S Jaishankar Interview: 'देश में मजबूत नेता और स्थिर सरकार जरूरी', लोकसभा चुनाव न लड़ने की बताई ये वजह, पढ़िए एस जयशंकर से खास बातचीत
S Jaishankar Exclusive Interview विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत ही नहीं वैश्विक कूटनीति में आज चर्चित नामों में से एक हैं। पांच वर्षों में जयशंकर ने भारतीय कूटनीति का नया चेहरा दुनिया के सामने रखा है। अब वह चुनावी राजनीति से भी जुड़े हैं। दैनिक जागरण के राजनीतिक संपादक आशुतोष झा और विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन ने विदेश मंत्री जयशंकर से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश
आशुतोष झा, नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वह चुनावी अभियान में जुटे हुए हैं। वह लगातार राज्यों का दौरा कर समझा रहे हैं कि आने वाला समय विश्व के लिए संकट काल होगा, देश को सीना तानकर आगे बढ़ना है तो सशक्त और दूरदर्शी नेता चाहिए और बड़ा जनादेश भी।
पिछले कुछ वर्षों में विश्व मंच पर भारत की शानदार होती छवि और दमदार आवाज का हवाला देते हुए वह कहते हैं कि आज विदेश नीति सीधे तौर पर जनता के हितों से जुड़ती है। जानिए लोकसभा चुनाव से लेकर देश-विदेश के विभिन्न मुद्दों पर क्या है उनकी राय।
प्रश्न- आपके कई सहयोगी मंत्री जो राज्यसभा में थे, चुनाव लड़ रहे हैं। क्या आपको भी लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा गया या आपकी इच्छा थी?
उत्तर- देखिए, मैं राजनीति में काफी देर से आया हूं। पिछले पांच वर्षों में थोड़ी बहुत राजनीति सीखी। मुझे शुरू से यह बताया गया था कि अलग-अलग राज्यों में जाकर आम जनता को विदेश नीति के बारे में बताना होगा। जनता मानती है कि विदेश नीति के मोर्चे पर पीएम मोदी की सरकार का रिकॉर्ड बहुत अच्छा है और वह इन बातों पर गर्व करती है। मैं टीम का हिस्सा हूं और मेरी क्षमता को देखकर ही काम दिया गया है।
प्रश्न - मोदीजी कई बार कह चुके हैं कि आएगा तो मोदी ही। इसी तरह से माना जा रहा है कि विदेश मंत्री तो जयशंकर ही बनेंगे। मौजूदा वैश्विक हालात को देखते हुए केंद्र सरकार की नीतिगत स्थिरता कितनी जरूरी है?
उत्तर- मैं वर्ष 2015 से मोदी सरकार के साथ हूं। पहले विदेश सचिव, फिर विदेश मंत्री के तौर पर। आगे क्या होगा, यह फैसला तो पीएम करेंगे। अभी लक्ष्य है कि 400 से अधिक सीटें जीतनी हैं। मैं पहली बार आम चुनाव से इस तरह जुड़ा हूं। लोगों को वैश्विक स्थिति, भारत के समक्ष अवसर व चुनौतियों के बारे में बता रहा हूं। बताता हूं कि आने वाला समय काफी अस्थिर हो सकता है।
यूक्रेन की लड़ाई, गाजा की स्थिति, ईरान-इजरायल में तनाव... एशिया में हमारा चीन के साथ तनाव है, चीन व अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्द्धा है। हम अस्थिरता की तरफ जा रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए जरूरी है कि एक मजबूत सरकार हो। ऐसा लीडर नेतृत्व करे, जिसमें अनुभव व आत्मविश्वास हो और भारत को आगे ले जाने की दृढ़ इच्छाशक्ति भी।प्रश्न - इस चुनाव के परिणाम किस तरह भारत की विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं? किस दल की सरकार है, इसका हमारी कूटनीति पर बड़ा असर होता है?
उत्तर- पीएम मोदी ने कहा है कि वर्ष 2014 का चुनाव उम्मीद व 2019 का चुनाव भरोसे का था और 2024 का चुनाव मोदी की गारंटी पर लड़ा जा रहा है। यह घरेलू नीति के साथ विदेश नीति पर भी लागू होता है। मोदी की गारंटी देश की सीमा पर ही खत्म नहीं होती है। यूक्रेन में रहने वाले भारतीय छात्रों ने वर्ष 2022 में यह अनुभव किया। हमने कोविड महामारी के दौरान देखा कि कैसे वंदे भारत मिशन क्रियान्वित किया गया। जो सवाल है कि हम पीएम के तीसरे कार्यकाल में विदेश नीति को कैसे आगे ले जाएंगे तो हमारा संकल्प पत्र इस बारे में बहुत ही स्पष्ट है। हमने पिछले एक दशक में जो नींव बनाई है, उसे आगे बढ़ाना है।
विदेश में बसे भारतीयों की रक्षा की जाएगी। पहुंच बढ़ाने के लिए ज्यादा दूतावास खोले जाएंगे। निर्यात बढ़ाने में मदद होगी और भारतीयों के लिए बाहर काम के अवसर बढ़ाए जाएंगे। देश के विकास में निवेश व प्रौद्योगिकी को अपनाने की प्रक्रिया और तेज होगी। यूपीए सरकार के विपरीत, हम सीमापार आतंकवाद को लेकर बहुत कठोर कदम उठाएंगे। सीमा पर हमारी नीति बहुत स्पष्ट है कि मौजूदा हालात को बदलने की कोशिश का करारा जवाब दिया जाएगा। पड़ोसी देशों के अलावा हम खाड़ी देशों व आसियान क्षेत्र के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ करेंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है। कांग्रेस की तरह नहीं कि हम अपने आसपास बड़ी शक्तियों की गतिविधियों को नजरअंदाज करें।
प्रश्न- क्या आपको लगता है कि घरेलू राजनीति और विदेश नीति भारत में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं, खासतौर पर जब सीमा विवाद, सीमापार आतंकवाद या घुसपैठ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर फैसला करना हो?उत्तर- अगर घरेलू स्तर पर विकास और राष्ट्रीय प्रगति को लेकर मजबूत प्रतिबद्धता हो तो विदेश नीति पर इसका असर दिखता है, लेकिन यहां सवाल सरकार की मानसिकता का भी होता है। अगर नीति निर्धारकों के पास विचारों की स्पष्टता और दृढ़ निश्चय हो तो चुनौती का ज्यादा बेहतर समाधान निकाला जा सकता है। कुछ उदाहरण देता हूं। भारत की जनता जानती है कि मुंबई पर 2008 हमले के बाद तब की सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। यूपीए सरकार ने हवाना और शर्म-अल-शेख में हमें पाकिस्तान के स्तर पर गिरा दिया।
ये भी पढ़ें- 'सीमा पर आतंक नहीं सहेगा भारत, पाक करे रिश्तों पर फैसला', जागरण से बातचीत में बोले विदेश मंत्री जयशंकर अनुच्छेद 370 सिर्फ एक राज्य में अलगाववाद और हिंसा को बढ़ावा दे रहा था। मोदी के पीएम बनने के बाद हमने इन चुनौतियों का दूसरे तरीके से समाधान निकालने का फैसला किया। उड़ी और बालाकोट भारत का जवाब था। 370 का खात्मा सुरक्षा पर बहुत बड़ा फैसला था। पूर्वोत्तर की चुनौतियों का भी हमने ज्यादा बेहतर तरीके से सामना किया है। पूर्व की सरकारों ने घरेलू वजहों से इस क्षेत्र को तवज्जो नहीं दी।
प्रश्न- वैश्विक मंच पर भारत की आवाज मजबूत हो रही है, फिर भी अमेरिका, जर्मनी जैसे मित्र देश हमारे आंतरिक मामलों में दखल देते हैं। कुछ एजेंसियां भारत में लोकतंत्र का मुद्दा उठा रही हैं?उत्तर- इस मुद्दे के दो पहलू हैं। पहला, अंतरराष्ट्रीय मीडिया इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता कि भारत स्वतंत्र सोच रख सकता है। विचारधारा का मामला भी है। कई बार भारत को गलत दृष्टिकोण से पेश करने के लिए इनके बीच समन्वय भी दिखता है। अनुच्छेद 370 समाप्त करने, सीएए या कोविड से निपटने के हमारे तरीके पर सवाल उठाया गया। अभी वे चुनाव पर निशाना साध रहे हैं। एक तरह से टूलकिट राजनीति हो रही है।
लोकतंत्र, मानवाधिकार, मीडिया की स्वतंत्रता व भूख जैसे मुद्दों पर हमें निशाना बनाया जाता है। कुछ सरकारों की आदत होती है कि वह दूसरों से जुड़े हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया देती हैं। यह सही नहीं है। हमने अपनी नाराजगी से अवगत करा दिया है। आज का भारत एक गाल पर तमाचा खाने के बाद दूसरा गाल आगे नहीं बढ़ाता। अगर वे प्रतिक्रिया दे सकते हैं तो हम भी दे सकते हैं। लोगों को यह याद रखना चाहिए कि विदेश मामले में दखल देने की यह आदत उल्टी भी पड़ सकती है।
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