रामनगर में आधी रात तक इंदिरा गांधी को सुनने के लिए जमे हुए थे लोग, जानिए पूरा किस्सा
लोकसभा भंग होने के बाद इंदिरा गांधी ने 4 दिसंबर 1979 में कार से रुद्रपुर काशीपुर हल्द्वानी अल्मोड़ा का तूफानी दौरा किया था। तब उनसे मिलने वालों का जगह-जगह हूजूम उमड़ पड़ा।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 04 Apr 2019 09:27 AM (IST)
रामनगर, विनोद पपनै : 1979 का वह दौर आज भी पुराने लोगों के जेहन में है जिन्होंने आयरन लेडी इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल होते देखा था। फिर चुनाव का बिगुल बजा तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संकल्प के साथ दोबारा सत्ता हासिल भी की। वह तब पहाड़ आई और तूफानी दौरा कर मध्यरात्रि में जनसभा को संबोधित किया। जहां-जहां से उनका काफिला गुजरा उनके चाहने वाले रात में चीड़ की लकड़ी के छिलके जला इंतजार करते मिले। तब कार से दौरे पर आई इंदिरा ने जगह-जगह उतरकर न केवल जनता से संवाद किया बल्कि उत्तराखंड (तब उप्र) की चारों सीटों से प्रत्याशियों को जिता ले गई। साथ की केंद्र की सत्ता में फिर दमदार वापसी भी की।
आपातकाल के काले बादल छंटने के बाद परिणामस्वरूप 1977 में जिस गैर कांग्रेसी सरकार का प्रयोग हुआ था उसने 1980 आते-आते दम तोड़ दिया। उस समय जनता पार्टी में शामिल विभिन्न घटक दलों के नेताओं ने अपनी आपसी कलह से कांग्रेस और इंदिरा गांधी के फि र से सत्ता में लौटने का रास्ता साफ कर दिया था। राजीनीतिक घटक दलों की आपसी फूट के कारण 22 अगस्त 1979 को लोकसभा भंग कर दी गयी थी। जनवरी 1980 में मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई। लोकसभा भंग होने के बाद इंदिरा गांधी ने 4 दिसंबर 1979 में कार से रुद्रपुर, काशीपुर, हल्द्वानी, अल्मोड़ा का तूफानी दौरा किया था। उस दौर को याद करते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी अनिल अग्रवाल बताते है कि तब उनसे मिलने वालों का जगह-जगह हूजूम उमड़ पड़ा। लोग नजदीक से इंदिरा जी को देखने और मिलने को उतावले थे।
आपातकाल के काले बादल छंटने के बाद परिणामस्वरूप 1977 में जिस गैर कांग्रेसी सरकार का प्रयोग हुआ था उसने 1980 आते-आते दम तोड़ दिया। उस समय जनता पार्टी में शामिल विभिन्न घटक दलों के नेताओं ने अपनी आपसी कलह से कांग्रेस और इंदिरा गांधी के फि र से सत्ता में लौटने का रास्ता साफ कर दिया था। राजीनीतिक घटक दलों की आपसी फूट के कारण 22 अगस्त 1979 को लोकसभा भंग कर दी गयी थी। जनवरी 1980 में मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई। लोकसभा भंग होने के बाद इंदिरा गांधी ने 4 दिसंबर 1979 में कार से रुद्रपुर, काशीपुर, हल्द्वानी, अल्मोड़ा का तूफानी दौरा किया था। उस दौर को याद करते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी अनिल अग्रवाल बताते है कि तब उनसे मिलने वालों का जगह-जगह हूजूम उमड़ पड़ा। लोग नजदीक से इंदिरा जी को देखने और मिलने को उतावले थे।
आलम यह था कि दिन में 12 बजे उनकी सभा अल्मोड़ा में होनी थी और लोगों से मिलते-मिलाते वह शाम पांच बजे वहां पहुंच सकीं। तब हरीश रावत अल्मोड़ा से प्रत्याशी थे। सभा के बाद वह कोसी, मजखाली, रानीखेत, ताड़ीखेत, भतरौजखान, टोटाम, कुमेरिया होते हुए मोहान पहुंचीं।
दिसंबर की सर्द रातों में शाम को छह बजे ही अंधेरा हो जाया करता है। उस समय भी जगह-जगह पहाड़ की सैकड़ों महिलाएं पुरूषों के साथ उजाले के लिए चीड़ के छिलके जलाकर इंदिरा गांधी के दीदार को रुके थे। हर जगह इंदिरा गांधी ने कार से उतरकर अभिवादन स्वीकार किया और एक स्थायी सरकार बनाने की अपील लोगों से की। इधर, रामनगर के एमपी इंटर कालेज में उनकी सभा होनी थी। सभा के आयोजक पंडित खगीराम पपनै, वीरेंद्र कुमार अनाड़ी, हरिकिशन जोशी, त्रिलोक सिंह, कृष्णा नंदन हुंडीवाल (सभी दिवंगत) के चेहरों पर चिंता की लकीरें थी कि अब रात हो चुकी है और जनता रुकने वाली नहीं हैं। माइक से आयोजक उनके रामनगर से करीब 25 किमी दूर मोहान तक पहुंच जाने की घोषणा करते रहे। हालांकि जनता खुद ही इंदिरा गांधी का भाषण सुनने को वहीं जमी रही। रात को 12 बजे इंदिरा गांधी जैसे ही एमपी इंटर कालेज के मैदान पर पहुचीं तो करीब 15-16 हजार लोगों की भीड़ ने इंदिरा जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। भीड़ के उत्साह से गदगद इंदिरा गांधी ने भी गर्मजोशी के साथ अभिवादन किया। पालिकाध्यक्ष मो. अकरम बताते है तब लोगो ने जिस तरह इंदिरा गांधी को हाथों-हाथ लिया उससे अंदाजा हो गया था कि इस बार उनकी आंधी अन्य राजनीतिक दलों को उड़ाकर रख देगी। हुआ भी यही। उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के गढ़वाल से हेमवती नंदन बहुगुणा टिहरी से त्रेपन सिंह नेगी, अल्मोड़ा से हरीश रावत, नैनीताल-बहेड़ी संसदीय क्षेत्र से नारायण दत्त तिवारी भारी बहुमत से जीते। देश में कांग्रेस को 492 में से 353 सीटों पर विजय हासिल हुई और फिर से इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो गई थी।
दिसंबर की सर्द रातों में शाम को छह बजे ही अंधेरा हो जाया करता है। उस समय भी जगह-जगह पहाड़ की सैकड़ों महिलाएं पुरूषों के साथ उजाले के लिए चीड़ के छिलके जलाकर इंदिरा गांधी के दीदार को रुके थे। हर जगह इंदिरा गांधी ने कार से उतरकर अभिवादन स्वीकार किया और एक स्थायी सरकार बनाने की अपील लोगों से की। इधर, रामनगर के एमपी इंटर कालेज में उनकी सभा होनी थी। सभा के आयोजक पंडित खगीराम पपनै, वीरेंद्र कुमार अनाड़ी, हरिकिशन जोशी, त्रिलोक सिंह, कृष्णा नंदन हुंडीवाल (सभी दिवंगत) के चेहरों पर चिंता की लकीरें थी कि अब रात हो चुकी है और जनता रुकने वाली नहीं हैं। माइक से आयोजक उनके रामनगर से करीब 25 किमी दूर मोहान तक पहुंच जाने की घोषणा करते रहे। हालांकि जनता खुद ही इंदिरा गांधी का भाषण सुनने को वहीं जमी रही। रात को 12 बजे इंदिरा गांधी जैसे ही एमपी इंटर कालेज के मैदान पर पहुचीं तो करीब 15-16 हजार लोगों की भीड़ ने इंदिरा जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। भीड़ के उत्साह से गदगद इंदिरा गांधी ने भी गर्मजोशी के साथ अभिवादन किया। पालिकाध्यक्ष मो. अकरम बताते है तब लोगो ने जिस तरह इंदिरा गांधी को हाथों-हाथ लिया उससे अंदाजा हो गया था कि इस बार उनकी आंधी अन्य राजनीतिक दलों को उड़ाकर रख देगी। हुआ भी यही। उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के गढ़वाल से हेमवती नंदन बहुगुणा टिहरी से त्रेपन सिंह नेगी, अल्मोड़ा से हरीश रावत, नैनीताल-बहेड़ी संसदीय क्षेत्र से नारायण दत्त तिवारी भारी बहुमत से जीते। देश में कांग्रेस को 492 में से 353 सीटों पर विजय हासिल हुई और फिर से इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो गई थी।
जब माला पहनाने पर नाराज हो गई थीं इंदिरा
उस समय मंच पर एक शिक्षक ने इंदिरा गांधी के गले में माला डालने की कोशिश की तो वह नाराज हो गईं। उन्होंने शिक्षक को समझाया कि महिलाओं के गले में नहीं बल्कि हाथों में माला देने की पंरपरा कायम रखिए। हालांकि इंदिरा को महसूस हुआ कि शिक्षक को बुरा लगा। इस पर सभा के बाद इंदिरा ने शिक्षक से अलग से बात भी की थी। अब वह शिक्षक भी दिवंगत हो चुके हैं। यह भी पढ़ें : जनता बदलाव मांगती है, एचएमटी की तरह ठहराव नहीं, मुसाफिरों ने साझा की मन की बात
उस समय मंच पर एक शिक्षक ने इंदिरा गांधी के गले में माला डालने की कोशिश की तो वह नाराज हो गईं। उन्होंने शिक्षक को समझाया कि महिलाओं के गले में नहीं बल्कि हाथों में माला देने की पंरपरा कायम रखिए। हालांकि इंदिरा को महसूस हुआ कि शिक्षक को बुरा लगा। इस पर सभा के बाद इंदिरा ने शिक्षक से अलग से बात भी की थी। अब वह शिक्षक भी दिवंगत हो चुके हैं। यह भी पढ़ें : जनता बदलाव मांगती है, एचएमटी की तरह ठहराव नहीं, मुसाफिरों ने साझा की मन की बात