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Chunavi किस्सा: फणीश्वरनाथ रेणु ने हार के बाद खाई थी चौथी कसम; फिर बेटे ने ऐसे किया हिसाब बराबर

Lok Sabha Election 2024 and Chunavi Kissa चुनावी किस्सों की सीरीज में आज हम आपके लिए लाए हैं फणीश्वरनाथ रेणु के चौथी कसम खाने की बेहद रोचक कहानी।  1972 में बिहार में अररिया जिले के फारबिसगंज से विधानसभा चुनाव में  उतरे लेकिन हार गए। इसके बाद उन्होंने चौथी कसम खाई थी। पढ़िए वो कसम क्‍या थी जिस पर वह मरते दम तक अडिग रहे...

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Thu, 11 Apr 2024 10:14 AM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: फणीश्वरनाथ रेणु ने हार के बाद खाई थी चौथी कसम
चुनाव डेस्क, नई दिल्‍ली। अमरकथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ के किरदार हीरामन ने तीन कसम खाई थीं। चुनावी अनुभव ने रेणु को असल जिंदगी में कसम खाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने इसे चौथी कसम करार दिया।

उनके पुत्र डीपी राय बताते हैं कि 1972 में बिहार में अररिया जिले के फारबिसगंज से विस चुनाव में कड़वे अनुभव से उनके पिता काफी आहत हुए थे। जिस पर काफी भरोसा था, वह भी दगा दे गए। सियासी दलदल से रूबरू होने के बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ने की कसम ली थी, जिसपर अंतिम समय तक अडिग रहे। रेणु 1972 में पूरी ताकत और अपने अलहदा अंदाज में चुनाव लड़े।

चुनावी सभाओं में सुनाते थे किस्से-कहानियां

डीपी राय बताते हैं कि वह चुनावी सभाओं में किस्से-कहानियां, भजन व गीत भी सुनाते थे। उनका एक खास चुनावी नारा था-कह दो गांव-गांव में, अबके इस चुनाव में वोट देंगे नाव में। उनका मुकाबला कांग्रेस के कद्दावर नेता सरयू मिश्रा से था। उनकी चुनावी सभाओं में रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, सुमित्रा नंदन पंत, रघुवीर सहाय जैसे शीर्ष साहित्यकार भी शामिल होते थे।

प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के सरयू मिश्रा और सोशलिस्ट पार्टी के लखन लाल कपूर से उनकी पुरानी दोस्ती थी। साल 1942 के आंदोलन में तीनों मित्र भागलपुर जेल में बंद थे। विचारों में विरोध की वजह से 1972 में तीनों एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े। रेणु किसान, मजदूर और अवाम की समस्याओं को सामने लाना चाहते थे।

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बेटे ने पूरी की भरपाई

इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सरयू मिश्रा ने लगभग 48 प्रतिशत वोट हासिल कर जीत हासिल की थी। सोशलिस्ट पार्टी के लखन लाल कपूर को 26, बीजेएस के उम्मीदवार जय नंदन को 13 तथा रेणु जी को 10 प्रतिशत वोट मिले थे। रेणु जी के उस चुनाव में हार की भारपाई 2010 में उनके बड़े बेटे पद्म पराग राय ‘वेणु’ ने फारबिसगंज से जीत कर की।

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रेणु जी के तीन बेटों में सबसे छोटे दक्षिणेश्वर प्रसाद राय बताते हैं कि साल 1972 से ही रेणु परिवार का राजनीति में खूब इस्तेमाल होता रहा है। राजनीति में कई जोड़ तोड़ होते हैं, जिसे समझ पाना मुश्किल है। रेणु के ‘मारे गए गुलफाम’ उपन्यास पर फिल्म तीसरी कसम बनी थी। रेणु की पुण्यतिथि 11 अप्रैल को है।

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