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Loksabha Election 2019: इस संसदीय सीट पर राजपरिवार के इर्द-गिर्द घूमती आई है सियासत

टिहरी संसदीय सीट पर सियासत राजपरिवार के इर्द गिर्द घूमती आई है। यही वजह है कि मौजूदा सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह को फिर से मैदान में उतारा है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 02 Apr 2019 02:14 PM (IST)
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Loksabha Election 2019: इस संसदीय सीट पर राजपरिवार के इर्द-गिर्द घूमती आई है सियासत
देहरादून, केदार दत्त। चीन सीमा से सटी उत्तराखंड की टिहरी लोकसभा सीट का भूगोल जटिल है तो सियासी भूगोल खासा रोचक। उच्च हिमालयी क्षेत्र से लेकर तराई तक पर्वतीय, घाटी व मैदानी भूभाग को खुद में समेटे इस सीट की जंग के लिए सूरमाओं ने मैदान संभाल लिया है। अभी तक की तस्वीर देंखें तो यहां मुख्य मुकाबले में भाजपा व कांग्रेस ही नजर आ रहे हैं।

भाजपा ने राज परिवार से ताल्लुक रखने वाली मौजूदा सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह को फिर से मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह पर दांव खेला है। बसपा के सत्यपाल और निर्दलीय संत गोपालमणि के अलावा 11 अन्य उम्मीदवार भी मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। मुद्दों की कसौटी पर परखें तो यहां राष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दे हावी नजर नहीं आते। इस सीट पर अब तक हुए चुनावों में छह बार भाजपा और आठ बार कांगे्रस को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। केवल दो ही ऐसे मौके आए, जब एक एक बार निर्दल और एक मर्तबा जनता दल के पास यह सीट रही। 

लोकशाही में राज परिवार की धमक 

उत्तरकाशी की नेलांग घाटी (ट्रांस हिमालय) से लेकर देहरादून के तराई तक के 14 विस क्षेत्रों को खुद में समेटे टिहरी सीट की सियासत का इतिहास भी कम रोचक नहीं है। टिहरी रियासत के भारत में विलय के बाद यहां की सियासत की धुरी में राजशाही का ही वर्चस्व रहा है। पहले लोकसभा चुनाव में यहां से राजमाता कमलेंदुमति शाह पहली सांसद बनी और वह भी बगैर किसी पार्टी के टिकट से। 10 आम चुनाव और एक उपचुनाव में टिहरी राज परिवार से ही सांसद चुने गए। साफ है कि राजशाही खत्म होने के बाद टिहरी राजघराने ने लोकशाही में भी रुतबा कायम किया। यही नहीं, सियासी दलों के लिए भी राज परिवार एक प्रकार से खेवनहार की तरह रहा है। यही कारण भी है कि टिहरी सीट की सियासत हमेशा ही राज परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। 

भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने 

मौजूदा आम चुनाव को देखें तो भाजपा ने टिहरी राजघराने से ताल्लुक रखने वाली मौजूदा सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह को फिर से मैदान में उतारा है। 2012 के उपचुनाव में जीत हासिल करने के बाद से वह यहां का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। केंद्र व राज्य सरकारों की उपलब्धियों के साथ ही राष्ट्रवाद के मुद्दे को लेकर वह जनता के बीच हैं। पार्टी का बूथ स्तर तक मजबूत सांगठनिक ढांचा और गोर्खाली वोटरों में अच्छी पकड़ को भी उनकी ताकत माना जा रहा है। हालांकि केंद्र एवं राज्य में भाजपा सरकारें होने के कारण उन्हें दोहरी एंटी इनकमबेंसी से भी जूझना पड़ेगा। क्षेत्र में कम सक्रियता और अच्छा वक्ता न होने को भी विपक्ष मुद्दा बना सकता है। 

कांग्रेस प्रत्याशी पार्टी के प्रांतीय अध्यक्ष प्रीतम सिंह की बात करें तो भले ही वह पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हों, मगर सियासत का उन्हें लंबा अनुभव है। राज्य गठन के बाद से वह लगातार विधायक हैं और जनजातीय जौनसार व रंवाई क्षेत्र में उनकी पकड़ अच्छी मानी जाती है। वह बेरोजगारी, जीएसटी, नोटबंदी, राफेल जैसे मसलों पर केंद्र सरकार को निशाने पर ले रहे हैं तो केंद्र व राज्य सरकारों की एंटी इनकमबेंसी को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह ठीक है कि प्रीतम सिंह राज्य में कांग्रेस संगठन की कमान संभाले हैं, मगर कांग्रेस में धड़ेबाजी और सभी दिग्गजों को साधना उनके लिए खासी चुनौतीभरा है। 

वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत 

फिलवक्त, यहां भाजपा और कांग्रेस में ही टक्कर दिखाई पड़ रही है। हालांकि, बसपा के सत्यपाल और निर्दलीय संत गोपालमणि समेत अन्य 11 उम्मीदवार मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश में जुटे हैं। सत्यपाल कांग्रेस और गोपालमणि भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगाने के प्रयास में जुटे हैं। 

सामाजिक ताना-बाना 

उरत्तकाशी, टिहरी व देहरादून जिलों में फैली टिहरी सीट की 62 फीसद अबादी गांवों में रहती है, जबकि 38 फीसद शहरी इलाकों में। यहां लगभग 40 फीसद राजपूत, 32 फीसद ब्राह्मण, 17 फीसद एससी-एसटी, पांच फीसद मुस्लिम, पांच फीसद गोर्खाली और एक फीसद अन्य मतदाता हैं। अच्छी बात ये है कि मतदाताओं के जागरूक होने के चलते इस सीट पर जातिगत समीकरण कभी भी उभरकर सामने नहीं आए। 

टिहरी सीट पर वोटर 

-1481214 है कुल मतदाता 

-705553 महिला मतदाता 

-775603 पुरुष मतदाता 

-12057 सर्विस वोटर 

-58 अन्य 

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