'मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं कि..', क्यों और किसलिए होती है पद ग्रहण से पहले शपथ? क्या हैं इसके नियम
Narendra Modi Oath Ceremony क्या आपके मन में कभी यह विचार आया कि आखिरकार शपथ ग्रहण समारोह इतना महत्वपूर्ण क्यों होता है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री राज्यों के मुख्यमंत्री मंत्री और पंचायत के पंच व सरपंच तक आखिरकार क्यों और किस बात की शपथ लेते हैं? हमारे देश के संविधान में शपथ ग्रहण को लेकर क्या नियम हैं? शपथ तोड़ने या इस उल्लंघन करने पर देने पर सजा का प्रावधान है?
दीप्ति मिश्रा, नई दिल्ली। भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने आज यानी रविवार शाम 7:15 बजे अपने तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ ही एनडीए गठबंधन के 71 सांसदों ने भी केंद्रीय मंत्री पद की शपथ ली। इस बेहद खास एवं ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने देश-दुनिया से बड़े नेता एवं मेहमान दिल्ली आए हैं।
क्या आपके मन में कभी यह विचार आया कि आखिरकार शपथ ग्रहण समारोह इतना महत्वपूर्ण क्यों होता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री और पंचायत के पंच व सरपंच तक आखिरकार क्यों और किस बात की शपथ लेते हैं? हमारे देश के संविधान में शपथ ग्रहण को लेकर क्या नियम हैं? शपथ तोड़ने या इस उल्लंघन करने पर देने पर सजा का प्रावधान है? क्या इसका हमारे देश के इतिहास से कोई खास संबंध है?
शपथ ग्रहण समारोह से जुड़े ऐसे ही कई सवालों के जवाब दे रही है हमारी यह खबर...
प्रधानमंत्री व मंत्री क्यों लेते हैं शपथ?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमने बात की लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा से। उन्होंने बताया कि सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री व मंत्रियों को पदभार ग्रहण करने से पहले भारत के संविधान के प्रति श्रद्धा रखने की शपथ उठानी होती है। जब तक सांसद अथवा विधायक शपथ नहीं लेते हैं, तब वे किसी भी सरकारी काम में हिस्सा नहीं ले सकते हैं।
न ही उन्हें सदन में सीट आवंटित होगी और न सदन में बोलने दिया जाएगा। यानी वो निर्वाचित जरूर हुए पर सांसद नहीं माने जाएंगे। वो सदन को कोई नोटिस नहीं दे सकेंगे और न ही कोई मुद्दा उठा सकेंगे। यहां तक कि उनको वेतन एवं सुविधाएं भी नहीं मिलेंगी। शपथ संवैधानिक पद संभालने की एक बेहद जरूरी प्रक्रिया है, जिसके बाद ही सरकारी कामकाज व सदन की कार्रवाई में हिस्सा लिया जा सकता है।
किस बात की शपथ लेते हैं?
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, पंच-सरपंच और सरकारी सेवा के लिए पद की गरिमा बनाए रखने, ईमानदारी व निष्पक्षता से काम करने और हर हाल में देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ दिलाई जाती है। शपथ हिंदी, अंग्रेजी सहित किसी भी भारतीय भाषा में की जा सकती है। हमारे देश के 13वें राष्ट़्रपति रहे शंकरदयाल शर्मा ने अपने पद की शपथ संस्कृत में पढ़ी थी।
मंत्रीपद की शपथ दो हिस्सों में होती है:
- पद की शपथ: सांसद एवं विधायक पद की गरिमा बनाए रखने की शपथ लेते हैं। इसमें ईमानदारी व निष्पक्षता से काम करने और हर हाल में देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने का प्रण होता है।
- गोपनीयता की शपथ: केंद्र एवं राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त होने वाले सांसद तथा विधायक गोपनीयता की शपथ लेते हैं।
क्या निर्वाचित होकर आए सभी सांसद लेते हैं शपथ?
हां, देश भर की 543 सीटों से निर्वाचित होकर आए सभी सांसदों को लोकसभा में शपथ दिलाई जाती है। बता दें कि लोकसभा में प्रधानमंत्री और मंत्री भी सांसद की शपथ लेते हैं।संविधान में शपथ के क्या नियम हैं?
प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 75 के अनुसार, राष्ट्रपति के सामने शपथ ग्रहण करना होता है। शपथ के लिए एक निर्दिष्ट शपथ पत्र का पालन किया जाता है, जिसे प्रधानमंत्री पढ़ते हैं और स्वीकार करते हैं। शपथ के बाद एक आधिकारिक प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री की शपथ लेने की तारीख और समय अंकित होती है। इस पर प्रधानमंत्री से हस्ताक्षर भी करवाए जाते हैं। यह भी पढ़ें -मोदी जिस घर में रहते हैं, 7 लोक कल्याण मार्ग के उस आवास का जानिए इतिहासहमारे संविधान के अनुच्छेदों में शपथ के नियम विस्तार से बताए गए हैं..
- संविधान के अनुच्छेद 60 में राष्ट्रपति के शपथ की पूरी जानकारी दी गई।
- अनुच्छेद 75 (4) में प्रधानमंत्री व मंत्रियों के शपथ के प्रारूप की बात कही गई है।
- अनुच्छेद 99 में संसद के सभी सदस्यों के ग्रहण के नियमों की जानकारी है।
- अनुच्छेद 124 (6) में सुप्रीम कोर्ट के जजों की शपथ ग्रहण के नियम दिए गए हैं।
- अनुच्छेद 148 (8) नियंत्रक महालेखा परीक्षक के शपथ ग्रहण के नियम हैं।
- संविधान में अलग-अलग अनुच्छेद में दिए गए नियमों से ये तो साफ हो जाता है कि लोकतंत्र में शपथ एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
शपथ लेने की परंपरा कब शुरू हुई?
हमारे देश के इतिहास में कई मौकों पर शपथ का उल्लेख मिलता है। यहां तक कि रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी इसका वर्णन है। उस वक्त अपने आराध्य या फिर प्रकृति को साक्षी मानकर शपथ ली जाती थी। इसी तर्ज पर साल 1873 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 'इंडियन कोर्ट एक्ट' लागू किया था। जिसमें धार्मिक पुस्तकों पर हाथ रखकर शपथ दिलाई जाती थी।जब देश आजाद हुआ तो साल 1969 में इंडियन कोर्ट एक्ट' में संशोधन किया गया। इसे 'ओथ एक्ट' कहा गया। दरअसल, इसे धर्मनिरपेक्ष बनाया गया। इसमें शपथ के लिए धार्मिक जरूरत को नकार दिया गया। हालांकि, बाद में अदालत ने इसमें बदलाव कर ईश्वर के नाम पर शपथ दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के लिए शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन हुआ था। उन्हें गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलवाई थी।यह भी पढ़ें-Modi 3.0: मोदी के तीसरे मंत्रिमंडल में घटेगी यूपी की हिस्सेदारी, एनडीए में इन नेताओं को बनाया जा सकता है मंत्री!