Lok Sabha ELection 2019: दो सीटों से चुनाव लड़ने को मजबूर, कांग्रेस की इकलौती उम्मीद हैं राहुल
भाजपा केरल में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है उसने विपक्ष को सोचने पर मजबूर कर दिया है। केरल में 20 लोकसभा सीटे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में वायनाड से कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव जीते थे।
By Dhyanendra SinghEdited By: Updated: Fri, 05 Apr 2019 10:13 AM (IST)
पी बसंत। केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के फैसले ने इस दक्षिणी राज्य के चुनावी परिदृश्य को बदलकर रख दिया है। हफ्तेभर की उठापटक के बाद कांग्रेस हाईकमान ने अंतत: उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट के साथ-साथ वायनाड से भी राहुल की उम्मीदवारी का एलान कर दिया है। दूसरी सीट के तौर पर दक्षिण से लड़ने के राहुल के फैसले की आलोचना हो रही है। केरल में 20 लोकसभा सीट हैं और कांग्रेस को अपनी गिनती बढ़ाने के लिए इनमें से ज्यादा से ज्यादा पर जीत हासिल करना बहुत जरूरी है।
केरल पिछले 30 साल से माकपा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच बंटा हुआ है। लेकिन जिस तरह से भाजपा केरल में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है, उसने दोनों पक्षों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बाद राज्य में संघ परिवार से जुड़े संगठनों की ओर से व्यापक संघर्ष देखने को मिला था।
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा इस मुद्दे को भुनाते हुए ऊंची जातियों को कांग्रेस से दूर करने की कोशिश कर रही है। वहीं वाम दल सबरीमाला मामले में भाजपा के उग्र अभियान को भुनाते हुए अल्पसंख्यक वोट बैंक को कांग्रेस से दूर करने की कोशिश में हैं।
दुश्मन कौन है, इस सवाल को अनुत्तरित छोड़ते हुए कांग्रेस और राहुल ने बड़े सवाल की ओर ध्यान देने का फैसला किया है। यह सवाल है राज्य में टिके रहने का और ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का। राहुल की उम्मीदवारी से निश्चित तौर पर केरल की सभी सीटों पर असर पड़ेगा और साथ ही दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु व कर्नाटक पर भी इसका प्रभाव दिखेगा। कांग्रेस तीनों राज्यों से कम से कम 50 सीटें हासिल करते हुए अपनी सीटों की गिनती को 100 के पार पहुंचाने की उम्मीद कर रही है।
केरल में लेफ्ट अधिकतम सीटें हासिल करना चाहता है। वाम दलों को बंगाल और त्रिपुरा से एक भी सीट मिलने की उम्मीद नहीं है। अन्य राज्यों में भी जहां वाम दल डीएमके या कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ रहे हैं, वहां से भी बहुत उम्मीद नहीं है। राजद ने बिहार में मुख्य वाम दलों को कोई सीट नहीं दी है। इसलिए चुनाव के बाद लेफ्ट, विशेष तौर पर माकपा को ऐसी तस्वीर दिख रही है, जहां उसके सीटों की संख्या इकाई में सिमट सकती है और उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी छिन सकता है।
केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन का यह कहना कि कांग्रेस की दुश्मन लेफ्ट है या भाजपा, साफ तौर पर उनकी घबराहट दिखाता है। उन्होंने इस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं की थी कि कांग्रेस अध्यक्ष केरल से चुनाव लड़ेंगे। अगर चुनाव में एलडीएफ फायदे में रही और भाजपा का वोट शेयर बढ़ा, तो कांग्रेस को अपना वोट बैंक सिकुड़ता दिखेगा। लोकसभा में कांग्रेस की कम सीट का अर्थ है कि राज्य में फिर एलडीएफ की सरकार सुनिश्चित हो जाएगी। राज्य में कांग्रेस का नेतृत्व ऐसी स्थिति नहीं चाहेगा। यही कारण है कि राज्य कांग्रेस ने राहुल पर केरल से लड़ने के लिए दबाव बनाया।
मातृभूमि न्यूज चैनल के स्थानीय संपादक