Lok Sabha Election 2024: क्या मायवती बनेंगी विपक्ष की राह का रोड़ा! बसपा की इस रणनीति से टेंशन में सपा-कांग्रेस, भाजपा की हुई बल्ले-बल्ले
Lok Sabha Election 2024 यूपी में बजेपी और INDI गठबंधन की ओर से बिछाई जा रही बिसात के बीच अभी तक बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन मायावती के रुख पर भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन की नजर बनी हुई है। बसपा के सामने सपा-कांग्रेस के मोहपाश से अल्पसंख्यक तो भाजपा से एससी वोट बचाने की चुनौती है। पढ़ें रिपोर्ट-
By Jagran News NetworkEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Wed, 13 Mar 2024 07:46 PM (IST)
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। कांग्रेस की ओर से महीनों तक चली मायावती की मान-मनौव्वल बेनतीजा रही और बसपा सुप्रीमो अकेले ही महासमर की ओर बढ़ चली हैं। 2019 में बसपा के टिकट पर जीते ज्यादातर सांसद खुद समझ रहे हैं कि मायावती की इस राह में अनिश्चितता की धुंध अधिक है और मंजिल लगभग ओझल।
लेकिन जिस दिशा में 'हाथी' का एक-एक कदम बढ़ता दिख रहा है, उसमें चुनौती की धमक सपा-कांग्रेस गठबंधन जरूर सुन रहा है। अभी बसपा ने आधिकारिक रूप से प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं, लेकिन कुछ सीटों से संकेत दे दिया है कि अनुसूचित जाति वर्ग में विशेष तौर पर सजातीय (जाटव) वोट के प्रति काफी हद तक आश्वस्त रहते हुए मायावती इस बार मुस्लिमों को अधिक टिकट दे सकती हैं।
उनका यह दांव उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। सर्वाधिक 80 संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा अपनी पहली सूची में 51 प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। सपा ने कई सीटों पर उम्मीदवार तय कर दिए हैं और कांग्रेस में भी मंथन चल रहा है।
बसपा ने नहीं खोले हैं पत्ते
सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से बिछाई जा रही बिसात में अभी बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन उनके रुख पर भाजपा के साथ ही सपा-कांग्रेस गठबंधन की दृष्टि विशेष तौर पर है। दरअसल, जिस बसपा में पार्टी सुप्रीमो की अनुमति के बिना कोई पदाधिकारी आंख का इशारा नहीं कर सकता, उसके अलग-अलग क्षेत्रों के स्थानीय पदाधिकारियों ने कुछ नामों को आगे बढ़ाकर पार्टी की चुनावी रणनीति का संकेत दे दिया है।
अमरोहा से डा. मुजाहिद हुसैन, मुरादाबाद से इरफान सैफी, पीलीभीत से अनीश अहमद खान उर्फ फूल बाबू और सहारनपुर से माजिद अली का नाम सामने आया है। उल्लेखनीय है कि इन सभी सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी संख्या है। सपा और कांग्रेस का गठबंधन जिन मुस्लिम बहुल सीटों पर इस आबादी के भरोसे ताकत दिखाने के लिए प्रयासरत है, वहां बसपा मतों का विभाजन कर सकती है।
यह आशंका इसलिए निराधार नहीं है, क्योंकि मायावती ऐसा पहले भी करके दिखा चुकी हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव जब आजमगढ़ लोकसभा सीट छोड़कर विधानसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हो गए, तब उन्होंने मुस्लिम-यादव के मजबूत समीकरण के चलते पूर्वांचल में सपा का मजबूत गढ़ कही जाने वाली इस सीट से अपने भाई धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया।
माना जा रहा था कि सीधा मुकाबला भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ और सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव के बीच होगा, लेकिन मायावती ने क्षेत्र के कद्दावर मुस्लिम नेता शाह आलम गुड्डू को मैदान में उतारकर इसे त्रिकोणीय संघर्ष बना दिया। नतीजा यह रहा कि बसपा प्रत्याशी ने लगभग ढाई लाख वोट बटोर लिए और सपा प्रत्याशी की करीब डेढ़ लाख वोटों से हार हो गई।