MP Elections 2023: मध्य प्रदेश में SC वर्ग में नेतृत्व की कमी से जूझ रही कांग्रेस, तैयार नहीं कर पाई नए चेहरे
मध्य प्रदेश में कांग्रेस अनुसूचित जाति वर्ग में नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। कोई भी ऐसा नेता नहीं है जिसकी प्रदेशव्यापी छवि हो। मध्य प्रदेश में एससी वर्ग के लिए 35 सीटें सुरक्षित हैं। 2013 में भाजपा ने 28 सीटें जीती थीं। 2018 में यह घटकर 18 रह गई थीं। पांच वर्ष में कांग्रेस आठ से 17 सीटों पर पहुंच गई।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Wed, 18 Oct 2023 08:29 PM (IST)
वैभव श्रीधर, भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस अनुसूचित जाति (SC) वर्ग में नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। कोई भी ऐसा नेता नहीं है, जिसकी प्रदेशव्यापी छवि हो। मालवांचल में तुलसीराम सिलावट एससी वर्ग का बड़ा चेहरा थे, लेकिन वह भाजपा में शामिल हो चुके हैं। पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू को पार्टी ने आगे बढ़ाया था, लेकिन वह भी अपनी पकड़ नहीं बना पाए। अब वह आलोट से मनोज चावला को प्रत्याशी बनाए जाने के विरोध में हैं।
गोटेगांव के नर्मदा प्रसाद प्रजापति एक बड़ा चेहरा थे, लेकिन उनका टिकट काट दिया गया। जबकि समाज को बड़ा संदेश देने के लिए कांग्रेस की सरकार के समय उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था। पूर्व मंत्री सुरेंद्र चौधरी को पार्टी ने एससी प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बनाकर आगे बढ़ाया, पर वह भी प्रदेशव्यापी छवि नहीं बना पाए। अब जब उन्हें फिर नरयावली से प्रत्याशी बनाया गया है तो स्थानीय लोग ही विरोध कर रहे हैं।
एससी वर्ग की सीटों का समीकरण
मध्य प्रदेश में एससी वर्ग के लिए 35 सीटें सुरक्षित हैं। 2013 में भाजपा ने 28 सीटें जीती थीं। 2018 में यह घटकर 18 रह गई थीं। एट्रोसिटी एक्ट को लेकर ग्वालियर-चंबल अंचल में हुए आंदोलन और पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे का लाभ कांग्रेस को मिला और अनुसूचित जाति वर्ग का रुझान कांग्रेस की ओर हुआ। पांच वर्ष में कांग्रेस आठ से 17 सीटों पर पहुंच गई। यह कांग्रेस के लिए बड़ा अवसर था कि वह नया नेतृत्व तैयार करती पर ऐसा नहीं हुआ।यह भी पढ़ें: सुरखी और सागर सीट के नाम दर्ज है गजब का रिकॉर्ड, इस भाजपा विधायक को मिली थी बंपर जीतग्वालियर-चंबल में पार्टी बसपा से कांग्रेस में आए नेताओं के ही भरोसे है। फूल सिंह बरैया को पार्टी ने वहां आगे किया है तो अब बसपा के कैलाश कुशवाह और साहब सिंह गुर्जर को पार्टी ने मैदान में उतार दिया। कांग्रेस की कोशिश है कि बसपा के वोटबैंक में सेंध लगाई जाए।
विंध्य में भी यही प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन पार्टी अपना नेतृत्व तैयार नहीं कर पाई। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रेमचंद गुड्डू को आगे बढ़ाया था। वह सांसद भी रहे पर प्रदेशव्यापी छवि नहीं बन पाई। उनके पुत्र अजीत बोरासी को भी प्रत्याशी बनाया गया, लेकिन वह चुनाव में असफल रहे। अब उनकी पुत्री रीना बोरासी को सांवेर से मौका दिया है।