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Lok Sabha Election 2024: नारी शक्ति पर लोगों को भरोसा, पहली बार इतने महिला उम्मीदवार हैं मैदान में, बीजेपी ने उतारे सबसे अधिक प्रत्याशी, महिलाओं को आगे लाने के पीछे ये है कारण

Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव समाप्त होने के बाद आज सबकी नजरें परिणाम पर टिकी हुई हैं।सुबह से मतगणना शुरू हो जाएगा। इस बीच चुनाव में नारी शक्ति पर लोगों ने खूब भरोसा किया। पहली बार महिला मतदाताओं की संख्या इतनी बढ़ी है। इस चुनाव में जनता ने भी महिला उम्मीदवारों पर खूब भरोसा किया। 1999 के बाद से 5 लोकसभा चुनावों में महिला प्रत्याशियों का प्रतिशत कम है।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Tue, 04 Jun 2024 06:57 AM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: महिला उम्मीदवारों की बढ़ी संख्या, पहली बार इतने प्रत्याशी मैदान में।

अम्बिका वाजपेयी, लखनऊ। इसे विडंबना ही कहेंगे कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः की अवधारणा वाले देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्षों उपरांत महिला आरक्षण पर राजनीतिक सहमति बन सकी। यह एक सुखद अनुभूति है कि पिछले 27 साल से धूल फांक रहे महिला आरक्षण विधेयक यानी नारी शक्ति वंदन अधिनियम को सितंबर 2023 में पारित किया गया।

इस ऐतिहासिक निर्णय ने महिलाओं के लिए एक तिहाई विधायी सीटें आरक्षित करने का मार्ग प्रशस्त किया। इसे बड़ी बाधा पर करना कहेंगे, लेकिन परिसीमन और जनगणना के बाद ही इसे अमल में लाया जा सकेगा। इसका सीधा आशय है कि 2029 से पहले यह मूर्तरूप नहीं ले सकेगा।

ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) को छोड़कर सभी दलों ने इसका न केवल समर्थन किया बल्कि इसे जल्द ही लागू करने की मांग उठाई। महिलाओं को राजनीतिक हिस्सेदारी देने का मेज थपथपाकर समर्थन करना और जमीन पर इस पर अमल करने में फर्क ही सबसे बड़ा रोड़ा है।

लगातार बढ़ी उम्मीदवारों की संख्या

वैसे तो नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी लागू नहीं हुआ है, फिर भी इस बार के लोकसभा चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या बताती है कि पिछली बार के मुकाबले थोड़ा ही सही, लेकिन आंकड़े स्वस्थ हुए हैं। एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के अनुसार इस चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने सात प्रतिशत महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। 2024 में आंकड़ा बढ़कर 9.6 प्रतिशत पहुंच गया है।

पिछले आंकड़ों को देखें तो स्वतंत्रता के बाद से लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कभी भी 12 प्रतिशत तक नहीं पहुंचा। 1999 के बाद से पांच लोकसभा चुनावों में महिला प्रत्याशियों का प्रतिशत बेहद कम है।

2014 में 668 महिला उम्मीदवार मैदान में

1999 में कुल 4648 उम्मीदवारों में से केवल 6.11 प्रतिशत महिलाएं थीं। 2004 में यह आकंड़ा 6.53 प्रतिशत पहुंचा। पांच वर्ष बाद 2009 में केवल सात प्रतिशत महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जो 2014 में 8.01 तक पहुंच गईं।

चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 के आम चुनावों में 8,054 उम्मीदवारों में से केवल 726 महिलाएं थीं। यानी सिर्फ नौ प्रतिशत टिकट ही महिलाओं को दिए गए। इनमें से करीब एक तिहाई महिलाओं को किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं था। 2014 में कुल 8,251 उम्मीदवारों में महिला उम्मीदवारों की संख्या सिर्फ 668 थी।

वर्ष 2009 से 2024 तक लगातार बढ़ा आंकड़ा

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष कुल 797 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यह कुल 8,337 उम्मीदवारों का 9.6 प्रतिशत है। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 में सात प्रतिशत, 2014 में आठ प्रतिशत, 2019 में नौ प्रतिशत और 2024 में 9.6 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा गया।

यह साबित करता है कि हर बार चुनाव में महिला प्रत्याशियों का आंकड़ा बढ़ रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कुल मिलाकर 556 महिला उम्मीदवार थीं। इसके बाद 2014 में 640 और 2019 में 716 महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा गया। इस वर्ष यह आंकड़ा बढ़कर 797 हो गया है।

भाजपा से सबसे अधिक महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में

इस बार भाजपा ने 69 महिलाओं को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने 41 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया है। तमिलनाडु की नाम तमिलर काची पार्टी ने तो 50 प्रतिशत का आंकड़ा छूते हुए 40 उम्मीदवारों में से 20 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है।

एलजेपी (राम विलास) और एनसीपी ने 40 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है। एआइएडीएमके ने सबसे कम तीन प्रतिशत महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है।

इसके अलावा झामुमो और बीजद ने 33 प्रतिशत, आरजेडी ने 29 प्रतिशत, सपा ने 20 प्रतिशत और टीएमसी ने 25 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार डीएमके ने 14 प्रतिशत, सीपीआइ ने सात प्रतिशत, जेडीयू ने 13 प्रतिशत और शिवसेना ने 13 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया है।

टीडीपी और बीआरएस ने छह प्रतिशत, एनसीपी-एसपी ने आठ प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा। इस बार लोकसभा चुनाव में कुल 3,903 निर्दलीय प्रत्याशियों ने ताल ठोकी, जिनमें से 274 महिला उम्मीदवार हैं।

किस दल ने किसको कहां से उतारा

सबसे ज्यादा 80 लोस सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा ने सात महिलाओं को टिकट दिया तो बिहार में एक भी नारी को मैदान में नहीं उतारा। भाजपा ने मथुरा से हेमा मालिनी, सुल्तानपुर से मेनका गांधी, अमेठी से स्मृति इरानी, धौरहरा से रेखा वर्मा, फतेहपुर से निरंजन ज्योति, बाराबंकी से राजरानी रावत और लालगंज से नीलम सोनकर के नाम शामिल हैं।

बिहार में भाजपा ने कुल 17 प्रत्याशी में एक भी नारी शक्ति टिकट नहीं दिया। भाजपा से राजनीतिक समन्वय के तहत राजग में शामिल दो दलों जदयू एवं लोजपा ने दो-दो महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

इसमें जदयू ने शिवहर से लवली आनंद एवं सिवान से विजय लक्ष्मी कुशवाहा को टिकट दिया है तो लोजपा (आर) ने वैशाली से वीणा देवी एवं समस्तीपुर से शांभवी चौधरी भाग्य आजमा रहीं हैं। उधर, राजद ने छह महिलाओं को उम्मीदवार बनाया। सिवान में हेना शहाब निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं।

इनके अलावा एआइएमआइएम ने भी दो सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारे हैं। 2019 में राजद के नेतृत्ववाले महागठबंधन ने छह महिलाओं को टिकट दिया था। किसी की जीत नहीं हुई, जबकि राजग की सभी तीन महिला उम्मीदवार चुनाव जीत गई थीं।

प्रत्येक चरण में महिला प्रत्याशियों की संख्या

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 135, दूसरे में 100, तीसरे में 123, चौथे में 170, पांचवें में 82, छठे में 92 और सातवें में 95 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में ताल ठोक रहीं हैं।

रास आती है विरासत की राजनीति

आमतौर पर राजनीति महिलाओं की रुचि का विषय नहीं माना जाता और जो महिलाएं इसमें आती हैं, उसमें अधिसंख्य परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने ही आती हैं या पार्टियां उनकी फिल्मी परदे की लोकप्रियता भुनाने को उन्हें टिकट देती हैं।

इस कड़ी में इंदिरा गांधी लेकर, मेनका, सोनिया और प्रियंका को राजनीति विरासत में मिलती है तो इस परंपरा को गोंडा में बेनी वर्मा की पौत्री श्रेया आगे बढ़ाती नजर आती हैं। ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी और कंगना रनौत ने फिल्मी पर्दे के माध्यम से चुनावी मैदान का रुख किया तो डिंपल यादव, बांसुरी स्वराज, सुनीता केजरीवाल और कल्पना सोरेन अपनी राजनीतिक विरासत बचाने को मैदान में उतरती हैं।

लोकप्रियता और प्रभाव में किसी से कम नहीं

महिला राजनेताओं की लोकप्रियता और प्रभाव किसी से कम नहीं। गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी की बात करें तो अपने काम और स्वभाव के बूते अब वह सुलतानपुर में मां मेनका बन चुकी हैं। यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि मेनका ने अपना चुनाव अकेले दम पर लड़ा।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ की सभा को छोड़ दें तो पार्टी का अन्य बड़ा नेता उनके लिए प्रचार करने नहीं गया और न ही विपक्ष से किसी ने उनके खिलाफ प्रचार किया। अमेठी में स्मृति इरानी लोगों की दीदी बनकर राजनीति में नया अध्याय लिख चुकी हैं।

एक गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली स्मृति ने राहुल गांधी को हराकर बता दिया कि राजनीति की रपटीली राह पर कैसे पकड़ बनाई जाती है। इस बार स्मृति इरानी ने एक हजार नुक्कड़ सभाएं करके अमेठी लोकसभा क्षेत्र का कोना-कोना मथ डाला।

प्रियंका गांधी वाड्रा भले मैदान में न हों, लेकिन जिस तरह से उन्होने कांग्रेस और राहुल का प्रचार संभाला, वह काबिलेतारीफ है। अकेले रायबरेली में उन्होंने 150 से अधिक सभाएं कीं तो वाराणसी में रोड शो करने के साथ ही हिमाचल प्रदेश, हरियाणा समेत कई राज्यों में भाजपा को घेरा।

बंगाल में ममता बनर्जी की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं और वह अकेले की भाजपा के मुकाबले डटी हैं।