एक पार्टी और दुश्मन नंबर वन, अब कोलकाता के रण में हैं आमने-सामने; नतीजों पर टिकीं सबकी निगाहें
Lok Sabha Election 2024 News एक पार्टी में रहते हुए ये दोनों नेता अक्सर पार्टी मीटिंग व सार्वजनिक मंच पर बहस कर बैठते। दोनों की तृणमूल में रहते कभी नहीं पटी। इनके बीच युद्धविराम की तमाम कोशिश नाकाम हो गई। आखिरकार दोनों में से एक ने तृणमूल को बाय-बाय कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। अब दोनों उत्तर कोलकाता लोकसभा सीट से आमने-सामने हैं।
चुनाव डेस्क,सिलीगुड़ी/कोलकाता। तृणमूल में रहते तापस राय के नंबर एक ‘दुश्मन’ थे सुदीप बनर्जी। उनके साथ विरोध के कारण ही तापस रॉय तृणमूल छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद भगवा खेमे ने उन्हें उत्तर कोलकाता से चुनाव मैदान में उतार दिया। उनका मुकाबला इस बार अपने दुश्मन नंबर एक सुदीप बनर्जी से ही है।
तापस रॉय और सुदीप बनर्जी की अदावत काफी पुरानी है। तृणमूल में रहते दोनों की कभी नहीं पटी। तापस राय तो सुदीप को सफेद हाथी कहते थे। दोनों के बीच कई बार बहस होते हुए भी लोगों ने देखी। इनके बीच युद्धविराम की तमाम कोशिश नाकाम हो गई। आखिरकार तापस रॉय ने तृणमूल को बाय-बाय कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया।
तृणमूल कांग्रेस के एक अन्य नेता कुणाल घोष तापस राय के साथ खड़े थे। उन्होंने पार्टी नेतृत्व से उनको पार्टी में रोके रखने के लिए आवश्यक कदम उठाने की अपील की, लेकिन बात बनी नहीं। जब तापस भाजपा में शामिल हो गए तो एक मौके पर पर कुणाल ने उनकी प्रशंसा कर दी। इसकी कीमत भी उनको चुकानी पड़ी थी। भाजपा में जाने के बाद तृणमूल ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
तृणमूल का आरोप है कि तापस ईडी के डर से भाजपा में चले गए। उनको जेल भेजने की धमकी दी गई थी। जेल जाने के डर से वह तृणमूल छोड़कर भाग गए। तृणमूल का कहना है कि सुदीप बनर्जी और मदन मित्रा भी जेल गए थे लेकिन पार्टी छोड़कर भागे नहीं। इस पर तापस ने पलटवार करते हुए कहा कि सुदीप का राजनीतिक करियर भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। 2014 में वो रोज़ वैली मामले में जेल गए थे।
राजीव गांधी ने तापस की जगह ममता को चुना
तापस ने उत्तरी कोलकाता में सोमेन मित्रा के सानिध्य में कांग्रेस से राजनीति की शुरूआत की। ममता बनर्जी की राजनीति भी तभी से शुरू हुई। उन्होंने सेंट पॉल कालेज में पढ़ाई की और उसी समय से छात्र राजनीति में शामिल हो गए। वह छात्र परिषद के प्रदेश अध्यक्ष रहे। उनपर उस समय के कांग्रसी दिग्गज सोमेन मित्रा का हाथ था। वह तापस को राज्य युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन राजीव गांधी ने दिल्ली से ममता बनर्जी को इस पद पर नियुक्त कर दिया।
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बैरकपुर वाली कहानी होगी क्या...
तापस का लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में जाना 2019 में बैरकपुर की याद दिलाता है। पांच साल पहले जब बैरकपुर में तृणमूल ने दिनेश त्रिवेदी को टिकट दिया तो अर्जुन सिंह तृणमूल से भाजपा में शामिल हो गए। उसमें अर्जुन सिंह ने दिनेश त्रिवेदी को हराकर जीत हासिल की। इस बार भी अर्जुन एक बार फिर तृणमूल से भाजपा में कूद गए,क्योंकि उनकी जगह पार्थ भौमिक को टिकट दिया गया। अब देखना है कि इस सीट पर क्या बैरकपुर वाली कहानी होती है।
ईडी की छापेमारी के बाद तल्खी और बढ़ी
ईडी ने जनवरी की शुरुआत में तापस के बाउ बाजार स्थित घर पर छापा मारा था। तापस का आरोप है कि सुदीप बनर्जी के इशारे पर ऐसा हुआ था। उन्होंने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि सुदीप ने ईडी को उनके घर भेजा था। तापस तृणमूल विधायक थे तो सुदीप सांसद। दोनों की ही अपनी राजनीतिक पहचान। स्वाभाविक तौर पर दोनों के बीच सुलह की कोशिश फेल हो गई। बात नहीं बनी तो तापस ने बराहनगर के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया और भगवा खेमे में चले गए।
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