भारतीय सिनेमा और सियासत का सच, जब खुलीं परतें तो कुछ ने बटोरीं तालियां तो कुछ के हिस्से आई नफरत
लोकसभा चुनाव के बीच राजनीतिक पार्टियों के भ्रष्टाचार सत्ता के दुरुपयोग अव्यवस्था के मुद्दे छाए हुए हैं जिन्हें प्रमुखता से उठाने में हमेशा आगे रहा सिनेमा। फिर चाहे अयोध्या से लौटते कार सेवकों से भरी ट्रेन में आगजनी पर आधारित फिल्म साबरमती रिपोर्ट व इमरजेंसी में राजनीति की झलक नजर आए या फिर अतीत में भी राजनीति सरकार इंकलाब जैसी कई फिल्में बनीं। इन सबमें राजनीतिक दांव-पेंच को दिखाया गया।
दीपेश पांडेय, मुंबई। लोकसभा चुनाव में इन दिनों छाए हैं राजनीतिक पार्टियों के भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग, अव्यवस्था के मुद्दे, जिन्हें प्रमुखता से उठाने में हमेशा आगे रहा सिनेमा। अयोध्या से लौटते कार सेवकों से भरी ट्रेन में आगजनी पर आधारित फिल्म साबरमती रिपोर्ट व इमरजेंसी में भी है राजनीति की झलक। वहीं अतीत में भी राजनीति, सरकार, इंकलाब जैसी कई फिल्में बनीं, जिनमें दिखा राजनीतिक दांव-पेंच का चित्रण।
राजनीति फिल्म में राष्ट्रवादी पार्टी की आधिकारिक बैठक चल रही है, जिसमें चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार को लेकर निर्णय लिया जाना है। अचानक पार्टी के नेता की गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर का बेटा सूरज (अजय देवगन) वहां पहुंचकर दलितों और पिछड़ों के वास्तविक प्रतिनिधि के तौर पर आजाद नगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट मांगता है।बैठक में मौजूद कुछ लोगों को उसका रवैया नागवार गुजरता है, पर उसके तीखे तेवर और नेतृत्व क्षमता को भांपकर मनोज बाजपेयी का पात्र उन्हें दलितों और पिछड़ों के नेता के तौर पर पार्टी में शामिल किए जाने का एलान कर देता है।
नाना पाटेकर, रणबीर कपूर, अर्जुन रामपाल और कैटरीना कैफ जैसे सितारों से सजी इस फिल्म में प्रकाश झा ने भारतीय राजनीति के दिग्गज राजनेताओं की महत्वाकांक्षाओं और लक्ष्य साधने के लिए अपनाए जाने वाले दांव-पेंच का चित्रण किया था। राजनीति फिल्म के उक्त दृश्य से मिलता-जुलता परिदृश्य है इन दिनों देश व राजनीतिक दलों का। एक ओर जहां पार्टी का टिकट पाने की होड़ है, तो वहीं लोगों को आस है ऐसे जनप्रतिनिधि की जो उनकी आकांक्षाओं को सामने रख सके।
राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़ी फिल्में राजनीति, आरक्षण और सत्याग्रह बना चुके प्रकाश झा कहते हैं, ''मैं ऐसे सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर फिल्में बनाता हूं, जो सार्वजनिक होते हैं। ऐसे विषयों को लेकर विचारधाराएं होंगी और वाद विवाद की संभावना भी रहेगी।
विवाद से बचने के लिए मैं या तो वह चीज कहूं ही नहीं, लेकिन यदि मुझे लगता है कि उस पर बात होनी चाहिए तो मैं कहता हूं। विवाद पैदा होने का डर भी रहता है, उसी वजह से संयमित रहता हूं। मैं किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहता, लेकिन अपनी समझदारी से सच जरूर बोलूंगा।''
फिल्म आज का एमएलए राम अवतार में नायक राजेश खन्ना जनता को उनके मत का मूल्य समझाते नजर आते हैं। दलगत राजनीति से परे फिल्मों के नायक पर्दे पर सच्चाई और नैतिकता के मूल्यों को सामने रखते हुए जब अन्याय का प्रतिकार करते दिखते हैं तो दर्शक भी झूम उठते हैं।
कल्पना व वास्तविकता में गुंथी कहानियां
राजनीतिक पृष्ठभूमि पर बनी कुछ कहानियां काल्पनिक रहीं तो कुछ वास्तविक घटनाओं या व्यक्तियों से प्रेरित होकर बनाई गईं। इनमें आंधी, किस्सा कुर्सी का, न्यू डेल्ही टाइम्स, नायक : द रियल हीरो, सरकार, राजनीति, आरक्षण, सत्याग्रह, रक्त चरित्र, इंदु सरकार, द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, ठाकरे, द ताशकंद फाइल्स, द कश्मीर फाइल्स और आर्टिकल 370 आदि शामिल रही हैं। फिल्मों में राजनीतिक पहलू दिखाने को लेकर फिल्मकार अली अब्बास जफर कहते हैं कि राजनीतिक घटनाक्रम वास्तविक हो सकते हैं, जिन्हें कुछ काल्पनिक या असल पात्रों के माध्यम से दर्शाया जा सकता है, पर कहानी का प्रभाव ऐसा होना चाहिए जो दर्शकों की संवेदनाओं से जुड़ सके।फिल्म जोगी में हमने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों से जुड़ी मानवीय व्यथा को दर्शाया था। एक परिवार की आपबीती के माध्यम से हमने अपनी कहानी कही थी। चुनाव से जुड़ी और हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए यहां क्लिक करेंसत्य छूता है दिलों को
बहरहाल, हिंदी फिल्म उद्योग के लिए राजनीतिक घटनाक्रमों पर सफल फिल्में देना इतना सहज नहीं रहा है। अक्सर ऐसी फिल्मों को विवादों का सामना करना पड़ता है। फिल्मकार विवेक रंजन अग्निहोत्री की द ताशकंद फाइल्स जहां पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत के आसपास की घटनाओं पर आधारित थी, वहीं द कश्मीर फाइल्स में कश्मीरी पंडितों के पलायन की घटनाओं को उकेरा गया था। दोनों ही फिल्में चर्चा में रहीं। विवेक पर फिल्मों के बहाने राजनीतिक दलों के हित साधक बनने के आरोप भी लगे, जिन्हें खारिज करते हुए विवेक ने कहा कि राजनीति से प्रेरित फिल्में आजतक सफल नहीं हुई हैं। वही फिल्में दर्शकों को भाती हैं, जिनकी कहानी उनकी संवेदनाओं को स्पर्श करती है। जब सत्य होता है तो लोग देखते हैं।1952 से लेकर अब तक के सभी लोकसभा चुनावों की जानकारी के लिए यहां क्लिक करें इन फिल्मों की बाक्स ऑफिस सफलता को लेकर फिल्म निर्माता और बिजनेस एक्सपर्ट गिरीश जौहर कहते हैं, "राजनीति एक वृहद विषय है, इससे जुड़े कई पहलुओं पर फिल्में बन सकती हैं।इससे जुड़ी आर्टिकल 370 और द कश्मीर फाइल्स फिल्में सफल रहीं। वास्तविक घटनाओं या व्यक्तियों से जुड़ी फिल्मों में फिल्मकार का एक नजरिया होता है। लोग उसे देखना चाहते हैं, उसके बारे में जानना चाहते हैं।"यह भी पढ़ें- हां ! अच्छा तो है...जरा सरकारी वाला भी देखिए न...; जब मतदाताओं ने सुनाई समस्या! किस मुद्दे पर डालेंगे वोट?राजनेता की छवि
मुझे जो सही लगता है मैं करता हूं... वो चाहे भगवान के खिलाफ हो, समाज के खिलाफ हो, पुलिस, कानून... या फिर पूरे सिस्टम के खिलाफ क्यों ना हो...फिल्म सरकार में अमिताभ बच्चन के पात्र का यह संवाद कट्टर राजनेता की छवि को दिखाता है तो वहीं एक अन्य फिल्म इंकलाब में सत्ता विरोधी लहर को हवा देने के बाद जब स्वार्थी राजनेताओं द्वारा सरकार बनाने की बारी आती है तो नायक बने अमिताभ भरी बैठक में भ्रष्ट नेताओं को मौत के घाट उतार देते हैं। यह भी पढ़ें- 'मुझ पर भरोसा कीजिए जनाब.. सीट हमारी ही होगी', लालू से मंत्रणा व दावेदारों की दलीलें सुन दिल्ली गए मोहनफिल्म आज का एमएलए राम अवतार में नायक राजेश खन्ना जनता को उनके मत का मूल्य समझाते नजर आते हैं। दलगत राजनीति से परे फिल्मों के नायक पर्दे पर सच्चाई और नैतिकता के मूल्यों को सामने रखते हुए जब अन्याय का प्रतिकार करते दिखते हैं तो दर्शक भी झूम उठते हैं।