Lok Sabha Election 2019: स्टार प्रचारकों का राजनैतिक समाजशास्त्र
महासमर में आमने-सामने ताल ठोके खड़ी सियासी पार्टियों ने अब प्रचार अभियान में उत्तराखंड में अपना सब कुछ झोंक दिया है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 08 Apr 2019 11:58 AM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड में पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान है, लिहाजा महासमर में आमने-सामने ताल ठोके खड़ी सियासी पार्टियों ने अब प्रचार अभियान में अपना सब कुछ झोंक दिया है। भाजपा, कांग्रेस और बसपा के शीर्ष नेता बतौर स्टार कैंपेनर उत्तराखंड में जनसभाएं कर चुके हैं, जबकि अगले दो दिनों में कुछ और नेता आमद दर्ज कराने की तैयारी में हैं। भाजपा के निशाने पर स्वाभाविक रूप से उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है तो कांग्रेस के लिए भाजपा। उधर, सपा के साथ गठबंधन में मैदान में उतरी बसपा दो लोकसभा सीटों हरिद्वार और नैनीताल को लक्ष्य कर चल रही है तो मुकाबले को त्रिकोणीय शक्ल देने के लिए उसने एक साथ भाजपा-कांग्रेस पर हमला बोला है। इस सबके बीच यह बड़ा सवाल अपनी जगह कायम है कि मतदाता किस पार्टी के स्टार प्रचारकों से प्रभावित होंगे और किन मुद्दों के आधार पर मतदान करेंगे।
मोदी, शाह से लेकर राहुल और मायावतीभाजपा ने पिछली बार राज्य की सभी पांचों सीटें अपनी झोली में डाली थीं तो इस बार भी पार्टी इसी प्रदर्शन को दोहराने की उम्मीद कर रही है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रुद्रपुर व देहरादून में दो जनसभाएं कर चुके हैं, जबकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तरकाशी में एक जनसभा की और अब सोमवार को अल्मोड़ा में जनसभा का कार्यक्रम है। मोदी और शाह के जवाब में कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को बतौर स्टार प्रचारक जिम्मा सौंपा। राहुल ने पहली सभा 16 मार्च को देहरादून में की और फिर इसी शनिवार को चंद घंटों में ताबड़तोड़ तीन लोकसभा सीटों पर रैलियां निबटाई। बसपा हालांकि चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है लेकिन इनमें से हरिद्वार व नैनीताल में वह मुकाबले का तीसरा कोण बन सकती है। लिहाजा बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी एक ही दिन इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में मतदाताओं को संबोधित किया।
समूह विशेष पर असर डालने वाले नेताअब जबकि चुनाव प्रचार अंतिम दौर में है, भाजपा और कांग्रेस उन स्टार प्रचारकों को कमान सौंपने की रणनीति अमल में ला रही हैं, जो मतदाताओं के समूह विशेष को आकर्षित और प्रभावित कर सकते हैं। ये समूह क्षेत्रीय, जातीय और समुदाय विशेष के साथ ही सेलेब्रिटी को पंसद करने वाले होते हैं। मसलन, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी दो सभाएं कर चुके हैं। सैन्य बहुल राज्य होने के कारण रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह, तो अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए राष्ट्रीय प्रवक्ता शहनवाज हुसैन की जनसभाएं हुई हैं। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर प्रदेश से लगती सीमा पर चुनावी सभाएं कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की भी डिमांड है। कांगे्रस की ओर से गुर्जर मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने के लिए राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की सभाएं हुई है।
सबके मुद्दे अलग, मगर लक्ष्य एक सभी पार्टियों के स्टार प्रचारक भले ही अलग-अलग मुद्दों पर जनादेश मांग रहे हैं, लेकिन लक्ष्य सबका एक ही है, जीत। भाजपा के निशाने पर मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ही है। भाजपा सैन्य बहुल राज्य होने के कारण सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, वन रैंक-वन पेंशन, कांग्रेस के घोषणापत्र में अफस्पा व देशद्रोह कानून को लेकर शामिल किए गए बिंदु और भ्रष्टाचार पर कांग्रेस को निशाने पर लिए हुए है। कांग्रेस नोटबंदी, जीएसटी, किसानों की कर्जमाफी और भ्रष्टाचार पर भाजपा को कठघरे में खड़ा कर रही है, जबकि गरीब तबके लिए सालाना 72 हजार की न्याय योजना उसका नया सियासी अस्त्र है। उधर, बसपा के निशाने पर भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही हैं। कांग्रेस को घोटालों, पार्टी के घोषणापत्र और भाजपा को सांप्रदायिक व अल्पसंख्यक विरोधी बताते हुए अपने वादे पूरा न करने का दोषी ठहरा रही है।
सुनी सबकी, मगर करेंगे मन की इस सबके बीच यह अहम सवाल अपनी जगह कायम है कि मतदाता किस पार्टी के कौन से स्टार प्रचारक की वोट अपील से प्रभावित हुए। वैसे भी, उत्तराखंड 80 फीसद से ज्यादा साक्षरता दर वाला सैन्य पृष्ठभूमि का राज्य है और यहां के मतदाता का रुझान लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति ही रहता आया है। पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजे इसके प्रमाण हैं जब वर्ष 2009 में कांग्रेस और वर्ष 2014 में भाजपा ने सभी पांचों सीटों पर परचम फहराया। अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि 78 लाख से ज्यादा मतदाता इस बार किस बयार में बहकर अपना फैसला सुनाते हैं।
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