Bihar News: चुनावी रण में नजर नहीं आ रहे NDA के एक तिहाई सांसद; क्या बगावत कर के भी महासमर में कूद सकते हैं ये नेता?
Lok Sabha election 2024 देश में 18वीं लोकसभा के सात चरण में चुनाव हैं। दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया जारी है। पांच साल पहले राजग के घटक दलों के टिकट पर चुनाव जीते 39 में 13 सांसद 2024 के चुनावी मैदान से बिना लड़े ही बाहर हो गए हैं। क्या ये नेता गठबंधन या दल से बगावत कर चुनावी मैदान में कूदेंगे...?
अरुण अशेष, पटना। पांच साल पहले राजग के घटक दलों के टिकट पर चुनाव जीते 39 में 13 सांसद 2024 के चुनावी मैदान से बिना लड़े ही बाहर हो गए हैं। इनमें से कुछ की उम्मीद समाप्त नहीं हुई है। संभव है एक या दो सांसद अपने गठबंधन या दल से बगावत कर मैदान में कूद पड़ें। क्योंकि अभी सिर्फ पहले चरण की चार सीटों के लिए नामांकन समाप्त हुआ है।
दूसरे चरण के लिए नामांकन चल रहे हैं। पांच और चरण की अधिसूचना नहीं हुई है। 2019 में लोजपा के टिकट पर समस्तीपुर से जीते लोजपा के रामचंद्र पासवान और जदयू के टिकट पर वाल्मीकि नगर से जीते वैद्यनाथ प्रसाद महतो का निधन हो गया। उसके बाद के उप चुनाव में दोनों सीटों पर दिवंगत सांसदों के पुत्रों-क्रमश: प्रिंस राज और सुनील कुमार की जीत हुई।
प्रिंस राज के चुनाव लड़ने पर संदेह है। उनकी पार्टी रालोजपा तय नहीं कर पा रही है कि चुनाव लड़ें या राजग में रहकर वैकल्पिक प्रबंध करें। सुनील कुमार को जदयू ने फिर वाल्मीकि नगर से उम्मीदवार बनाया है।
प्रिंस राज इकलौते सांसद नहीं हैं, जो 2019 में लोजपा के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद असमंजस की स्थिति में हैं। उनके चाचा पशुपति कुमार पारस (हाजीपुर), चौधरी महबूब अली कैसर (खगड़िया) और चंदन कुमार (नवादा) की भी यही गति है।
बेटिकट होने के बाद भाजपा सांसद रमा देवी (शिवहर), छेदी पासवान (सासाराम), अजय निषाद (मुजफ्फरपुर), अश्विनी चौबे (बक्सर) के अलावा जदयू के महाबली सिंह (काराकाट), सुनील कुमार पिंटू (सीतामढ़ी), कविता सिंह (सिवान) एवं विजय मांझी (गया) के बारे में भी यह चर्चा नहीं है कि ये सब किसी अन्य दल से टिकट लेने का प्रयास कर रहे हैं।
बाहर रहने के अलग-अलग कारण
इन सांसदों के चुनावी मैदान से अलग रहने के अलग-अलग कारण हैं। लोजपा टिकट पर जीते चार सांसद पार्टी की अंदरूनी लड़ाई के शिकार हुए। लोजपा के छह में से पांच सांसद रालोजपा के नाम से अलग पार्टी बनाकर राजग के साथ हो गए थे। पार्टी के दूसरे गुट में चिराग पासवान अकेले रह गए थे। लेकिन, राजग के आंतरिक मूल्यांकन में पाया गया कि पशुपति कुमार पारस की अगुआई वाली रालोजपा को साथ रखना लाभप्रद नहीं है।
चिराग की पार्टी लोजपा (रा) से राजग का समझौता हुआ। चिराग ने अपने अलावा लोजपा टिकट पर जीती वीणा देवी को वैशाली से उम्मीदवार बनाया। बाकी को अपने भरोसे छोड़ दिया।