24 बैलेटिंग यूनिट एक साथ जोड़ी जा सकती हैं, जिससे नोटा समेत अधिकतम 384 उम्मीदवारों के लिए मतदान करवाया जा सकता है।