यह किस्सा है साल 1985 का। मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की थी। उस समय मोतीलाल वोरा के पास प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी थी। 9 मार्च, 1985 को अर्जुन सिंह ने दूसरी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन राजनीति का ऊंट किस करवट बैठने वाला था, इसका अंदेशा उन्हें ख्वाबों-ख्यालों में भी नहीं रहा होगा।
अगले ही दिन यानी 10 मार्च को अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल की सूची पर आलाकमान की मुहर लगवाने के लिए दिल्ली पहुंच गए। उन्हें राजीव गांधी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) से अपने मंत्रियों के नामों की सूची पर अनुमति लेनी थी, लेकिन राजीव गांधी ने कुछ और ही योजना बना रखी थी।दिल्ली पहुंचे अर्जुन सिंह जब राजीव गांधी से मिले तो उन्हें बताया गया कि वो पंजाब का राज्यपाल बनने जा रहे हैं। राजीव के इस फैसले से अर्जुन सिंह दुखी न हों, इसलिए उन्हें यह सुविधा दी गई कि वो अपनी पसंद के व्यक्ति को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामित कर दें।
15 मार्च को अर्जुन का चंडीगढ़ में राज्यपाल पद का शपथ ग्रहण समारोह तय किया गया। इधर, अर्जुन सिंह राजीव से मिलकर बाहर आए और जिस हवाई जहाज से दिल्ली आए थे, उसे वापस भोपाल भेज दिया। साथ ही अपने बेटे अजय सिंह को कॉल किया और मोतीलाल वोरा को तुरंत दिल्ली लाने का निर्देश दिया।
चमकी किस्मत से बेखबर
इधर, मोतीलाल वोरा के पास अजय सिंह का संदेशा आया कि, 'दिल्ली चलना है।' विमान में बैठे अजय सिंह यह नहीं जानते थे कि वोरा दिल्ली क्यों बुलाए गए हैं। उधर, अपनी चमक चुकी किस्मत से बेखबर मोतीलाल वोरा अजय से सिफारिश कर रहे थे कि वो अपने पिता से कहकर उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का पद दिलवा दें।
वो यह नहीं जानते थे कि उन्हें कैबिनेट नहीं मुख्यमंत्री का पद मिलने जा रहा है। एयरपोर्ट से अजय सिंह और वोरा सीधे मध्यप्रदेश भवन पहुंचे। वहां अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ उनका दोहपर के खाने पर इंतजार कर रहे थे।खाना खाने के बाद अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा को लेकर पालम हवाई अड्डा पहुंचे। राजीव गांधी यहां से रूस की यात्रा पर जाने वाले थे, उन्होंने वोरा को अपने पास बुलाया और कहा- 'अब आप मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।'
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल बोहरा। फाइल फोटोवोरा के सीएम बनने के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली हो गया। उनकी जगह यह पद दिग्विजय सिंह को मिला। इस पूरे घटनाक्रम में एक वाकये को छोड़कर बाकी सब वही हुआ जो अर्जुन सिंह चाहते थे। वो मुख्यमंत्री बने रहना चाहते थे, पर उन्हें पंजाब के राज्यपाल का पद मिला, लेकिन उनके विश्वासपात्र मोतीलाल वोरा को राज्य के मुखिया की कुर्सी मिली और उनके शिष्य दिग्विजय सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा लंबे समय तक छाई रही कि अर्जुन सिंह की विदाई राजीव गांधी ने पहले ही तय कर दी थी, लेकिन उनकी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए उन्हें 10 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की छूट दी। जिससे यह संदेश न जाए कि उन्हें प्रदेश की राजनीति से बाहर किया जा रहा है।
पत्रकार... पार्षद... और मुखिया
मोतीलाल वोरा का जन्म 20 दिसंबर, 1928 को राजस्थान के नागौर जिले (तब जोधपुर रियासत) के निंबी जोधा में हुआ था। बाद उनके पिता मोहनलाल वोरा और मां अंबा बाई वोरा मध्यप्रदेश आ गए। वोरा की पढ़ाई-लिखाई रायपुर और कोलकाता में हुई। पढ़ाई के बाद वो पत्रकार बन गए।
वो दुर्ग जिले से रायपुर तक सरकारी बस से आया करते थे। यहां जयस्तंभ चौक के पास पुराने बस अड्डे से किराए की साइकिल लेकर खबरों की खोज में निकल जाते थे। पत्रकार रहते हुए वे राजनीति में भी सक्रिय हो गए और प्रजा समाजवादी पार्टी से जुड़ गए।साल 1968 में उन्होंने दुर्ग नगर पालिका का चुनाव लड़ा और जीतकर पार्षद बन गए। फिर आया साल 1972, जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। प्रदेश के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र को दुर्ग में अपनी पार्टी के लिए एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश थी, जो वहां मोहनलाल बाकलीवाल की जगह ले सके। मोहनलाल दुर्ग के जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष व विधायक थे। उन्हें मिश्र के विरोधी गुट मूलचंद देशलहरा का करीबी माना जाता था।
किशोरी लाल शुक्ल ने द्वारका प्रसाद को मोतीलाल वोरा का नाम सुझाया और कहा कि प्रसपा का लड़का है, सभासद है। वह चुनाव जीत सकता है। द्वारका प्रसाद मिश्र ने संदेश भिजवाया तो वोरा प्रसपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गए और जीतकर विधायक बन गए।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हाथ थामे मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम मोतीलाल वोरा। फाइल फोटो
सीएम बनने के बाद अर्जुन से अनबन
मोतीलाल वोरा ने अपने कार्यकाल में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने पर काफी ध्यान दिया था। हालांकि, राज्यपाल बनने के बाद के शुरुआती कुछ समय तक अर्जुन सिंह चंडीगढ़ से वोरा को कुछ न कुछ संदेश भिजवाते थे।अगर यह कहा जाए कि उस समय मध्यप्रदेश सरकार चंडीगढ़ के राजभवन के इशारों पर चल रही थी तो यह भी गलत नहीं होगा, क्योंकि वोरा उनके संदेश और आदेश मानते भी थे। लेकिन यह व्यवस्था लंबे समय तक नहीं चली और जल्द ही वोरा ने अपना गुट बनाना शुरू कर दिया। इसी दौरान अर्जुन सिंह से उनकी अनबन भी हुई।
फरवरी 1988 में अर्जुन सिंह बतौर मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश लौट आए। इसके दो कारण बताए जाते हैं- पहला, राजीव गांधी को लगा कि मोतीलाल वोरा 1989 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी का नहीं जिता पाएंगे। वोरा की छवि कमजोर सीएम की है और ऐसे में राज्य में पार्टी के अलग-अलग गुटों को साध नहीं पाएंगे। दूसरा, अर्जुन सिंह राज्य में वापसी के लिए बेसब्र हो रहे थे।अर्जुन सिंह भोपाल लौटे तो वोरा राज्यसभा के रास्ते दिल्ली भेज दिए गए। राजीव गांधी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बनाया, लेकिन इस पद पर वह केवल 11 महीने ही रह पाए। उनकी किस्मत का सितारा फिर बुलंद हुआ और अर्जुन सिंह चुरहट लॉटरी कांड में फंसे, जिसके चलते कांग्रेस हाईकमान ने उनसे इस्तीफा ले लिया।
राजा वर्सेस महाराजा की जंग और वोरा का नाम
लॉटरी कांड के बाद राज्य में एक बार फिर मुखिया की तलाश शुरू हुई। इस बार अर्जुन सिंह ने अपने सबसे खास और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह के नाम की सिफारिश की। दूसरी ओर से माधवराव सिंधिया का नाम आया। राजा वर्सेस महाराजा के नाम पर टकराव की स्थित बन गई।उधर, दिल्ली में रहते हुए वोरा ने गांधी परिवार से अपनी नजदीकी काफी बढ़ा ली थीं। इसका रिजल्ट भी पॉजिटिव आया। राजा बनाम महाराजा के मामले को समाप्त करने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने मोतीलाल वोरा को दोबारा एक शर्त के साथ सीएम की कुर्सी सौंपीं कि वो माधवराव सिंधिया को नाराज नहीं करेंगे। इस तरह से 25 जनवरी, 1989 मोतीलाल वोरा ने दोबारा सीएम पद की शपथ ली।
मोतीलाल वोरा के राजनीतिक सफर के साथ ही उनके बाल कटवाने का एक किस्सा बड़ा ही रोचक है। पढ़िए ...
CM को आया बाल कटवाने का ख्याल तो थाने में बैठे रहे नाई
दरअसल, एक बार राजीीव गांधी ग्वालियर के दौरे पर आने वाले थे। ऐसे में सीएम मोतीलाल वोरा अगवानी के एक दिन पहले ही ग्वालियर पहुंच गए। सोते समय उन्हें ख्याल आया कि उनके बाल बड़े हो गए हैं और उनको कटवाने की आवश्यकता है। वोरा ने अपने सचिव केडी कुकरेती को इस बारे में बताया तो वो भी असमंजस में पड़ गए। क्योंकि रात के एक बजे नाई कहां खोजा जाए।सचिव ने ग्वालियर के पुलिस अधीक्षक को मुख्यमंत्री की ख्वाहिश के बारे में बताया। एसपी साहब ने कोतवाली थानेदार को आदेश दिया। थानेदार ने रात में ही अपने इलाके में सलून चलाने वालों को बुलवा लिया। कुल मिलाकर चार नाई मिले।जब तक नाई मिलने की सूचना मुख्यमंत्री तक पहुंचती, तब तक वह सो चुके थे। ऐसे में चारों को रातभर थाने में रोककर रखा गया और उनकी खूब आवभगत की गई। सुबह-सुबह पुलिस की जीप से चारों को सर्किट हाउस लाया गया।नाई देखकर वोरा खुश हुए और बाल कटवाने बैठ गए, लेकिन नाई भी होशियार निकला और उसने मुख्यमंत्री के पैर पकड़ लिए। उसने सीएम साहब के साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह किया। जैसे ही उसे अनुमति मिली तो उसने बताया कि वो अपने साथ ही एक फोटोग्राफर भी लेकर आया था।
(सोर्स: मप्र विधानसभा, किताब राजनीतिकनाम मध्यप्रदेश, क्षितिज का विस्तार)