अतीत के आईने से: काजगी मतपत्र की जगह ईवीएम आई तो मतदान में हुई वृद्धि, बूथ कैप्चरिंग पर लगा अंकुश; पढ़ें दिलचस्प चुनावी किस्से
कागजी मतपत्रों के उपयोग के साथ एक गंभीर चिंता बूथ कैप्चरिंग थी। ईवीएम को वोट डालने की दर को प्रति मिनट पांच तक सीमित करके ऐसी धोखाधड़ी पर अंकुश लगाया जा सका। मतदान केंद्र पर बलपूर्वक कब्जा किए जाने की स्थिति में डिवाइस को निष्क्रिय करने के लिए एक क्लोज बटन भी उपलब्ध है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के कारण अस्वीकृत वोटों की संख्या में भी काफी कमी आई है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की धुरी होते हैं। चुनाव में धनबल और धोखाधड़ी का प्रभाव रोकने तथा चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए चुनाव आयोग ने पिछली सदी के अंतिम दशक के अंत में कागजी मतपत्र की जगह ईवीएम का प्रयोग आरंभ किया।
बूथ कैप्चरिंग थी समस्या
कागजी मतपत्रों के उपयोग के साथ एक गंभीर चिंता बूथ कैप्चरिंग थी। ईवीएम को वोट डालने की दर को प्रति मिनट पांच तक सीमित करके ऐसी धोखाधड़ी पर अंकुश लगाया जा सका। मतदान केंद्र पर बलपूर्वक कब्जा किए जाने की स्थिति में डिवाइस को निष्क्रिय करने के लिए एक क्लोज बटन भी उपलब्ध है।
मतदान में हुई वृद्धि
सेंटर फार द स्टडीज आफ डेवलपिंग सोसाइटीज द्वारा किए गए मतदान के बाद के सर्वेक्षणों के अनुसार ईवीएम पेश किए जाने के बाद महिलाओं, अनुसूचित जातियों और जनजातियों, वरिष्ठ नागरिकों और अशिक्षित मतदाताओं जैसे कमजोर समूहों के मतदान में वृद्धि हुई है। ईवीएम ने कम पढ़े-लिखे मतदाताओं द्वारा मतदान करने की संभावना 6.4 प्रतिशत तक बढ़ा दी। इससे कमजोर समूह सशक्त हुए।अस्वीकृत की संख्या घटी
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के कारण अस्वीकृत वोटों की संख्या में भी काफी कमी आई है। कागजी मतपत्र पर अस्पष्ट मोहर लगाने से मतपत्र खारिज हो सकता है, ईवीएम वोट दर्ज करने के लिए केवल एक बटन दबाना होता है।