Lok Sabha Election 2024: 'ओडिशा में भाजपा ही नंबर वन, बीजद ने तो बिचौलिए के हाथ दे दी पार्टी', खास बातचीत में और क्या बोले धर्मेंद्र प्रधान
Lok Sabha Election 2024 Lok Sabha Election 2024 केंद्रीय मंत्री और बीजेपी प्रत्याशी धर्मेंद्र प्रधान ने ओडिशा सरकार को शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के मुद्दे पर घेरा। उन्होंने राज्य में सत्ताधानी बीजू जनता दल पर हमला बोलते हुए रोजगार सहित ओडिशा के चुनाव में ओडिया अस्मिता की आवाज भी उठाई। धर्मेंद्र प्रधान ने कई मुद्दों पर बेबाकी से अपनी बात रखी। पढ़िए बातचीत के अंश...
तपती धूप के बीच ओडिशा के अंगुल जिले के अंतुलिया प्रखंड में ढोल नगाड़े और बाजे के साथ लोगों का हुजूम संबलपुर के भाजपा प्रत्याशी धर्मेंद्र प्रधान के स्वागत के लिए कार को रोकता है। महिलाएं अक्षत छींटकर स्वागत करती हैं और कार को रास्ता देती हैं, लेकिन प्रधान वहीं उतरकर जोश से भरे लोगों के साथ पैदल ही रैलीस्थल तक पहुंचते हैं।
लगभग आधे किलोमीटर के रास्ते में फूल वर्षा और जोशीले नारे, ओडिया अस्मिता को बचाने की गुहार। लगभग एक घंटे की सभा के बाद प्रधान जब वापस कार में लौटते हैं तो विश्वास से भरे दिखते हैं और कहते हैं- आपने देख लिया होगा कि ओडिशा में इस बार मुद्दा क्या है। यहां के लोग ओडिया अस्मिता के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं। दैनिक जागरण से धर्मेंद्र प्रधान ने लंबी बात की। पेश हैं खास अंश...
सवाल: ओडिशा में एकबारगी ओडिया अस्मिता का मुद्दा कैसे आ गया। यहां नवीन पटनायक की सरकार तो लंबे समय से जीत रही है और लोकप्रिय मानी जाती है?
जवाब: नवीन बाबू लोकप्रिय माने जाते थे लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है और यह आपको चुनाव के नतीजे में दिख जाएगा। कोई भी कैसे लोकप्रिय रह जाएगा अगर 25 साल की सत्ता के बाद भी गांव में पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं है, स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था लचर है।
ओडिशा में अपार संसाधन है लेकिन राज्य में रोजगार का सृजन नहीं हो रहा है। पर्यटन की संभावना है, ऑर्गेनिक खेती की संभावना है लेकिन कोई दूरदर्शी सोच नहीं है। ओडिशा में ड्रॉपआउट रेट देख लीजिए तो शिक्षा की स्थिति का अहसास हो जाएगा।
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मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हिंजली से चुनाव लड़ते थे, वह श्रमिक पलायन का सबसे बड़ा केंद्र है और अब काटाबांझी से लड़ रहे हैं, वह दूसरा बड़ा केंद्र है। एनसीआरबी की रिपोर्ट देखिए, महिलाओं के प्रति हिंसा कितनी हो रही है। लोग परेशान हैं। त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।सवाल: लेकिन हैं तो वह भी ओडिया, ओडिया अस्मिता कैसे खतरे में आ गया? जवाब: ओडिया अस्मिता दो तरह से खतरे में आया है। अगर आप 25 साल तक ओडिशा की सत्ता में रहकर भी यहां के लोगों की परेशानियों से कटे हुए हैं, आपको कुछ नहीं दिख रहा है तो आप ओडिशा की रक्षा कैसे करेंगे।
ओडिशा को विकास की राह पर आप कैसे ले जा पाएंगे। केंद्र से अब तक 18 लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं, लेकिन अपनी खोखली राजनीति के लिए आप ओडिशा वासियों के विकास की राह रोके खड़े हैं।दूसरी बात इस बार यहां के लोगों को भी पता है कि नवीन बाबू के नेतृत्व में चुनाव नहीं हो रहा है। वह तो सिर्फ एक चेहरा बने हुए हैं। बीजद का चुनाव एक गैर-ओडिया के नेतृत्व में हो रहा है जो पहले अधिकारी था, अब पार्टी उनके हाथ में आ गई है। खुद बीजद के अंदर बहुत रोष है कि उनकी पार्टी किस राह पर चल निकली।
क्या नवीन बाबू को ओडिशा के साढ़े चार करोड़ लोगों में कोई उत्तराधिकारी नहीं मिला, जो एक गुमास्ता (बिचौलिए) को बिठा दिया है। मैं संकुचित सोच का व्यक्ति नहीं हूं, पूरा भारत हमारा घर है, लेकिन एक गर्वित ओडिया भी हूं। यह बात सामान्य नागरिकों को भी चुभ रही है।सवाल: क्या ओडिया अस्मिता के मुद्दे पर ही बीजद और भाजपा के गठबंधन की बात खत्म हो गई थी?जवाब: देखिए 1936 में हम भाषा के आधार पर अलग राज्य बने थे। आज बीजद पार्टी का नेतृत्व एक गैर-ओडिया को देने के लिए मजबूर है, लेकिन इसे ऐसे भी समझना जरूरी है कि आप ओडिया का विकास नहीं होने देना चाहते हैं, तो यह भी ओडिया अस्मिता का सवाल है।
सवाल: ओडिशा की तुलना केरल से होती है, जैसे वहां वामदल और कांग्रेस आपस में लड़ते हैं और केंद्र में एक साथ खड़े होते हैं, वैसे ही ओडिशा में भाजपा और बीजद का समीकरण है। फिर से ऐसा होगा?जवाब: बिल्कुल नहीं। यह सच है कि 1998-2009 तक बीजद- भाजपा का गठबंधन था। लेकिन केंद्र में नरेन्द्र मोदी के आने के बाद से ओडिशा में भाजपा का विकास तेज हो गया। पिछले चुनाव मे हम लोग लोकसभा और विधानसभा दोनों में दूसरे नंबर की पार्टी बने। इस बार नंबर वन बनेंगे।
रही बात केंद्र में उनके सहयोग की तो उसके लिए धन्यवाद। वैसे मैं फिर एक बार कहना चाहूंगा कि अब बीजद भी पुरानी बीजद नहीं रही। वह तो एक गुमास्ता (बिचौलिए) के हाथ चली गई है।सवाल: अगर विधानसभा में भाजपा नंबर वन पार्टी बनती है, तो नेता कौन होगा, पार्टी क्यों किसी चेहरे के साथ नहीं जा रही है?जवाब: यह तो रणनीति का फैसला होता है। हमारे यहां तो संयुक्त नेतृत्व में चुनाव जाने की परंपरा भी रही है। 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कहां किसी नेता को चेहरा घोषित किया था। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हम कहां किसी चेहरे के नाम पर लड़े।
सवाल: कांग्रेस को आप ओडिशा में कहां देख रहे हैं?जवाब: कांग्रेस की कोई जमीन बची नहीं है। वह समाप्त हो गई है।सवाल: प्रधानमंत्री का अभियान कांग्रेस विरोध पर केंद्रित है। अगर ओडिशा में कांग्रेस की कोई जमीन ही नहीं है, तो ऐसे मुद्दे क्या यहां प्रभावी रहेंगे?जवाब: राष्ट्रीय चुनाव राष्ट्रीय मुद्दे पर होते हैं। प्रधानमत्री की विश्वसनीयता स्थानीय नही हैं। आपको क्या लगता है कि ओडिशा में राम मंदिर को लेकर अपार खुशी नहीं है। मेरा अनुभव है कि 22 जनवरी को यहां की सरकार ने हर प्रकार का विघ्न डालने का प्रयास किया, लेकिन क्या हुआ। कांग्रेस को तो पूरे देश ने देखा है।
कांग्रेस के भ्रष्टाचार ने देश को लूटा, तो ओडिशा के लोगों के जेब के पैसे नहीं गए क्या? ओडिशा तो देश का हिस्सा है। यहां लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव भी हो रहा है और लोग मन बनाए बैठे है।एक को जब मौका लगता है, जेब पर डाका डालते हैं और स्थानीय स्तर पर दूसरा है, जो केंद्र से आए पैसे का लाभ जनता तक पहुंचने नही दे रहा है। मैं यह कहना चाहता हूं कि मुद्दा सिर्फ निगेटिव नहीं होता है। चावल कौन दे रहा है, मोदी दे रहा है, 50 लाख किसानों को सम्मान निधि मिल रही है। 55 लाख लोगों को गैस, 34 लाख को प्रधानमंत्री आवास यह सब केंद्र से मिल रहा है।
सवाल: आप चुनाव लड़वाने वालों में शामिल रहे हैं। वोटिंग फीसद में कमी को आप कैसे देख रहे हैं। क्या कार्यकर्ताओं में उदासनीता है?जवाब: पहले तो यह स्पष्ट कर दूं कि मैं केवल चुनाव लड़ाने वाला नहीं हूं। चुनाव लड़ने वाला, जीतने वाला और हारने वाला भी रहा हूं। 1984 से मैं चुनाव लड़ रहा हूं। सारे अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि कार्यकर्ताओं में कोई उदासीनता नहीं है।मेरे यहां 1762 बूथ हैं और पूरे प्रदेश में 36000 बूथ हैं। हर बूथ पर हमारे कार्यकर्ता की सोच में स्पष्टता है। वोट बढ़ने-घटने का कोई कारण हो सकता है। तकनीक के साथ वोटर लिस्ट में भी स्पष्टता हो रही है। सटीकता आ रही है। मैं आपको यह कह दूं कि भाजपा का वोटर आकर वोट दे रहा है।यह भी पढ़ें: बड़े काम के हैं चुनाव आयोग के ये सात एप; प्रत्याशियों की 'कुंडली', कहां-कितना हुआ मतदान, सबकुछ जान सकते हैं आप