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Lok Sabha Election 2024: जब-जब चुनाव आयोग पर उठे सवाल, याद आने लगे शेषन, सुकुमार और लिंगदोह, जानिए इस बार कौन-कौन से लगे गंभीर आरोप?

Lok Sabha Election 2024 जब-जब चुनाव होते हैं चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगते हैं। विपक्ष ने इस बार चुनाव आयोग पर कई गंभीर आरोप लगाए। उनको ही कटघरे में खड़ा कर दिया। इस बीच लोगों को सुकुमार सेन टीएन शेषन और जेएम लिंगदोह याद आने लगे। जानिए विपक्ष ने इस बार चुनाव आयोग पर कौन-कौन से गंभीर आरोप लगाए।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 02 Jun 2024 03:56 PM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: इस बार भी चुनाव आयोग पर कई गंभीर आरोप लगे।

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। 2024 का आम चुनाव समाप्त हो गया है। अब सिर्फ नतीजे आने बाकी है, लेकिन इससे पहले 77 दिन लंबे इस चुनाव को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल 77 दिन लंबा चुनाव कराने को लेकर ही है। वह भी तब, जब पहले के मुकाबले चुनाव प्रक्रिया से लेकर मतदान व मतगणना की प्रक्रिया आसान हो गई है।

दूसरा भीषण गर्मी में चुनाव कराने का फैसला है, जिसने न सिर्फ राजनीतिक दलों को बल्कि चुनाव ड्यूटी में लगे अमले और मतदाताओं को भी विचलित किया है। इसके साथ ही चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों के बीच कटुतापूर्ण बयानबाजी और भाषा का इस्तेमाल भी रहा है जो निर्वाचन आयोग की बार-बार चेतावनी देने के बाद भी नहीं थमा।

भ्रामक प्रचार की बाढ़

चुनावों में डीपफेक, सोशल मीडिया पर भ्रामक प्रचार की भी खूब बाढ़ दिखी। यह बात अलग है कि तल्खी भरे इस चुनावी माहौल में रेफरी की भूमिका में खड़े निर्वाचन आयोग को चुनाव में धनबल के इस्तेमाल को थामने व हिंसा को रोकने जैसे मोर्चे पर सफलता भी हाथ लगी है। वहीं जम्मू-कश्मीर में एक लंबे अर्से के बाद बढ़े मतदान प्रतिशत को लेकर भी उसे खूब सराहा गया। जिसने पिछले कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ा था।

आठ सौ करोड़ की नकदी जब्त

चुनाव में मतदाताओं के बीच बांटने के लायी गई साढ़े आठ सौ करोड़ की नकदी सहित नौ हजार करोड़ जब्त किए गए। 2019 में करीब 35 सौ करोड़ की जब्ती हुई थी। आंध्र प्रदेश में चुनाव बाद हिंसा पर भी आयोग ने मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को तलब किया था। कई पुलिस अधिकारियों को निलंबित भी किया था।

विपक्ष ने बनाया मुद्दा

चुनावी महासमर की यह शुरुआत 16 मार्च को चुनावों की घोषणा के साथ हुई थी। इस बीच 77 दिनों के लंबे चुनाव पर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सवाल खड़ा किया और कहा कि इतने लंबे चुनाव की जरूरत क्या थी। जो चुनाव 22 दिनों हो सकता है। उसे वेबजह खींचा गया। चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी खूब सवाल उठे। विपक्षी दलों ने पूरे चुनाव में उसे मुद्दा बनाया।

'सरकार का जेबी आयोग'

टीएमसी ने तो शिकायतों पर कार्रवाई न करने पर उसे पक्षपाती अंपायर करार दिया। वहीं कांग्रेस ने उसे सरकार का जेबी आयोग करार दिया था। हालांकि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत की मानें तो आयोग चुनाव में ऐसे आरोपों को लेकर तैयार रहता है। चुनाव में उसकी भूमिका बॉक्सिंग रिंग में खड़े रेफरी जैसी होती है।

जिसे खेल के दौरान मुक्के भी लग जाते है। वह कहते है कि ऐसे आरोपों से परे आयोग को अपनी छवि को निष्पक्ष रखनी की कोशिश करनी चाहिए।

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आंकड़े जारी करने में देरी

वहीं एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) से जुड़े चुनावी विशेषज्ञों की मानें तो आयोग को तकनीक के इस दौर में और तेज दिखानी चाहिए। एडीआर ने मतदान से जुड़े आंकड़ों को जारी करने में देरी पर सवाल खड़े किए थे और इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया। उनका कहना था कि चुनाव के आंकड़ों अब पहले के मुकाबले और तेजी से आने चाहिए तो आयोग उसे दो दिन बार जारी कर रहा है।

उचित व्यवस्था का अभाव

पहले चरण मतदान के आंकड़े तो 12 दिन बाद जारी किया था। इतना ही नहीं, बढ़ते मतदाता के बीच आयोग को भी मतदान के लिए मतदाताओं को और सुविधा देने की दिशा में काम करना चाहिए। ताकि उन्हें मतदान केंद्रों पर मतदान के लिए लंबा इंतजार न करना पड़े। जैसे मतदाताओं को मतदान का एक समय भी देना चाहिए, जिससे वह मतदान केंद्र पर बेवजह की भीड़ बढ़ाने की जगह ठीक उस समय पर पहुंचकर मतदान करें।

याद आए शेषन, सुकुमार व लिंगदोह

चुनाव में जब निर्वाचन आयोग पर कार्रवाई न करने को लेकर सवाल खड़े हो रहे है, उस समय चर्चा में पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन, टीएन शेषन और जेएम लिंगदोह का नाम चर्चा में था।

लोगों को कहना था कि यदि इस समय वह होते तो बताते आयोग की ताकत क्या होती है। कोई उस पर टिप्पणी करके या उनकी बात न मानकर ऐसे नहीं बच सकता था।

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