Loksabha Election 2019 ये कर्ण का करनाल है, यहां मिलता सम्मान तो अहंकार भी टूटे
करनाल ने जब ठुकराया तो दिग्गजों के पांव भी नहीं टिके। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल व सुषमा स्वराज भी देख चुके हार का मुंह। आठ गेट के कारण यह शहर किसी जमाने में था मॉडर्न।
By Ravi DhawanEdited By: Updated: Thu, 21 Mar 2019 06:58 PM (IST)
करनाल [मनोज ठाकुर]। मैं हूं करनाल। वही, जिसने रणभूमि में असंख्य लोगों को मरते देखा। अपनी छाति लहुलूहान होते देखी। मैंने यौद्धाओं की ललकार के बाद निजाम बदलते देखे। नवाबों के राज से अंग्रेजों को आते देखा है। पृथ्वी राज चौहान और आज के पीएम नरेंद्र मोदी को भी देखा है। मेरे शरीर का स्वरूप भले ही बदलता रहा हो, लेकिन आत्मा और तासीर वही है। मैंने खूब प्यार लुटाया है। चाहे पूछ लो राजा कर्ण से। उसे भी अपना राजा बनाया था। लेकिन जब ठुकराया तो दिग्गजों के पांव भी टिकने नहीं दिए। इस बात के गवाह पूर्व सीएम भजन लाल और दिग्गज राजनीतिज्ञ सुषमा स्वराज हैं।
युद्धों के दुख को सहन करते हुए आगे बढ़ता गया
मेरी स्थापना राजा कर्ण ने की थी। महाभारत का मैं गवाह रहा हूं। इसके बाद इतिहास में मुझे 1739 में स्थान मिला। उस समय नादिर शाह ने करनाल में मोहम्मद शाह को हराया था। जींद के राजा गोपाल सिंह ने 1863 में करनाल पर कब्जा कर लिया था और 1785 में मराठों ने करनाल में खुद को स्थापित किया था। 1795 में मराठों ने जींद के राजा भाग सिंह से करनाल शहर को जीत लिया। इसके बाद लाडवा के राजा गुरदित सिंह ने करनाल पर कब्जा कर लिया। 1805 में अंग्रेजों ने यहां पर कब्जा कर लिया था और मंडल बनाया। फिर यहां से अंग्रेजों को रुखसत होते देखा और अपनों के हाथ में देश की बागडोर आई थी। फिर करनाल में युद्ध तो कभी नहीं हुए, लेकिन कई राजनीतिक व सामाजिक आंदोलन देश व समाज के विकास के लिए मेरी धरती पर हुए।
मेरी स्थापना राजा कर्ण ने की थी। महाभारत का मैं गवाह रहा हूं। इसके बाद इतिहास में मुझे 1739 में स्थान मिला। उस समय नादिर शाह ने करनाल में मोहम्मद शाह को हराया था। जींद के राजा गोपाल सिंह ने 1863 में करनाल पर कब्जा कर लिया था और 1785 में मराठों ने करनाल में खुद को स्थापित किया था। 1795 में मराठों ने जींद के राजा भाग सिंह से करनाल शहर को जीत लिया। इसके बाद लाडवा के राजा गुरदित सिंह ने करनाल पर कब्जा कर लिया। 1805 में अंग्रेजों ने यहां पर कब्जा कर लिया था और मंडल बनाया। फिर यहां से अंग्रेजों को रुखसत होते देखा और अपनों के हाथ में देश की बागडोर आई थी। फिर करनाल में युद्ध तो कभी नहीं हुए, लेकिन कई राजनीतिक व सामाजिक आंदोलन देश व समाज के विकास के लिए मेरी धरती पर हुए।
पृथ्वीराज को देखना पड़ा था हार का मुंह
आपको याद दिला दूं कि सन 1191-1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच यहीं पर 18 बार युद्ध हुआ था। आखिरी लड़ाई में पृथ्वीराज जयचंद ने भीतरघात किया और वह मोहम्मद गौरी से जा मिला। नतीजतन इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा। आज भी तरावड़ी में पृथ्वी राज चौहान का किला युद्ध की याद ताजा करा देगा।
आपको याद दिला दूं कि सन 1191-1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच यहीं पर 18 बार युद्ध हुआ था। आखिरी लड़ाई में पृथ्वीराज जयचंद ने भीतरघात किया और वह मोहम्मद गौरी से जा मिला। नतीजतन इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा। आज भी तरावड़ी में पृथ्वी राज चौहान का किला युद्ध की याद ताजा करा देगा।
अजी क्या चंडीगढ़, मैं था कभी अपने जमाने का माडर्न शहर
मेरा पुराना शहर अब भले ही आपको जर्जर लगे, लेकिन एक जमाने में यह मार्डन शहर था। आज जैसे व्यवस्थित शहर के नाम पर चंडीगढ़ का नाम लिया जाता है। वैसे ही सदियों पहले मेरा नाम था। मेरे आठ गेट थे इनमें कलंदरी गेट, अर्जुन गेट, सुभाष गेट, जाटो गेट, जुंडला गेट, बांसो गेट, दयालपुरा गेट व कर्ण गेट शामिल है। सुबह होने पर दरवाजे खुलते थे और रात को बंद। पूरा शहर सुरक्षित। व्यापार के लिए बाजार बने थे। रोशनी के लिए दिये व मशाल जलाई जाती थी। अब मैं भी स्मार्ट सिटी में शामिल हो गया हूं। उम्मीद है कि मेरा पुराना जमाना नए रूप में लौट आएगा। अंग्रेजों की बदलवा दी थी छावनी
मुझे अंग्रेजों ने ब्रिटिश छावनी में तबदील कर दिया गया। 1805 में अंग्रजों के कब्जे में आने के बाद यहां छावनी बना दी गई। अब इन अंग्रेजों को क्या पता था कि वह बड़ी-बड़ी फौजों को यहां से रवाना कर चुका है। इनकी तो बिसात क्या थी। करनाल के मच्छरों के सामने अंग्रेज फौजी पस्त हो गए। इसके उन्होंने करनाल की बजाए अंबाला को छावनी के रूप में चुना। इस दौरान अंग्रेजों ने यहां खूबसूरत छावनी चर्च बनाया है। इस चर्च को कई मील दूर से भी देखा जा सकता है, क्योंकि यह लगभग 100 फीट ऊंचा है। चर्च में धातु का क्रॉस भी लगाया गया है। इसका निर्माण सेंट जेम्स ने कराया था। उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण किया गया।प्रजातंत्र का उदय होने पर कैथल भी था मेरा हिस्सा
नई पीढ़ी के लोगों को कम जानकारी है कि जब देश में प्रजातंत्र का उदय हुआ तो पहला चुनाव 1952 में हुआ था। कुछ समय के लिए कैथल भी मेरा हिस्सा रहा है। लेकिन बाद में यह कुरुक्षेत्र लोकसभा के साथ जोड़ दिया गया था। अब मुझमें कुल 9 विधानसभा सीट हैं। करनाल व पानीपत जिले के मतदाता करनाल लोकसभा सीट के तहत ही आते हैं। नीलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, घरौंडा, असंध, पानीपत ग्रामीण, पानीपत सिटी, इसराना और समालखा विधानसभा मेरी लोकसभा में शामिल है। मेरी पहचान हैं इनसे भी
करनाल शहर की पहचान कई उद्योगों से भी है। इनमें मुख्य तौर पर राइस शैलर, कृषि उपकरण व जूता उद्योग शामिल है। इसके साथ ही मेरे हिस्से पानीपत की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैंडलूम उद्योग को लेकर है। इसके साथ ही मेरे यहां तेल व दवाइयों के उद्योग भी हैं।चुनाव में करता सबका स्वागत, मन बदलने पर देता पटखनी
मेरे ऊपर आरोप है कि मैं प्रजातंत्र में बाहरी लोगों को जीत के दरवाजे तक ले जाता हूं। अतीत से मेरा स्वभाव ही ऐसा रहा है कि बाहर से आने वाले लोगों का पूरा सम्मान करता हूं। लेकिन जो भी लोग इसे मेरी कमजोरी समझकर फायदा उठाने की सोच रखते हैं, उन्हें सबक भी सिखा देता हूं। चाहे इतिहास उठाकर देख लो। अलबत्ता पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल राजनीतिक में पीएचडी माने जाते रहे। करनाल आए तो मैंने जीत दिलवा दी। लेकिन 1999 में दोबारा चुनाव में उतरे तो उनकी पीएचडी को खत्म करते हुए हरा दिया था। बाहर से आई दिग्गज भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज 3 बार 1980, 1984 और 1989 में चुनाव लड़ी। तीनों में हरा दिया था। चार बार सांसद बनने का मौका मैंने कांग्रेस के पंडित चिरंजी लाल को दिया। लेकिन 1996 में उन्हें भी हरा दिया। अब मेरे 18 लाख 50 हजार मतदाता फिर से कुछ नया करने की सोच रख रहे हैं। तभी मैं कहता हूं कि हमारी तासीर को समझना इतना आसान नहीं है। करनाल के ये बने सांसद
मेरा पुराना शहर अब भले ही आपको जर्जर लगे, लेकिन एक जमाने में यह मार्डन शहर था। आज जैसे व्यवस्थित शहर के नाम पर चंडीगढ़ का नाम लिया जाता है। वैसे ही सदियों पहले मेरा नाम था। मेरे आठ गेट थे इनमें कलंदरी गेट, अर्जुन गेट, सुभाष गेट, जाटो गेट, जुंडला गेट, बांसो गेट, दयालपुरा गेट व कर्ण गेट शामिल है। सुबह होने पर दरवाजे खुलते थे और रात को बंद। पूरा शहर सुरक्षित। व्यापार के लिए बाजार बने थे। रोशनी के लिए दिये व मशाल जलाई जाती थी। अब मैं भी स्मार्ट सिटी में शामिल हो गया हूं। उम्मीद है कि मेरा पुराना जमाना नए रूप में लौट आएगा। अंग्रेजों की बदलवा दी थी छावनी
मुझे अंग्रेजों ने ब्रिटिश छावनी में तबदील कर दिया गया। 1805 में अंग्रजों के कब्जे में आने के बाद यहां छावनी बना दी गई। अब इन अंग्रेजों को क्या पता था कि वह बड़ी-बड़ी फौजों को यहां से रवाना कर चुका है। इनकी तो बिसात क्या थी। करनाल के मच्छरों के सामने अंग्रेज फौजी पस्त हो गए। इसके उन्होंने करनाल की बजाए अंबाला को छावनी के रूप में चुना। इस दौरान अंग्रेजों ने यहां खूबसूरत छावनी चर्च बनाया है। इस चर्च को कई मील दूर से भी देखा जा सकता है, क्योंकि यह लगभग 100 फीट ऊंचा है। चर्च में धातु का क्रॉस भी लगाया गया है। इसका निर्माण सेंट जेम्स ने कराया था। उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण किया गया।प्रजातंत्र का उदय होने पर कैथल भी था मेरा हिस्सा
नई पीढ़ी के लोगों को कम जानकारी है कि जब देश में प्रजातंत्र का उदय हुआ तो पहला चुनाव 1952 में हुआ था। कुछ समय के लिए कैथल भी मेरा हिस्सा रहा है। लेकिन बाद में यह कुरुक्षेत्र लोकसभा के साथ जोड़ दिया गया था। अब मुझमें कुल 9 विधानसभा सीट हैं। करनाल व पानीपत जिले के मतदाता करनाल लोकसभा सीट के तहत ही आते हैं। नीलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, घरौंडा, असंध, पानीपत ग्रामीण, पानीपत सिटी, इसराना और समालखा विधानसभा मेरी लोकसभा में शामिल है। मेरी पहचान हैं इनसे भी
करनाल शहर की पहचान कई उद्योगों से भी है। इनमें मुख्य तौर पर राइस शैलर, कृषि उपकरण व जूता उद्योग शामिल है। इसके साथ ही मेरे हिस्से पानीपत की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैंडलूम उद्योग को लेकर है। इसके साथ ही मेरे यहां तेल व दवाइयों के उद्योग भी हैं।चुनाव में करता सबका स्वागत, मन बदलने पर देता पटखनी
मेरे ऊपर आरोप है कि मैं प्रजातंत्र में बाहरी लोगों को जीत के दरवाजे तक ले जाता हूं। अतीत से मेरा स्वभाव ही ऐसा रहा है कि बाहर से आने वाले लोगों का पूरा सम्मान करता हूं। लेकिन जो भी लोग इसे मेरी कमजोरी समझकर फायदा उठाने की सोच रखते हैं, उन्हें सबक भी सिखा देता हूं। चाहे इतिहास उठाकर देख लो। अलबत्ता पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल राजनीतिक में पीएचडी माने जाते रहे। करनाल आए तो मैंने जीत दिलवा दी। लेकिन 1999 में दोबारा चुनाव में उतरे तो उनकी पीएचडी को खत्म करते हुए हरा दिया था। बाहर से आई दिग्गज भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज 3 बार 1980, 1984 और 1989 में चुनाव लड़ी। तीनों में हरा दिया था। चार बार सांसद बनने का मौका मैंने कांग्रेस के पंडित चिरंजी लाल को दिया। लेकिन 1996 में उन्हें भी हरा दिया। अब मेरे 18 लाख 50 हजार मतदाता फिर से कुछ नया करने की सोच रख रहे हैं। तभी मैं कहता हूं कि हमारी तासीर को समझना इतना आसान नहीं है। करनाल के ये बने सांसद
- 1952-57- वीरेंद्र कुमार सत्यवती -कांग्रेस
- 1957-62-सुभद्रा जोशी -कांग्रेस
- 1962-67- स्वामी रामेश्वरानंद -जनसंघ
- 1967-71- माधो राम शर्मा-कांग्रेस
- 1971-77- माधो राम शर्मा-कांग्रेस
- 1977-80- मोहिंद्र सिंह लाठर-जनता पार्टी
- 1977-80- भगवत दयाल शर्मा-जनता पार्टी
- 1980-84- पंडित चिरंजी लाल शर्मा-कांग्रेस
- 1984-89 पंडित चिरंजी लाल शर्मा-कांग्रेस
- 1989-91-पंडित चिरंजी लाल शर्मा-कांग्रेस
- 1991-96-पंडित चिरंजी लाल शर्मा-कांग्रेस
- 1996-98- आइडी स्वामी-भाजपा
- 1998-99- भजन लाल-कांग्रेस
- 1999-04- आइडी स्वामी-भाजपा
- 2004-2009- अरविंद शर्मा-कांग्रेस
- 2009-2014- अरविंद शर्मा-कांग्रेस
- 2014-अब तक -अश्विनी चोपड़ा-भाजपा