Move to Jagran APP

ओवरकॉन्फिडेंस या विपक्ष को कमजोर आंकना… BJP ने कहां कर दी बड़ी चूक

लोकसभा चुनाव में कई ऐसे मुद्दे रहे जो सुर्खियों में रहे। जिन पर चर्चा भी खूब हुई। जिन्होंने मतदाताओं के दिलों को भी छुआ। मगर भाजपा ने उनकी अनदेखी कर दी। इसी का नतीजा है कि भाजपा पूर्ण बहुमत से चूक गई है और अब उसे गठबंधन के बल पर सरकार बनानी पड़ेगी। इस विश्लेषण में पढ़िए उनके बारे में…

By Jagran News Edited By: Ruhee Parvez Updated: Wed, 05 Jun 2024 07:49 PM (IST)
Hero Image
चुनाव में जनता की नब्ज नहीं पकड़ पाए पीएम, राहुल गांधी ने दिलों को छुआ। फोटो: जागरण ग्राफिक्स।
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। मगर, जनता ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया है। इस आंकड़ों के पीछे ऐसी कई वजहें हैं, जो सुर्खियों में रहीं, लेकिन उनकी अनदेखी की कीमत भाजपा ने चुकाई है। जानिए मोदी सरकार को चुनावों में अपेक्षा के विपरीत नतीजे देखने को क्यों मिले…। 

ब्रांड मोदी की चमक पड़ी फीकी

लोकसभा का चुनाव भाजपा ने कमल के निशान पर नहीं, मोदी के नाम पर लड़ा। मगर, जैसा कि कहा जाता है कि किसी भी चीज की चमक हमेशा एक जैसी नहीं रहती है, मोदी के नाम की चमक भी फीकी पड़ गई। गिरता हुआ वोट शेयर इस बात की गवाही दे रहा है कि ब्रांड मोदी के प्रति लोगों का आकर्षण कम हुआ है।

हालांकि, इसमें संदेह नहीं है कि वह अभी भी सबसे बड़े नेता हैं, जिन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला है। रोजगार का मुद्दा, नौकरियों पर संकट, बढ़ती महंगाई, ग्रामीणों की आय में कमी जैसे मुद्दों पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया, जो आम लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे और हैं।

इनकी बजाय ‘मोदी की गारंटी’ इस चुनाव की थीम बन गई। मगर, वोटर को अपने मुद्दों पर सरकार से कोई गारंटी नहीं मिली। यही वजह रही कि जिस उत्तर प्रदेश को पीएम मोदी ने चुनाव लड़ने के लिए चुना, वहीं से उन्हें इस बार जबदस्त झटका लगा है। 

न था कोई राष्ट्रीय मुद्दा और न थी मोदी लहर 

साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पास राष्ट्रीय मुद्दे थे। लिहाजा, मोदी की लहर भी थी। मगर, इस बार के चुनाव में कोई बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा नहीं था, जिससे आम जनता सीधे जुड़ पाती। ऐसी स्थिति में स्थानीय मुद्दे, जातिगत समीकरण, रोजगार और रोजी-रोटी के मुद्दे महत्वपूर्ण बन गए।

इन मामलों में मोदी सरकार कोई बड़ी तस्वीर उकेरने में नाकाम रही। अग्निवीर योजना से न सिर्फ कई युवा उम्मीदवार नाखुश थे, बल्कि पंजाब और हरियाणा में यह भाजपा के लिए बाधक बनी। 

हिंदुत्व का मुद्दा काम न आया, अल्पसंख्यकों ने किया खेल 

राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को भाजपा अपने स्थापना (1980) के समय से ही भुना रही थी। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ मंदिर से राम मंदिर निर्माण के लिए पूरे देश भर में रथ यात्रा की शुरुआत की थी। साल 2024 में भव्य रूप से इसे साकार किया गया।

हालांकि, हिंदुत्व के इस मुद्दे ने भी भाजपा के लिए काम नहीं किया। भाजपा ने ये मैसेज भी लोगों तक पहुंचाया कि कांग्रेस की सरकार बनते ही अल्पसंख्यकों के लिए खजाने खोल दिए जाएंगे और हिंदुओं को इसका नुकसान उठाना होगा। भाजपा के ध्रुवीकरण की इस रणनीति को भी यूपी के मतदाताओं ने नकार दिया। 

उधर, हर कोई यह जानता था कि मुस्लिमों का वोट भाजपा के खिलाफ जाएगा। भाजपा को भी इसका अंदेशा पहले से ही था। अल्पसंख्यकों के एकतरफा सपा और कांग्रेस को मिले यूपी में वोट ने यह बात साबित कर दी। वहीं, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को मुस्लिम वोट थोक के भाव में मिला।

इतना ही नहीं, ममता बनर्जी ने अपने गैर-अल्पसंख्यक वोट बैंक को जस का तस बनाए रखा। अल्पसंख्यकों के वोटों ने भाजपा के पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में बड़ा अंतर पैदा कर दिया।  

मोदी की भाजपा को अभी भी जरूरत है संघ की 

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों से रिपोर्ट्स आई हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के चुनावी अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लिया। गौरतलब है कि मंदिर की वजह से यूपी, संघ के मुख्यालय की वजह से महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में भाजपा के सबसे बड़े बेस के लिए कर्नाटक महत्वपूर्ण था।

एक इंटरव्यू में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पार्टी एक संस्था के रूप में बढ़ी है, उसे ‘क्रूशियल सपोर्ट सिस्टम’ के रूप में संघ की जरूरत नहीं है। मगर, चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि मोदी की भाजपा को अभी भी संघ की जरूरत है।  

संविधान को बदलने के बयान पर नहीं की बात 

‘इस बार 400 पार’ के भाजपा के नारे के बाद कई नेताओं ने बड़बोलेपन में बोल दिया कि भाजपा संविधान को बदल देगी। इस पर आईएनडीआईए ने मुद्दे को उठाया कि भाजपा एससी/एसटी के आरक्षण को खत्म करना चाहती है। यूपी में इस मुद्दे ने बड़ा प्रभावशाली रूप दिखाया।

हालांकि, भाजपा के नेताओं को मतदाताओं को सुनिश्चित कराना चाहिए था कि संविधान को बदलने की उनकी कोई मंशा नहीं है। आरक्षण के मुद्दे पर भी वे कोई विचार नहीं कर रहे हैं। मगर, ऐसा करने में विफल रहे। साथ ही भाजपा ने एससी-एसटी कोटा छीनकर मुस्लिमों को देने के कांग्रेस की योजना के मुद्दे को उठाया। मगर, इसे भी पूरी तरह से जनता तक पहुंचाने में वह नाकाम रही। 

विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी भुना नहीं पाई 

भाजपा ने विपक्ष के कई नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बात को बड़े अच्छे तरीके से उठाया। मगर, वह इसका फायदा नहीं उठा पाई। इसकी दो वजहें थीं। पहली, कई मतदाताओं को लगा कि विपक्ष के नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया गया था। दूसरी, भ्रष्टाचार में लिप्त जो नेता भाजपा के साथ जुड़ रहे थे, उनका स्वागत हो रहा था। उन्हें लेकर भाजपा को कोई परेशानी नहीं थी। महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजों ने इस बात को साबित कर दिया।

भारत जोड़ो न्याय यात्रा से राहुल ने पहुंचाई अपनी बात 

साल 2014 में पहली बार भाजपा की सरकार बनने के बाद से राहुल गांधी को कई मौकों पर ‘पप्पू’ और ‘शहजादे’ कहकर उनका मजाक बनाया गया। कांग्रेस में राहुल गांधी के करीबी लोगों ने उन्हें कम आक्रामक होने की सलाह दी, लेकिन राहुल गांधी ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह कई राजनीतिक दलों को सहयोगियों के तौर पर साथ लाए और आईएनडीआईए बनाया।

उन्होंने आम लोगों की रोजी-रोटी की बात जोर-शोर से उठाई। दो बार भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिये उन्होंने अपनी बात जनता तक पहुंचाई और लोगों ने उन्हें सुना। जिस उत्तर भारत में भाजपा पिछले 10 साल से अपना वर्चस्व बनाए हुए थी, वहां उन्होंने कांग्रेस को वापस मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया। 

पहले शक था… क्या प्रमुख विपक्षी दल बनेगी कांग्रेस? 

आईएनडीआईए बनने के समय ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, शरद पवार, उद्धव ठाकरे सहित कई विपक्षी कद्दावर नेताओं को शक था कि कांग्रेस विपक्षी दलों का नेतृत्व कर सकता है। दरअसल, कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनावों में बुरी तरह हारी थी।

हालांकि, यह बात भी सही है कि भाजपा की सीटों के गिरने और बहुमत को खोने का सबसे बड़ा फायदा क्षेत्रीय दलों की तुलना में कांग्रेस को ही होना था। लिहाजा, विपक्षी दल कांग्रेस के साथ जुड़ गए। हुआ भी यही, इस बार कांग्रेस 100 के आंकड़े के करीब है और उत्तर प्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र में भी अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है। लिहाजा, यह कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस ही करेगी।

Quiz

Correct Rate: 0/3
Correct Streak: 0
Response Time: 0s

कहानी फिल्म की मुख्य नायिका कौन थी

  • करीना कपूर
  • आलिया भट्ट
  • विद्या बालन
  • सोनाक्षी सिन्हा