Deepfake in Election: डीपफेक वीडियो की कितनी होती है उम्र, चुनाव में क्यों फजीहत बन रही यह तकनीक, शिकार हो जाएं तो क्या करें?
Deepfake in Lok sabha Election डीपफेक का साया लोकसभा चुनाव पर भी दिखाई दे रहा है। पहले गृह मंत्री अमित शाह फिर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का डीपफेक वीडियो बनाया गया। तकनीक सही उपयोग के लिए बनाई जाती है लेकिन इसका दुरुपयोग भी हो रहा है। जानिए लोकसभा चुनाव में किस तरह Deepfake चुनौती बना है। इसके क्या हैं खतरे? पढ़िए पूरी रिपोर्ट।
चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। Deepfake in Lok sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में डीपफेक (Deepfake) भी चर्चा का विषय बना हुआ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का डीपफेक वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट किया गया। हालांकि आरोपी को पुलिस ने धर दबोचा है। उधर, लोकसभा चुनाव के दौरान डीपफेक (Deepfake) वीडियो के प्रसार के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि वह इस संबंध में चुनाव के बीच निर्वाचन आयोग को कोई निर्देश नहीं दे सकता है, न ही कोई नीति बना सकता है। आइए जानते हैं डीपफेक तकनीक क्यों घातक है, क्या है यह तकनीक? इसके बारे में क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सीएम योगी का डीपफेक वीडियो 'एक्स' पर पोस्ट किया गया। हालांकि पुलिस ने ऐसा करने वाले शख्स को धर दबोचा है। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह भी डीपफेक का शिकार हो गए। उनके वीडियो और आवाज से छेड़छाड़ की गई। अमित शाह का जो वीडियो वायरल हुआ था, उसमें अमित शाह को आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए उसे खत्म करने का ऐलान करते हुए दिखाया गया था। जबकि असली वीडियो में शाह एसटी, एससी और ओबीसी आरक्षण को बनाए रखने की बात कहते हैं।
पूर्व चुनाव आयुक्त भी बता चुके हैं इस तकनीक का खतरा
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का दुरुपयोग कर डीपफेक सामग्री तैयार की जा सकती है। लोकसभा चुनाव भी इससे अछूता नहीं रहा है। आवाज और वीडियो का गलत इस्तेमाल शुरू हो गया है। कुछ दिन पहले पूर्व चीफ इलेक्शन कमीश्नर डॉ. एसवाई कुरैशी भी चुनाव में डीपफेक (Deepfake) को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। वे कहते हैं कि यह बहुत ही खतरनाक है। एआई के माध्यम से किसी के बारे में कुछ भी गलत संदेश तैयार किया जा सकता है। एक मिनट के भीतर किसी के बारे में अच्छा या गलत संदेश फैलाया जा सकता है। जब तक सच्चाई सामने आती है, लोगों में गलत मैसेज चला जाता है।डीपफेक को लेकर क्या है एक्सपर्ट्स की राय?
- डीपफेक न्यूज का एक निश्चित टाइम होता है, जिसे 'थ्री फेस इफेक्ट डीपफेक कंटेंट' कहा जाता है। फिर चाहे वो वीडियो हो या ग्राफिक। सीनियर आईटी एक्सपर्ट समीर शर्मा बताते हैं इसकी औसत आयु दो से तीन सप्ताह तक होती है।
- जब किसी भी राजनेता से जुड़ा वीडियो वायरल हो जाता है, तो जिस समय वह वायरल हो जाता है। उसे हालांकि बाद में फैक्ट चैक करके या खंडन करके निपटा जा किया जा सकता है, लेकिन तब तक लोगों की साइकोलॉजी बदल सकता है। अब जबकि चुनाव का समय चल रहा है। ऐसे में एक डीपफेक कंटेंट पहले सप्ताह में 80 प्रतिशत तक 'पीक' पर चला जाता है।
Deepfake का शिकार हों तो क्या करें?
राजनीति ही नहीं, फिल्म जगत या किसी भी क्षेत्र की प्रमुख शख्सियत का डीपफेक वीडियो वायरल हो जाए तो इसके लिए सही कंटेंट को डीपफेक वीडियो से जल्दी काउंटर करते हुए अपलोड किया जा सकता है। अमित शाह के डीपफेक वीडियो में यही किया गया, सही वीडियो को दर्शाया गया, जो कि सही प्रैक्टिस रही।
किस प्रक्रिया से बनता है ऐसा कंटेंट?
डीपफेक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का गलत एप्लीकेशन है। डीपफेक में जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क का उपयोग किया जाता है। आईटी एक्सपर्ट शर्मा बताते हैं कि इसमें 'इनकोडर' और 'डिकोडर' नेटवर्क होते हैं। जब किसी व्यक्ति का वीडियो अपलोड किया जाता तो उसी का डेटा एनालिसिस के आधार पर असली की तरह दिखने वाला नकली वीडियो बनाया जाता है। यह प्राइवेसी यानी निजता कानून का उल्लंघन है। इस पर कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है।
डीपफेक सामग्री को डीप लर्निंग तकनीक की मदद से बनया जाता है। यही वजह है कि डीपफेक शब्द भी 'डीप लर्निंग' और 'फेक' शब्द से मिलकर बना है। डीप लर्निंग तकनीक के उपयोग से असली वीडियो को किसी अन्य वीडियो और फोटो के साथ बदल दिया जाता है। देखने में यह हुबहू रियल लगता है, पर नकली ही होता है।