Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Lok Sabha Election: रिकॉर्ड मतदान ही नहीं बल्कि सही प्रत्याशी चुनना भी सबसे जरूरी, पंजाब के कुछ इलाकों में उभर रही अलगाववादी सोच

इस चुनाव में मतदान का रिकॉर्ड बनाने की बात हो रही है लेकिन उससे भी अहम है कि पंजाब के लोग किस तरह के उम्मीदवारों का चयन करें। मतदाता को फैसला करना है कि क्या सामाजिक सौहार्द को भड़काने वालों को चुनकर संसद भेजा जाए या फिर ऐसे लोगों का चयन किया जाए जो सामाजिक सौहार्द बनाने के साथ-साथ पंजाब को आगे ले जाने पर काम करे।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Sat, 01 Jun 2024 06:30 AM (IST)
Hero Image
रिकार्ड मतदान ही नहीं बल्कि सही प्रत्याशी चुनना भी सबसे जरूरी

 राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब में आज लोकसभा चुनाव के लिए मतदान है। पिछले ढाई महीने में जिस प्रकार का चुनाव प्रचार चला उससे लग रहा था कि पंजाब सही दिशा में चल रहा है लेकिन अचानक कुछ दिनों में जिस प्रकार से राज्य के कुछ इलाकों में अलगाववादी सोच उभर रही है, उसको लेकर चिंता जरूर बढ़ गई है। यह सोच उन लोगों को चिंता में डाल रही है जो पंजाब में 15 वर्ष तक आतंकवाद का संताप भोग चुके हैं।

सामाजिक सौहार्द बिगड़ने का डर

यह अकेला ऐसा मुद्दा नहीं है जिसको लेकर सामाजिक सौहार्द बिगड़ने का डर बनने लगा है बल्कि कुछ नेताओं की ओर से चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह से राज्य में बाहरी का राग अलापा गया, वह भी सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का काम कर सकता है। 15 वर्ष का संताप भोगने वाले राज्य के लोगों में सौहार्द का माहौल बनने में बहुत समय लगा।

यही नहीं, राज्य के विकास का पहिया जोकि इस संताप के कारण बिल्कुल रुक गया था, वह अभी पटरी पर आया ही है कि इस तरह की अलगाववादी विचारधारा का एक बार फिर पनपना राज्य के सौहार्द और विकास के लिए सही संकेत नहीं है।

मतदाता को फैसला करना है

इस चुनाव में मतदान का रिकॉर्ड बनाने की बात हो रही है लेकिन उससे भी अहम है कि पंजाब के लोग किस तरह के उम्मीदवारों का चयन करें। मतदाता को फैसला करना है कि क्या सामाजिक सौहार्द को भड़काने वालों को चुनकर संसद भेजा जाए या फिर ऐसे लोगों का चयन किया जाए जो सामाजिक सौहार्द बनाने के साथ-साथ पंजाब को आगे ले जाने पर काम करे।

अलगाववाद का सोच पनपना देश की सुरक्षा के लिए तो खतरा है ही लेकिन जिस तरह से चुनाव प्रचार के दौरान मंच से कुछ नेताओं की ओर से हेट स्पीच दी गईं, वह भी पंजाब में बढ़े आपसी भाईचारे के लिए खतरनाक है। हालांकि नेताओं ने अपनी हेट स्पीच को पंजाबियत से जोड़ने का प्रयास किया है लेकिन पंजाब ने कभी भी इस विचारधारा को नहीं अपनाया।

बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर पाबंदी लगानी चाहिए

यहां हमेशा गुरु नानक देव जी की वाणी 'मानस की जात सभै एक पहचाबो' का पालन किया गया लेकिन कुछ नेता अपने निजी लाभ के लिए समाज के लोगों में पंजाबी और बाहरी का जहरीला बीज बोने में लगे हैं जोकि भविष्य में घातक सिद्ध होगा। खासतौर पर अन्य राज्यों से यहां रोजी-रोटी के लिए आए हुए लोगों के बारे में।

यह सही है कि राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में दूसरे राज्यों के लिए कृषि योग्य जमीन खरीदने पर पाबंदी लगी हुई है। चूंकि दोनों ही पंजाब के पड़ोसी राज्य हैं, ऐसे में कुछ लोग इस तरह की बातों को उभारते हैं कि पंजाब को भी उत्तर प्रदेश, बिहार से आने वाले लोगों पर यहां जमीन खरीदने पर पाबंदी लगानी चाहिए।

अलगाववादी विचारधाराओं की ओर युवा बहते दिख रहे हैं

पंजाब में जिस प्रकार से श्री खडूर साहिब, फरीदकोट और संगरूर में अलगाववादी विचारधाराओं की ओर युवा बहते दिख रहे हैं, यह राज्य के लिए अच्छा विषय नहीं है। पहले ही 15 वर्ष के काले दौर को भोग चुका राज्य हर मामलों में पिछड़ चुका है। उस समय की युवा पीढ़ी आज प्रौढ़ हो चुकी है। जो युवा एक बार फिर से अलगाववादी विचारधारा वाले लोगों को जितवाने की बात कर रहे हैं, उन्हें आज यह अच्छा लग रहा है लेकिन इसके नतीजे कितने दूरगामी हो सकते हैं, यह उन्हें अपनी पुरानी पीढ़ी से पता करना चाहिए।

दो अलग-अलग धारणाएं क्या किसी सही को जन्म दे सकती हैं। इसका जवाब न में ही होगा। राजनीतिक लोग यह बात तो उठा सकते हैं कि राजस्थान, हिमाचल में जमीन खरीदने की भी हर किसी को छूट होनी चाहिए पर यह कतई नहीं कह सकते किसी को पंजाब में जमीन खरीदने पर पाबंदी लगानी चाहिए। पंजाबी तो यूं भी ग्लोबल कौम बनकर उभर रही है। अन्य राज्यों में ही नहीं बल्कि विदेश में भी उन्होंने अपनी सफलता के झंड़े गाड़े हैं.. तो क्या उन देशों को भी पंजाबियों के जमीन खरीदने पर पाबंदी लगा देनी चाहिए?

किसानों ने भाजपा प्रत्याशियों का विरोध किया

प्रचार के दौरान किसानों ने भाजपा प्रत्याशियों का विरोध किया और उन्हें जगह-जगह घेरा। भाजपा ने भी इसकी काट ग्रामीण हलकों में अनुसूचित जाति के वोटों को लुभाने के रूप में की जिससे गांव स्तर पर भी कई जगह माहौल में गर्मी आई। इसी तरह प्रत्याशियों ने एक-दूसरे पर जातिगत टिप्पणियां भी कीं जिसको लेकर पार्टियों के बड़े नेताओं को भी माफी मांगनी पड़ी। इन सब बातों के बीच अब मतदाताओं को ही फैसला करना होगा कि वे किस तरह के प्रत्याशी को अपना सांसद बनाकर संसद में भेजना चाहते हैं।