Lok Sabha Election 2019: सोशल मीडिया पर चुनावी साइबर वार, लाउडस्पीकर-बिल्लों की जगह आया फोन
जहां पहले चुनाव के लिए धुंआधार नारेबाजी और प्लास्टिक या कागज के बिल्लों की खूब चलती थी। वहीं अब सोशल मीडिया ने इन सबकी जगह ले ली है। प्रचार में इसका ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है।
By Edited By: Updated: Wed, 13 Mar 2019 10:46 PM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। कार या बस में लगे झंडे, लाउडस्पीकर से प्रत्याशी को जिताने की अपील के साथ धुंआधार नारेबाजी और छोटे-छोटे प्लास्टिक या कागज के बिल्लों के लिए लपकते बच्चे, दो दशक पहले तक कुछ ऐसी होती थी चुनाव प्रचार की तस्वीर। अब यह दृश्य लगभग पूरी तरह बदल गया है और इसकी जगह ले ली है छह इंच के मोबाइल स्क्रीन ने। खासकर, पिछले एक दशक में तो सोशल मीडिया चुनाव प्रचार अभियान का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। अब हर हाथ में एक मोबाइल फोन है और सोशल मीडिया के तमाम मंच, फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्वीटर, इंस्टाग्राम प्रचार सामग्री से अटे पड़े हैं। शायद ही कोई सियासी पार्टी हो, जो इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल अपनी बात रखने और प्रतिद्वंद्वियों के आरोपों का जवाब देने के लिए न कर रही हो।
प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर फोकसयाद करिए बीस से पच्चीस साल पहले तक के चुनाव का वक्त, हर जगह छपी प्रचार सामग्री, पोस्टर, बैनर और लाउडस्पीकर लगे वाहन ही प्रचार का एकमात्र जरिया हुआ करते थे, लेकिन अब यह कहीं पीछे छूट गया है। क्या शहरी, क्या ग्रामीण, अब हर जगह प्रचार अभियान सोशल मीडिया पर फोकस नजर आता है।
इसके लिए बाकायदा सियासी पार्टियों ने अलग सेल या प्रकोष्ठ बनाए हैं, जिनमें आइटी विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाती हैं। ये विशेषज्ञ ग्राफिक्स, वीडियो, कार्टून, फोटो, समाचारों के जरिये अपनी पार्टी या प्रत्याशी के पक्ष में सोशल मीडिया में माहौल बनाते हैं। पार्टी की उपलब्धियां, चुनावी लोक-लुभावन वादे, भविष्य की कार्ययोजना, विपक्षी की खामियां, नेताओं के बयानों पर पलटवार, अब यह सब सोशल मीडिया पर प्रचार का अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं। साइबर मंच पर चलती है खुली जंग
बड़े नेताओं की जनसभाओं और प्रत्याशियों की नुक्कड़ सभाओं के समानांतर साइबर मंच पर लगातार इलेक्शन कैंपेन चलता है। आरोप-प्रत्यारोप, एक-दूसरे का मखौल उड़ाते वीडियो और ऑडियो संदेशों के जरिये आक्रामक चुनाव प्रचार सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उपलब्ध है। दिलचस्प बात तो यह कि पहले की तरह यह सब केवल चुनाव के दौरान नहीं होता, बल्कि अब तो यह रोजाना की बात बन गई है। पूरे पांच साल सियासी पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया का प्रयोग किया जाने लगा है, अलबत्ता चुनावों के वक्त इसकी तीव्रता कई गुना बढ़ जाती है। इस वर्चुअल वार, या कहें तो आभासी युद्ध को धार देने के लिए सियासी पार्टियां निजी कंपनियों को जिम्मा देती हैं। ये कंपनियां निश्चित धनराशि लेकर पार्टी या प्रत्याशी के लिए जरूरी वीडियो, फोटो, डेटा या अन्य जानकारी उपलब्ध कराती हैं।
मोबाइल एप्स व फैंस क्लब का सहाराउत्तराखंड जैसे विषम भूगोल वाले राज्य में सोशल मीडिया प्लेटफार्म सियासी पार्टियों और उनके नेताओं के लिए सबसे मुफीद जरिया है अपने प्रचार के लिए। भले ही नेता हर घर और हर मतदाता तक स्वयं न पहुंच पाएं लेकिन उनकी बात आडियो, वीडियो या लिखित संदेश के जरिये उनके मोबाइल फोन तक पहुंच रही है। यही नहीं, राजनैतिक दल अपनी नीतियों और सूचनाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए अपने-अपने मोबाइल एप्स भी रखते हैं।
फेसबुक और ट्वीटर एकाउंट के माध्यम से तो सक्रियता है ही। पिछले कुछ समय से फेसबुक का एक फीचर फेसबुक लाइव चुनाव प्रचार का एक महत्वपूर्ण हथियार बन गया है। जनसभाओं, रैलियों, नामांकन को बाकायदा लाइव प्रसारित किया जाता है। यही नहीं, राजनैतिक दल और बड़े नेता अपने फैंस क्लब सोशल मीडिया में चला रहे हैं, जो दरअसल पार्टी के ही कार्यकर्ता होते हैं।सोशल मीडिया में कौन कितना सक्रिय
उत्तराखंड के परिपेक्ष में आंकलन करें तो भाजपा और कांग्रेस के छोटे से लेकर बड़े नेता तक खासी संख्या में सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं और इनके फॉलोअर्स भी हजारों की संख्या में हैं। भाजपा में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद भगत सिंह कोश्यारी, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, केंद्रीय राज्य मंत्री व अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा, राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी, कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत, सतपाल महाराज, अरविंद पांडेय, सुबोध उनियाल, डॉ. हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, मदन कौशिक और राज्य मंत्री रेखा आर्य व धनसिंह रावत के अलावा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट, विधायक मुन्ना सिंह चौहान, हरबंस कपूर, गणेश जोशी, दिलीप सिंह रावत, सजीव आर्य, पुष्कर सिंह धामी सोशल मीडिया में खासे सक्रिय हैं। उधर, कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत तो हर प्लेटफार्म पर अपनी चुटीली टिप्पणियों के लिए चर्चा बटोरते रहे हैं। राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, विधायक मनोज रावत, काजी निजामुद्दीन, हरीश धामी, करन माहरा भी सोशल मीडिया में सक्रिय नजर आते हैं।
क्या कहती हैं सियासी पार्टियांभाजपा सोशल मीडिया सेल के वरिष्ठ सदस्य विशाल शर्मा कहते हैं कि पार्टी के कार्यक्रमों की जानकारी देने के साथ ही विभिन्न विषयों पर अपनी बात लोगों के बीच रखने के क्रम में भाजपा ने सोशल मीडिया सेल गठित किया है। इसका पूरा नेटवर्क है और बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता इससे जुड़े हैं। समय-समय पर उठने वाले विभिन्न विषयों पर अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखने के लिए कंटेट (वीडियो-ऑडियो) तैयार किया जाता है, जिसे सोशल मीडिया में प्रस्तुत किया जाता है।
कांग्रेस आइटी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अमरजीत सिंह बताते हैं कि कांग्रेस में सोशल मीडिया टीम में करीब 400 कार्यकर्ता जुड़े हैं। आइटी प्रकोष्ठ जिला स्तर पर भी गठित किए गए हैं। आइटी प्रकोष्ठ कांग्रेस की रीति-नीति, कामकाज समेत तमाम गतिविधियों की रिपोर्ट सोशल मीडिया पर जारी करने से लेकर भाजपा के चुनाव प्रचार का जवाब देने का कार्य भी कर रहा है। कांग्रेस का आइटी प्रकोष्ठ और सोशल मीडिया टीम पूरी तरह एक्टिव है।यह भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव: सोशल मीडिया की निगरानी को बनी कमेटी
यह भी पढ़ें: निर्वाचन समाप्ति तक आदर्श आचार संहिता का किया जाएगा कड़ाई से पालनयह भी पढ़ें: राहुल गांधी उत्तराखंड से कर सकते हैं चुनावी शंखनाद