MP Polls 2023: चुनावी मौसम में नर्मदा घाटी के इस गांव में नहीं आया कोई उम्मीदवार, मतदाता निहारते रहे रास्ता
अलीराजपुर विधानसभा क्षेत्र के इस सुदूर गांव में मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए चुनाव अधिकारियों को अपने साथ इलेक्ट्रॉनक वोटिंग मशीन (EVM) ले जाने के लिए नाव की यात्रा करनी पड़ेगी। इसके बाद उन्हें पहाड़ी इलाके में पैदल ही कठिन यात्रा करनी होगी। यह कोई और नहीं झंडाना गांव है। इस गांव के लगभग हजार निवासियों में से 763 पंजीकृत मतदाता हैं।
By AgencyEdited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 09 Nov 2023 04:47 PM (IST)
पीटीआई, अलीराजपुर। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के उम्मीदवार मतदाताओं को लुभाने में जुटे हुए हैं, लेकिन अलीराजपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत एक ऐसा भी गांव आता है, जहां के मतदाता प्रत्याशियों की राह देखते रहे, लेकिन वहां पर उनसे वोट मांगने के लिए कोई भी प्रत्याशी अबतक नहीं पहुंचा।
अलीराजपुर विधानसभा क्षेत्र के इस सुदूर गांव में मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए चुनाव अधिकारियों को अपने साथ इलेक्ट्रॉनक वोटिंग मशीन (EVM) ले जाने के लिए नाव की यात्रा करनी पड़ेगी। इसके बाद उन्हें पहाड़ी इलाके में पैदल ही कठिन यात्रा करनी होगी। यह कोई और नहीं झंडाना गांव है।
स्थानीय लोगों ने गुरुवार को बताया कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित अलीराजपुर विधानसभा क्षेत्र के इस सुदूर गांव के लगभग हजार निवासियों में से 763 पंजीकृत मतदाता हैं, लेकिन किसी भी उम्मीदवार ने यहां आने की जहमत नहीं उठाई।
झंडाना गांव के पंचायत भवन में मतदान केंद्र स्थापित किया गया है। यह गांव पड़ोसी राज्य गुजरात में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के बैकवाटर से घिरा हुआ है, जबकि झंडाना गांव का अधिकांश हिस्सा सालों पहले जलमग्न हो गया था। यहां के आदिवासी निवासी यहां से पलायन करने को तैयार नहीं हैं।
कहां स्थित है झंडाना गांव?
अलीराजपुर जिला मुख्यालय से बमुश्किल 60 किमी की दूरी पर स्थित झंडाना गांव विकास और बुनियादी सुविधाओं के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। यहां के कुछ घरों पर राजनीतिक दलों के झंडे दिखाई दे रहे हैं, जो यह संकेत दे रहे हैं कि यह चुनाव का वक्त है।इस गांव के अधिकांश लोग स्थानीय भाषा 'भीली' बोलते हैं। गांव की निवासी 23 वर्षीय वंदना ने कहा कि यहां पर सही सड़कें नहीं हैं और हमें बाहरी दुनिया से जुड़ने के लिए नावों पर निर्भर रहना पड़ता है। जब कोई बीमार पड़ता है तो हम उसे नाव में ही पास के अस्पताल में ले जाते हैं।
10वीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाली एक महिला ने बताया कि यहां पर जीवनयापन करना बेहद कठिन है। स्थानीय लोगों का कहना है कि गर्मियों के मौसम में स्थिति और भी ज्यादा बदतर हो जाती है।यह भी पढ़ें: 'सुशासन को कुशासन में बदलने में एक्सपर्ट कांग्रेस, देश नहीं अपना स्वार्थ सर्वोपरि', पीएम मोदी ने छतरपुर की मिट्टी को किया प्रणाम
35 वर्षीय मछुआरे प्रेम सिंह सोलंकी ने बताया कि नेताओं ने पिछले चुनावों में घरों में पीने का पानी मुहैया कराने का वादा किया था, लेकिन अबतक वादा पूरा नहीं किया। यहां पर इंसानों और मवेशियों दोनों के लिए ही पानी की कमी है। कुछ वक्त पहले ग्रामीणों ने बोरवेल का प्रयास किया, लेकिन पथरीला इलाका होने की वजह से बोरवेल में पानी ही नहीं आया।