बंगाल का रण: तृणमूल और भाजपा के बीच मुद्दे बनाम योजनाओं की जंग, जानिए कैसे एक-दूसरे को घेरने में जुटे दोनों दल
Lok Sabha Election 2024 बंगाल की फिजाओं में चुनावी रंग चढ़ने लगा है। तृणमूल और भाजपा एक-दूसरे पर वार-पलटवार करने में जुटे हैं। भाजपा भर्ती और राशन घोटाला नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) व संदेशखाली कांड को मुद्दा बना प्रहार करने में जुटी है तो वहीं तृणमूल कांग्रेस 100 दिनी रोजगार लक्ष्मी भंडार और कन्याश्री जैसी योजनाओं को ढाल बना रही है।
जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता। लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच तलवारें खींच चुकी हैं। दोनों ओर से चुनावी सभाओं और इंटरनेट मीडिया के सहारे हमले तेज हैं। भाजपा जहां शिक्षा विभाग, नगरपालिकाओं में नियुक्तियों और राशन घोटाले में तृणमूल नेता, मंत्री व विधायकों की गिरफ्तारी, संदेशखाली कांड और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को मुद्दा बनाकर तृणमूल पर हमलावर है तो वहीं तृणमूल ने 100 दिनी रोजगार, प्रधानमंत्री आवास फंड रोकने और अपनी लक्ष्मी भंडार व कन्याश्री जैसी योजनाओं को ढाल बना रखा है।
तृणमूल के अभियान से स्पष्ट है कि वह भाजपा के भ्रष्टाचार और संदेशखाली जैसे मुद्दों का जवाब अपनी योजनाओं के जरिए देने का प्रयास कर रही है। वैसे पिछले पांच वर्षों में हुए विभिन्न चुनावों के परिणामों को देखा जाए तो तृणमूल ने 2024 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई अपने विरोधियों से पहले शुरू की है। पांच साल पहले भाजपा ने उससे जो जमीन छीनी थी, उसे पाने में सफल रही है।
इन योजनाओं के सहारे ममता
2019 के बाद से दो प्रमुख चुनाव हुए। 2021 के विधानसभा और 2023 के पंचायत चुनाव में हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान की कहानी का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के बाद तृणमूल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा छीने गए अपने कई आधार को मजबूत किया है।
व्यापक रूप से चलाई गईं लोकलुभावन लक्ष्मी भंडार, कन्याश्री सहित महिला केंद्रित योजनाओं के इर्द-गिर्द सावधानीपूर्वक बुनी गई चुनावी रणनीति से ममता को सबसे बड़े वोट बैंक -महिला मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिली है।
तृणमूल को इन्हीं योजनाओं की बदौलत 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना वोट शेयर 43 प्रतिशत से बढ़ाकर 2021 के विधानसभा चुनाव में 48 प्रतिशत और 2023 के पंचायत चुनाव में 51.1 प्रतिशत करने में मदद मिली।
बंगाल में इतनी है महिला मतदाताओं की संख्या
बंगाल में 7.60 करोड़ मतदाताओं में 3.70 करोड़ महिला हैं। अकारण नहीं है कि 2024-25 के बजट में लक्ष्मी भंडार योजना की तीन करोड़ महिला लाभार्थियों को 1,000 रुपये प्रतिमाह के मासिक भुगतान का वादा किया गया है और एससी/एसटी श्रेणी की महिलाओं को 1,200 रुपये प्रतिमाह देने का वादा है। कन्याश्री की 2.7 करोड़ छात्राएं लाभार्थी हैं।
चुनाव में क्या सीएए का भी दिखेगा असर?
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर जितने जोर से भाजपा नेता हमला करते हैं, तृणमूल नेता भी उसी तेजी के साथ विरोध जताते हैं। ममता की कट्टर सीएए विरोधी छवि है। यह पहली बार तब स्पष्ट हुआ, जब 2016 में सीएए को लेकर चर्चा तेज हुई थी। तृणमूल ने कालियागंज और करीमपुर में जीत हासिल की थी और खड़गपुर (सदर) जीतकर भाजपा को चौंका दिया था। इस मुद्दे पर तृणमूल के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है।
यह भी पढ़ें: पहला चरण बताएगा जीतन राम मांझी कितने असरदार, इन सीटों पर सभी की निगाहें, क्या काम आएगी राजग की ये रणनीति?
तृणमूल के सामने ये चुनौती
तृणमूल ने अभियान की रणनीति भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र द्वारा 100 दिनी कार्य योजना के 59 लाख श्रमिकों का बकाया फंड और 11.3 लाख ग्रामीण परिवारों को आवास योजना का फंड नहीं देने के आसपास बना रखी है। यह मुद्दा 2023 के पंचायत चुनाव में भी गूंजा था।
राजनीतिक लाभ मिलने के बाद तृणमूल ने इसे आगे बढ़ा रखा है, हालांकि भर्ती व राशन घोटालों में मंत्रियों से लेकर विधायकों व नेताओं की गिरफ्तारी, नोटों का अंबार मिलना और इसके बाद संदेशखाली कांड बड़ी चिंता का सबब है।
वोट की तुलना में सीटें नहीं बढ़ना तृणमूल की चिंता
वहीं तृणमूल के लिए एक और बड़ी चिंता यह है कि बढ़ती द्विध्रुवीयता के कारण वोट शेयर बढ़ने के बाद भी सीटें नहीं बढ़ना है। 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ ममता ने 34 सीटें जीतीं थीं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 43 प्रतिशत वोट मिलने के बावजूद 22 सीटें ही जीत सकी थीं।
यह भी पढ़ें: अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में पहला लोकसभा चुनाव; साक्षी बनेंगे पर्यटक, जानिए क्या हैं तैयारियां