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Bihar News: चुनावी रण में नजर नहीं आ रहे NDA के एक तिहाई सांसद; क्‍या बगावत कर के भी महासमर में कूद सकते हैं ये नेता?

Lok Sabha election 2024 देश में 18वीं लोकसभा के सात चरण में चुनाव हैं। दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया जारी है। पांच साल पहले राजग के घटक दलों के टिकट पर चुनाव जीते 39 में 13 सांसद 2024 के चुनावी मैदान से बिना लड़े ही बाहर हो गए हैं। क्‍या ये नेता गठबंधन या दल से बगावत कर चुनावी मैदान में कूदेंगे...?

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Tue, 02 Apr 2024 12:44 PM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: बिहार में 2024 के मैदान में नजर नहीं आ रहे राजग के एक तिहाई सांसद।
 अरुण अशेष, पटना। पांच साल पहले राजग के घटक दलों के टिकट पर चुनाव जीते 39 में 13 सांसद 2024 के चुनावी मैदान से बिना लड़े ही बाहर हो गए हैं। इनमें से कुछ की उम्मीद समाप्त नहीं हुई है। संभव है एक या दो सांसद अपने गठबंधन या दल से बगावत कर मैदान में कूद पड़ें। क्योंकि अभी सिर्फ पहले चरण की चार सीटों के लिए नामांकन समाप्त हुआ है।

 दूसरे चरण के लिए नामांकन चल रहे हैं। पांच और चरण की अधिसूचना नहीं हुई है। 2019 में लोजपा के टिकट पर समस्तीपुर से जीते लोजपा के रामचंद्र पासवान और जदयू के टिकट पर वाल्मीकि नगर से जीते वैद्यनाथ प्रसाद महतो का निधन हो गया। उसके बाद के उप चुनाव में दोनों सीटों पर दिवंगत सांसदों के पुत्रों-क्रमश: प्रिंस राज और सुनील कुमार की जीत हुई।

प्रिंस राज के चुनाव लड़ने पर संदेह है। उनकी पार्टी रालोजपा तय नहीं कर पा रही है कि चुनाव लड़ें या राजग में रहकर वैकल्पिक प्रबंध करें। सुनील कुमार को जदयू ने फिर वाल्मीकि नगर से उम्मीदवार बनाया है।

प्रिंस राज इकलौते सांसद नहीं हैं, जो 2019 में लोजपा के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद असमंजस की स्थिति में हैं। उनके चाचा पशुपति कुमार पारस (हाजीपुर), चौधरी महबूब अली कैसर (खगड़िया) और चंदन कुमार (नवादा) की भी यही गति है।

बेटिकट होने के बाद भाजपा सांसद रमा देवी (शिवहर), छेदी पासवान (सासाराम), अजय निषाद (मुजफ्फरपुर), अश्विनी चौबे (बक्सर) के अलावा जदयू के महाबली सिंह (काराकाट), सुनील कुमार पिंटू (सीतामढ़ी), कविता सिंह (सिवान) एवं विजय मांझी (गया) के बारे में भी यह चर्चा नहीं है कि ये सब किसी अन्य दल से टिकट लेने का प्रयास कर रहे हैं।

बाहर रहने के अलग-अलग कारण

इन सांसदों के चुनावी मैदान से अलग रहने के अलग-अलग कारण हैं। लोजपा टिकट पर जीते चार सांसद पार्टी की अंदरूनी लड़ाई के शिकार हुए। लोजपा के छह में से पांच सांसद रालोजपा के नाम से अलग पार्टी बनाकर राजग के साथ हो गए थे। पार्टी के दूसरे गुट में चिराग पासवान अकेले रह गए थे। लेकिन, राजग के आंतरिक मूल्यांकन में पाया गया कि पशुपति कुमार पारस की अगुआई वाली रालोजपा को साथ रखना लाभप्रद नहीं है।

चिराग की पार्टी लोजपा (रा) से राजग का समझौता हुआ। चिराग ने अपने अलावा लोजपा टिकट पर जीती वीणा देवी को वैशाली से उम्मीदवार बनाया। बाकी को अपने भरोसे छोड़ दिया।

जीतने की संभावना संदेहास्पद

भाजपा ने सभी क्षेत्रों का आंतरिक सर्वेक्षण कराया था। उसके कोटे के जितने सांसद बेटिकट हुए उनकी जीत की संभावना कम पाई गई थी। शिवहर से तीन बार भाजपा के टिकट पर जीती रमा देवी की सीट समझौते में जदयू के पास चली गई। हालांकि, उनकी जीत की संभावना संदिग्ध नहीं थी।

मुजफ्फरपुर से अजय निषाद, बक्सर से अश्विनी चौबे और सासाराम से छेदी पासवान के बदले उन लोगों को टिकट दिया गया, जिनकी जीत की संभावना अधिक प्रबल बताई गई थी। इनमें से कुछ सांसद अब भी टिकट के प्रयास में जुटे हैं।

बहुत आगे बढ़ गए थे पिंटू

सीतामढ़ी से जदयू के सांसद सुनील कुमार पिंटू भाजपा-जदयू विवाद में फंस गए। अगस्त 2022 में जब जदयू का भाजपा से अलगाव हुआ था, पिंटू जदयू और खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरुद्ध अधिक मुखर हो गए थे। दोनों दलों के बीच समझौता हुआ तो पिंटू के बचाव में भाजपा नहीं आई।

जदयू ने सीतामढ़ी के लिए सबसे पहले अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी। विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर जदयू के उम्मीदवार बनाए गए हैं। चुनाव की अधिसूचना से पहले ही जदयू ने पिंटू का नाम अपनी सूची से काट दिया था।

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समझौते में गईं इनकी सीटें

शिवहर से भाजपा की रमा देवी की तरह काराकाट से जदयू के महाबली सिंह और गया से विजय मांझी की सीटें भी राजग के दूसरे घटक दलों को समझौते में चली गईं। काराकाट से रालोमो के उपेंद्र कुशवाहा और गया से हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी उम्मीदवार बने।

सिवान से जदयू की कविता कुमारी को जाति संतुलन बनाने के कारण बेटिकट किया गया। उनकी जगह राजपूत जाति से आने वाली पूर्व सांसद लवली आनंद को जदयू ने शिवहर से उम्मीदवार बनाया।

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