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लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए खींचतान: गठबंधन सरकार में कितना अहम होता है यह पद, जानिए क्‍या होते हैं अधिकार एवं जिम्मेदारियां

Lok Sabha Speaker एनडीए ने सरकार गठन की प्रक्रिया तेज कर दी है। फिलहाल दलों के बीच मंत्रीमंडल बंटवारे को लेकर बातचीत जारी है। सबसे अधिक खींचतान लोकसभा अध्यक्ष पद को लेकर है। जदयू और टीडीपी दोनों ये पद अपने पास रखना चाहती हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि क्यों यह पद महत्वपूर्ण है और लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां क्या-क्या होती हैं।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Fri, 07 Jun 2024 03:07 PM (IST)
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Lok Sabha Speaker: लोकसभा अध्यक्ष, निचले सदन यानी लोकसभा के सभापति होते हैं।
चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद अब सरकार गठन की प्रक्रिया तेज हो गई है। शुक्रवार को एनडीए ने संसदीय दल की पहली बैठक बुलाई, जिसमें नरेंद्र मोदी को सर्वसम्मति से गठबंधन दल का नेता चुन लिया गया। इधर एनडीए के दलों के बीच मंत्रीमंडल बंटवारे को लेकर भी बातचीत जारी है।

खबरों की मानें तो सबसे अधिक खींचतान लोकसभा अध्यक्ष पद को लेकर है। जदयू और टीडीपी, दोनों ये पद अपने पास रखना चाहती हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि क्यों यह पद महत्वपूर्ण है और लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां क्या-क्या होती हैं।

बता दें कि लोकसभा अध्यक्ष, निचले सदन यानी लोकसभा के सभापति होते हैं और सदन की कार्यवाही संचालित करने से लेकर चर्चा कराने और उसकी निगरानी रखने के लिए जम्मेदार होते हैं। इसके साथ ही और भी कई शक्तियां इस पद के साथ निहित होती हैं, जो राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होती हैं।

लोकसभा अध्यक्ष के कार्य और शक्तियां

  • लोकसभा अध्यक्ष सदन की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं और कार्यवाही व संचालन के लिए नियम व विधि का निर्वहन करते हैं।
  • सदन में व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी लोकसभा अध्यक्ष की होती है और इसके लिए वह निर्धारित नियमों के तहत कार्यवाही भी कर सकते हैं।
  • अध्यक्ष ही लोकसभा के सदस्यों को बोलने की अनुमति देते हैं और उसका समय निर्धारित करते हैं।
  • लोकसभा अध्यक्ष सदन में राजनीतिक दलों तथा समूहों को मान्यता प्रदान करते हैं।
  • यदि कोई सदस्य, अध्यक्ष की आज्ञा नहीं मानता है या सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है तो अध्यक्ष उस सदस्य की सदस्यता भी निलंबित कर सकता है।
  • 52वें दल-बदल विरोधी संविधान संशोधन अधिनियम 1985 द्वारा लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और भी शक्तिशाली बना दी गई है, जिसके तहत वह दल-बदल कानून के अंतर्गत सदस्यों की सदस्यता भी रद्द कर सकते हैं। इस तरह अध्यक्ष के पास न्यायिक शक्तियां भी होती हैं।
  • किसी भी विषय में वोटिंग के मामले में अध्यक्ष की भूमिका बेहद बढ़ जाती है। अगर किसी बिल पर पक्ष और विपक्ष से बराबर संख्या में वोट पड़ता है तो ऐसी स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष भी अपना मत दे सकते हैं और वही यह तय करते हैं कि बिल पास होगा या नहीं। हालांकि, केवल उक्त स्थिति में ही अध्यक्ष मतदान कर सकते हैं।
  • सदन के सदस्यों की रक्षा करना और उनके लिए समुचित व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी अध्यक्ष की होती है। अध्यक्ष की अनुमति के बिना किसी भी सदस्य को सभा परिसर में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और न ही फौजदारी या दीवानी कानून के अंतर्गत उन्हें कोई आदेश दिया जा सकता है।
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