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MP Election 2023: एमपी में भाजपा की जहां जड़ें थीं गहरी, वहीं हो गई बगावत बड़ी

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को भी कई सीटों पर बगावत का सामना करना पड़ रहा है। दिग्गजों के क्षेत्र में भी बगावत हो रही है। बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा है। धार विधानसभा क्षेत्र में संगठन की कमान संभालने वाले पूर्व अध्यक्ष ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया।

By Jagran NewsEdited By: Manish NegiUpdated: Tue, 07 Nov 2023 06:01 PM (IST)
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भाजपा को एमपी में बगावत का सामना करना पड़ रहा है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

जितेंद्र व्यास, इंदौर। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की तस्वीर लगभग स्पष्ट हो गई है। सत्ता का गलियारा कहा जाने वाला मालवा-निमाड़ क्षेत्र तमाम कोशिशों के बाद भी बगावत के झंझावात से बच नहीं पाया। जहां-जहां भाजपा संगठन के बड़े दिग्गजों का क्षेत्र रहा, वहीं से बड़ी बगावत की तस्वीर भी सामने आई है।

बुरहानपुर, जहां से पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान दशकों तक भाजपा संगठन के लिए काम करते रहे, वहीं से उनके बेटे ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन फार्म जमा कर दिया। मुख्यमंत्री सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं के समझाने के बाद भी वह नहीं माने। इसी तरह धार विधानसभा क्षेत्र, जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता विक्रम वर्मा दशकों से राजनीति कर रहे हैं, वहीं बगावत हुई और जिले में संगठन की कमान संभालने वाले पूर्व अध्यक्ष ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया।

बार-बार रणनीति बदलने से भी नाराज हुए दावेदार

2018 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा के समक्ष ये तो स्पष्ट हो गया था कि उसकी संगठनात्मक गतिविधियों में जड़ता गहरे तक घर कर गई है। सत्ता और संगठन के एकाकार हो जाने से कार्यकर्ता सुनवाई नहीं होने और उपेक्षा के आरोप खुलकर लगा रहे थे। जनप्रतिनिधियों के हाल और बुरे थे। रायशुमारी और सर्वे के बाद भी बड़े नेताओं ने अपनी पसंद से विधानसभा के लिए प्रत्याशी तय कर दिए। परिणाम यह हुआ कि न कार्यकर्ताओं ने साथ दिया, न जनता ने।

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डेढ़ साल बाद जब भाजपा फिर सत्ता में लौटी तो सबसे पहले इन्हीं गड्ढों को भरने की कवायद शुरू हुई, जिसकी वजह से 15 साल की सत्ता गंवानी पड़ी थी। साढ़े तीन साल इस दिशा में काम करने के बाद भी मैदानी दृश्य बदलने लगा था, लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान वरिष्ठ नेतओं के बार-बार बदलते बयानों और रणनीति ने अनेक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ कई दावेदारों को भी नाराज कर दिया। प्रत्याशियों की घोषणा के पहले भाजपा नेताओं ने कहा था कि इस बार नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। हारे प्रत्याशियों को कहीं और समायोजित करेंगे, लेकिन जैसे-जैसे सूची आती गई, न नए चेहरों की अधिकता रही और न ही हारे व उम्रदराज प्रत्याशियों से परहेज किया गया।

बड़े नेता और उनके स्वजन मैदान से नहीं हटे

भाजपा की मान-मनौवल रणनीति के तहत प्रदेश से लेकर केंद्रीय स्तर के नेताओं ने टिकट नहीं मिलने से नाराज दावेदारों को समझाया। धार जिले के मनावर विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री रंजना बघेल ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के समझाने के बाद नाम वापस ले लिया तो मांधाता विधानसभा क्षेत्र से संतोष राठौर ने भी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के समझाने पर नाम वापस ले लिया, लेकिन निमाड़ में संगठन की नींव माने जाने वाले नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष ने मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों आदि से चर्चा के बाद भी अपना फैसला नहीं बदला।

धार विधानसभा में भी एक ही स्थिति

धार विधानसभा क्षेत्र की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। यहां भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा दशकों से सक्रिय हैं। उनके क्षेत्र से ही टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व जिलाध्यक्ष राजीव यादव निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले आदिवासी बहुल आलीराजपुर जिले में भाजपा संगठन की नींव तैयार करने वाले पूर्व विधायक व मध्य प्रदेश वन विकास निगम के अध्यक्ष माधौ सिंह डाबर ने भी मुख्यमंत्री सहित अन्य नेताओं के समझाने को अनसुना करते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन जमा कर दिया। डाबर को बीते उपचुनाव में सुलोचना रावत को टिकट देने पर पार्टी ने आश्वस्त किया था कि अगला टिकट उन्हें ही दिया जाएगा, लेकिन इस बार सुलोचना रावत के बेटे विशाल रावत का नाम तय होने के बाद डाबर ने चुनाव लड़ने का फैसला सुना दिया।

कांग्रेस में भी बड़े पदाधिकारियों ने नहीं छोड़ा मैदान, निर्दलीय लड़ रहेकांग्रेस के हाल भी ऐसे ही हैं। पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार ने महू से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कांग्रेस पदाधिकारियों को सुना दिया था। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस महमंत्री कुलदीप सिंह बुंदेला ने भी टिकट नहीं मिलने पर मैदान संभाल लिया। बड़नगर में जिस राजेंद्र सिंह सोलंकी का टिकट बदलकर कांग्रेस ने मुरली मोरवाल को प्रत्याशी बनाया था, उन्होंने भी मैदान से हटने से इन्कार करते हुए निर्दलीय फार्म दाखिल कर दिया।

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