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Lok Sabha Election 2024: मोदी सरकार के कामकाज पर क्या सोचते हैं युवा? जानिए खास चर्चा में क्या बोले बीएचयू के छात्र

UP Lok Sabha Election 2024 चुनाव के अंतिम दौर में बनारस राजनीति का केंद्र बना है। मतदान का समय नजदीक आने के साथ ही तापमान के साथ चुनावी पारा भी सामान्य से ऊपर है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में नई पीढ़ी भी लोकतंत्र के इस पर्व के लिए तैयार है। युवा किन मुद्दों से प्रभावित है इसे कलमबद्ध कर रहे हैं जागरण संवाददाता।

By Ravi Prakash Singh Edited By: Sachin Pandey Updated: Mon, 27 May 2024 07:23 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में चाय के साथ चुनावी चर्चा करते छात्रl
रवि प्रकाश तिवारी, वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों को यह बात कचोटती है कि पक्ष हो या विपक्ष, छात्र सभी के एजेंडे से बाहर हैं। छात्रों-युवाओं को मुद्दा हर कोई बनाना चाहता है, लेकिन रोडमैप किसी के पास नहीं है। कला इतिहास में पीएचडी कर रहे सत्यवीर सिंह ‘बागी’ कहते हैं ‘प्रदेश की ही बात करें तो आजादी के बाद भी तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय ही बने।'

वह कहते हैं कि अंतिम केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ में 1996 में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के नाम पर बना। 28 साल हो गए, प्रदेश की जनसंख्या 30 करोड़ छूने को है, लेकिन इस दिशा में सरकारों की उदासीनता दर्शाती है कि हम एजेंडे में हैं ही नहीं। फेलोशिप को ही लें तो आज आठ हजार रुपये मिलते हैं। विकसित देशों को देखिए, अमेरिका हमारे कुल बजट का चार गुणा अपने शिक्षा बजट पर खर्च करता है। हां, पर्यटन के क्षेत्र में काम हुआ है। वह दिखता भी है।

महंगाई और रोजगार पर नाखुश

एमए आर्कियोलाजी के छात्र हर्ष त्रिपाठी महंगाई पर अंकुश न लगा पाना और रोजगार को लेकर स्पष्ट दृष्टि न होना सरकार की विफलता मानते हैं। वह कहते हैं, ‘आज मध्यम वर्ग परेशान है। हालांकि ढांचागत विकास सकारात्मक हुआ है।’ इतिहास विभाग में शोध छात्र अभिषेक सिंह कहते हैं कि ‘इस सरकार में कैंपस में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां शिथिल हुई हैं। कानून-व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था बेहतर है, लेकिन रोजगार के अवसर सृजित न होना सालता है।'

वह कहते हैं, 'निश्चित तौर पर आज राजनीति में युवाओं की सहभागिता में कमी आई है। पक्ष-विपक्ष सहित सभी दलों द्वारा उपेक्षा ही युवाओं की हिस्सेदारी में गिरावट का कारण है। 1997 के बाद से हमारे कैंपस में चुनाव नहीं हुए। सोच लीजिए कल को राजनीति के नवांकुर कैसे होंगे। दरअसल परंपरागत राजनेताओं की वंशावली हस्तांतरित होने का खतरा है, इसलिए नयों को मौका नहीं दिया जाता। पहले नेता कैंपस से निकलते थे, आज की व्यवस्था में यह संभव ही नहीं। यह पीड़ा है हमारी कि आज जाति और पूंजी की राजनीति हावी होती जा रही है।’

पक्ष और विपक्ष

चर्चा को डॉ. विकास यादव बीच में रोकते हैं। वह इस सरकार से खासे नाखुश हैं। कहते हैं, ‘भाजपा नौकरी का वादा कर सत्ता में आई, लेकिन आज ये जवाब तक नहीं देते। नरेन्द्र मोदी शौचालय, राशन, केरोसिन सब पर बात करते हैं, लेकिन रोजगार पर चुप्पी है। संविधान, जनाधिकार और आरक्षण पर इनकी सोच सार्वजनिक हो चुकी है। कांग्रेस शासन में तो घोषित आपातकाल लगा था, लेकिन ये अघोषित इमरजेंसी में जीने को मजबूर कर रहे हैं। जनता ने इस बार तय कर लिया है। जीतेगा तो इंडी गठबंधन ही।’

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डॉ. विकास के प्रतिउत्तर में प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के डा. विष्णु प्रताप सिंह खड़े होते हैं। कहते हैं, ‘मोदी सरकार समान रूप से योजनाओं का लाभ देती है। सरकार का विरोध कर रहे डॉ. विकास को हाल ही में बिहार के केंद्रीय विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिली है। सबका साथ, सबका विश्वास। मोदी सरकार जो कहती है, करती है। राशन सबको मिलता है, पीएम आवास, शौचालय, आयुष्मान का लाभ, सम्मान निधि जाति-धर्म देखकर नहीं बांटे गए। इनकी सरकार की तरह नहीं कि एक ही जाति-धर्म को सब, बाकी की कोई सुनवाई नहीं।’

नई शिक्षा नीति का समर्थन

हिंदी विभाग के शोध छात्र मृत्युंजय तिवारी का मानना है, ‘किफायती और रोजगारपरक शिक्षा की दृष्टि से सरकार को और काम करने की जरूरत है। वैश्विक राष्ट्रविचार में युवाओं की भूमिका बढ़े, इस पर भी गंभीरता से सोचना होगा।’ राजनीति विज्ञान के शोध छात्र पतंजलि पांडेय समृद्धि, सुरक्षा और शिक्षा के क्षेत्र में मौजूदा सरकार को पूरे अंक देते हैं। कहते हैं, ‘नई शिक्षा नीति को और पहले आना चाहिए। अभी संक्रमणकाल है। परिणाम पांच वर्ष के बाद आएंगे।’

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