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पिता से मिली राजनीतिक विरासत… इन 3 युवा नेताओं ने खुद के दम पर बनाई सियासी पहचान

अखिलेश विदेश में पढ़े चिराग ने फिल्मों में हाथ आजमाया और तेजस्वी ने क्रिकेट में करियर बनाने की कोशिश की। इसके बाद तीनों युवा नेता अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए आगे आ गए। अखिलेश यादव ने इस लोकसभा चुनाव में कमाल किया है। वहीं चिराग ने उनकी पार्टी को मिली सभी पांच सीटें जितवाई हैं। वहीं तेजस्वी की राजनीतिक काबिलयत भी लोगों को दिखी है।

By Jagran News Edited By: Ruhee Parvez Updated: Fri, 07 Jun 2024 12:58 PM (IST)
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अखिलेश यादव, चिराग पासवान ने लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। तेजस्वी को अभी लंबा सफर तय करना है।

शशांक शेखर बाजपेई, नई दिल्ली। बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में 18 मार्च 1974 को छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई। जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक साल तक चले इस आंदोलन से कई नेता जन्मे और राजनीति में उन्होंने अपनी पहचान बनाई। इनमें बिहार से लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के अलावा यूपी से मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे। 

मुलायम सिंह यादव और राम विलास पासवान जेपी आंदोलन में शामिल नहीं हुए थे। मगर, इमरजेंसी के दौरान जेल जाकर दोनों नेताओं की पहचान समाजवादी नेता के तौर पर स्थापित हो गई थी। जनता पार्टी के झंडे तले पनपे इन इन तीनों नेताओं की राजनीतिक विरासत अब इनके बेटों ने संभाल ली है।   

पिता ने बनाई पार्टी, बेटों ने संभाली कमान 

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने सपा की नींव रखी थी, जिसे अब उनके बेटे अखिलेश यादव संभाल रहे हैं। रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की नींव रखी थी, जिसकी कमान अब उनके बेटे चिराग पासवान संभाल रहे हैं। वहीं, लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की कमान अब उनके बेटे तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं।

खास बात यह है कि तीनों ही युवा नेता अपने पिता की छाया से निकलकर अपनी सियासी जमीन खुद बना रहे हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में इन सभी ने अपनी उपस्थिति राजनीतिक पटल पर दर्ज करा दी है। 

अखिलेश का M-Y फैक्टर से लेकर PDA तक का सफर 

विदेश में पढ़े अखिलेश यादव ने साल 2012 में पहली बार यूपी में सत्ता हासिल की। वो नए विजन के साथ आए और यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद विकास उनका मूलमंत्र था। उन्होंने पारंपरिक M-Y फैक्टर यानी मुस्लिम और यादव वोट बैंक के साथ पार्टी की कमान संभाली थी। 

मगर, वह 2017 में विधानसभा चुनाव हार गए और तब से ही सत्ता से दूर हैं। इधर, लोकसभा चुनाव 2024 में उन्होंने इस बार पीडीए यानी पिछडे़, दलित और अल्पसंख्यकों की बात की। इसी का नतीजा है कि यूपी की कुल 80 सीटों में सबसे ज्यादा 37 सीटें हासिल करने में सफल रहे हैं। वहीं, भाजपा को 33 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। 

पासवान की राजनीतिक विरासत के ‘चिराग’

चिराग पासवान को अपने पिता रामविलास पासवान से राजनीति विरासत में मिली है। पिता के निधन के बाद वह साल 2019 से 2021 तक लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रहे। पार्टी में टूट के बाद साल 2021 में वह लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के पहले अध्यक्ष बने। हालांकि, वह राजनीति में साल 2014 से सक्रिय हो गए थे। 

इस बार के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान के नेतृत्व में उनकी लोक जनशक्ति पार्टी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा। मजेदार बात यह है कि सभी सीटों पर उनकी पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत भी हासिल की है। हालांकि, वह पिता की परछाई से बाहर निकल आए हैं, लेकिन अभी भी उन्हें राजनीति में एक लंबा सफर तय करना है। 

बताते चलें कि चिराग ने तीसरे सेमेस्टर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी थी। फिर फिल्म इंडस्ट्री में हाथ आजमाने के लिए मुंबई चले गए। साल 2011 में हिंदी फिल्म ‘मिले ना मिले हम’ में कंगना रनौत के साथ काम किया। इसके बाद वह वापस बिहार आ गए और राजनीति में सक्रिय हो गए थे।

लालू के छोटे बेटे का ‘तेजस्वी’ सफर 

अब बात करते हैं लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव की। उन्होंने सिर्फ 9वीं तक पढ़ाई की और क्रिकेट में करियर बनाने चले गए। आईपीएल में 'दिल्ली डेयरडेविल्स' ने उन्हें खरीदा, लेकिन क्रिकेट की पिच पर वह नाकाम रहे। फिर राजनीति में करियर बनाने के लिए सियासी बैटिंग करने उतरे, तो राधोपुर विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की। 

इसके बाद ही लालू प्रसाद यादव ने तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। बिहार में महागठबंधन-2 की सरकार बनी, तो ये चर्चा भी हुई कि 2023 में तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप देंगे। नीतीश कुमार को पीएम पद के लिए प्रोजेक्ट किया जाएगा। हालांकि, बिहार में बदले सियासी गुणा-गणित में नीतीश कुमार ने पलटी मार दी और तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। 

साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में आईएनडीआईए के प्रचार की कमान तेजस्वी यादव ने संभाली। उन्होंने 250 से ज्यादा रैलियां कीं, जिसमें भारी भीड़ उमड़ती थी। बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा जोर-शोर से उठाते हुए राज्य की 40 में से 23 सीटों पर आरजेडी ने तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। हालांकि, जीत महज चार सीटों पर ही मिली है। बावजूद इसके यह कहा जा सकता है कि तेजस्वी का राजनीति में अभी सफर लंबा है।