MP Assembly Election 2023: कहानी उस CM की जिसने अपने मंत्री को गंगाजल देकर शपथ उठवाई और सौंप दी मुख्यमंत्री की कुर्सी
MP Assembly Election 2023 Uma Bharti सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लेकर आए हैं मध्यप्रदेश की उस मुख्यमंत्री का किस्सा जो कभी मधुर आवाज में कृष्ण भजन गातीं। लोगों को भागवत कथा सुनातीं और फिर एक रोज महारानी की नजर पड़ी तो जिंदगी बदल गई। पढ़िए मध्यप्रदेश की पूर्व और इकलौती महिला मुख्यमंत्री उमा भारती की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े चर्चित किस्से...
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लेकर आए हैं मध्यप्रदेश की उस मुख्यमंत्री का किस्सा, जो साध्वी हैं। भजन गाती थीं, लोगों को कथा सुनाती थीं। फिर एक दिन क्षेत्र की महारानी की नजर उन पर पड़ी और उसके बाद से सब बदल गया। उनके नेतृत्व में मध्यप्रदेश में भाजपा बंपर बहुमत के साथ सत्ता में आई। तब से आज तक (15 महीने के अलावा) वल्लभ भवन से राज्य की कमान भाजपा के हाथों में ही है।
साध्वी जब सत्ता में आईं तो एक्शन पैक मोड में काम शुरू हुआ। अधिकारियों के टालमटोल वाले रवैये पर लगाम कसी। दिग्विजय सिंह को बंटाधार की उपमा भी दी। लेकिन उनका सत्ता सुख मात्र 258 दिन ही चल सका।हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश की पूर्व और इकलौती महिला मुख्यमंत्री उमा भारती की। आइए पढ़ें राजनीतिक जिंदगी से जुड़े उनके चर्चित किस्से...
तारीख थी 8 दिसंबर और साल था 2003; भोपाल के लाल परेड मैदान में तत्कालीन राज्यपाल राम प्रकाश गुप्ता ने उमा भारती को राज्य के मुखिया पद की शपथ दिलाई। इसी मैदान में 1990 में सुंदर लाल पटवा ने भी शपथ ली थी।
पद संभालते ही उमा ने पहली कैबिनेट बैठक में 28 हजार दैनिक वेतन भोगियों को बहाल कर दिया। 90 आदिवासी ब्लॉकों के 14 लाख बच्चों को दलिया की जगह पूरा पका हुआ स्वादिष्ट भोजन देने की योजना शुरू की।
जब प्रमुख सचिव आरएस सिरोही ने खाली खजाने का हवाला देते हुए मंत्रिमंडल के सामने ही योजना को लागू करने से मना किया, तो उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा।बतौर सीएम उमा भारती ने दिग्विजय राज के आदी हो चुके अधिकारियों पर नकेल कसी। कैबिनेट बैठक हुई तो उससे अधिकारियों को बाहर रखने का फैसला लिया। श्यामला हिल्स स्थित सीएम आवास पहुंचते ही जनता दरबार लगाना शुरू किया। गायों के लिए गौसंवर्धन मंत्रालय बनाया।
(Source: जागरण नेटवर्क की पुरानी खबरों एवं मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा मध्यप्रदेश से साभार)
राजनीतिक सफर की शुरुआत
टीकमगढ़ जिले के डुंडा गांव में 3 मई 1959 को उमा भारती का जन्म हुआ। पिता खेती-किसानी करते थे। उमा कम उम्र से ही मधुर आवाज में कृष्ण भजन गातीं और भागवत कथा सुनातीं थी।कथा मशहूर हुई तो खबर उनके इलाके की महारानी विजयाराजे सिंधिया तक भी पहुंची। इसके बाद राजमाता उमा से मिलीं और यहीं से उमा की जिंदगी पूरी तरह बदल गई। विजयाराजे ने उमा को भाजपा के टिकट पर खजुराहो से चुनाव में उतार दिया। उमा चुनाव हार गईं, लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा और विश्व हिंदू परिषद से नजदीकियां बढ़ गईं। यहीं से वो राममंदिर आंदोलन में सक्रिय हो गईं।इस बीच 1989 में वह खजुराहो से लोकसभा चुनाव में जीत गईं। फिर 1991 के चुनाव में भी जीत गईं।राममंदिर आंदोलन में भी रहीं सक्रिय
उन दिनों दो महिला संतों के भाषणों की कैसेट बड़ी ही चर्चा में रहतीं। पहली साध्वी ऋतंभरा और दूसरी उमा भारती। तब राम मंदिर बनाने की मुहिम जोरों पर थी। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा गिरा तो मध्यप्रदेश में भाजपा की पटवा सरकार भी भरभरा कर ढह गई। नई सरकार कांग्रेस की बनी जिसकी अगुवाई 10 साल तक दिग्विजय सिंह ने की। दिग्गी को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने और 10 साल तक बनाए रखने में मध्यप्रदेश भाजपा की गुटबाजी का भी भरपूर योगदान था। दिग्विजय को तीसरी बार रोकने के लिए भाजपा हाईकमान ने उमा को मैदान में उतारा।2002 में उमा भोपाल से सांसद और अटल सरकार में मंत्री थीं। उमा से मप्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालने को कहा गया तो उन्होंने साफ मना कर दिया। हालांकि, अपनी पसंद के दो लोगों कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर को तैनात करा दिया।दिग्गी को कहा 'मिस्टर बंटाधार'
दिग्विजय विरोधी प्रचार अभियान में उमा की सक्रियता बढ़ी तो विरोध होने लगा। प्रमोद महाजन की सलाह पर लाल परेड मैदान में आयोजित हुई रैली में अटल बिहारी वाजपेयी ने सीएम के तौर पर उमा के नाम का ऐलान किया। सूबे के मुखिया के तौर पर उमा का नाम आया तो विकास के साथ ही हिंदुत्व के मुद्दे को भी हवा मिली। उमा ने बिपासा यानी बिजली, पानी और सड़क की समस्या के लिए दिग्विजय के शासन को जिम्मेदार ठहराया। इतना ही नहीं, उन्होंने दिग्विजय को 'मिस्टर बंटाधार' करार दे दिया। उमा ने संकल्प यात्रा निकाली और नारा दिया- आप सत्ता का परिवर्तन करो, हम व्यवस्था परिवर्तन करेंगे।हुआ भी ऐसा ही। 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 230 में से 173 सीटें जीतीं। कांग्रेस सिर्फ 38 सीटों पर सिमट गई। बताया जाता है कि जिस वक्त चुनाव परिणाम जारी हो रहा था, उस वक्त उमा भारती भोपाल में नहीं थीं। वह सतना के पास स्थित मैहर में शारदा देवी के मंदिर में पूजा-पाठ कर रही थीं। शाम करीब साढ़े पांच बजे वह हेलीकॉप्टर से सीधे लाल परेड मैदान में उतरीं। उस शाम मैदान में रैली सा नजारा था। फिर 8 दिसंबर, 2003 को उमा भारती ने सीएम पद की शपथ ली।जब दसमुराम बोले- दीदी बेरोजगार हूं
उमा भारती के सीएम रहते चाय की दुकान खुलवाने का एक किस्सा बड़ा ही मशहूर है। एक बार उमा के जनता दरबार में एक शख्स पहुंचा, जिसने अपना नाम दसमुराम बताया। जब सीएम उमा ने समस्या पूछी तो वह बोला- दीदी बेरोजगार हूं। उमा ने चाय की दुकान खोलने की सलाह दी। दसमुराम ने तुरंत पूछ लिया- कहां खोलें दीदी? इस उमा ने तुरंत अपने एक अधिकारी को बुलाया और आदेश दिया कि कल से सीएम आवास के गेट नंबर-6 के बाहर दसमुराम चाय की दुकान चलाएंगे।राज्य में बेरोजगारी का आलम इस कदर था कि जनता दरबार में हजारों की संख्या में लोग नौकरी मांगने पहुंच गए। सबकी किस्मत दसमुराज जैसी नहीं थी। ऐसे में उमा को जनता दरबार बंद करना पड़ा।मंच से बताया- किससे करनी थी शादी?
1 मई, 2004 को उस वक्त के मध्यप्रदेश के राज्यपाल राम प्रकाश गुप्ता का निधन हो गया। 30 जून को डॉ. बलराम जाखड़ नए राज्यपाल बने। उसी दिन भोपाल के रवींद्र भवन में एक किताब का विमोचन था। कार्यक्रम में देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कैलाश जोशी, संगठन मंत्री कप्तान सिंह और गोविंदाचार्य बैठे थे। तभी एकाएक उमा मंच पर पहुंची और अपने व गोविंदाचार्य के निजी संबंधों पर बोलने लगीं।उमा भारती ने कहा, ''1991 के लोकसभा चुनाव के बाद गोविंदाचार्य ने मुझसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी। पर ये बात जैसे ही मेरे भाई स्वामी लोधी को पता चली उन्होंने तत्काल प्रस्ताव को खारिज कर दिया। एक साल बाद 17 नवंबर, 1992 को मैंने संन्यास ले लिया। उमा के इस बयान के बाद हॉल में एक असहज चुप्पी छा गई। संघ को भी उनका बड़बोलापन रास नहीं आया।क्यों छोड़नी पड़ी थी कुर्सी
उन दिनों दो घटनाएं ऐसी हुईं, जिनके कारण उमा भारती को आठ महीने में कुर्सी छोड़नी पड़ी। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जीत गई और अटल सरकार चली गई। पद विहीन अरुण जेटली, प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू समेत तमाम बड़े नेताओं की नजर मध्यप्रदेश पर आ गई। ये सभी उमा भारती के समकालीन थे और प्रतिद्वंदी भी।इसी दौरान, उमा भारती के नाम पद दर्ज दस साल पुराने एक मामले में गैर जमानती वारंट जारी हुआ। 1994 में कर्नाटक के हुबली के एक विवादित ईदगाह में उमा भारती ने तिरंगा लहराया था। अधिकारियों की लापरवाही के चलते उमा भारती को जेल जाना पड़ा।उमा ने सीएम बनते ही एक डीआईजी को नियुक्त किया था, लेकिन पुलिस अधिकारी हुबली जाने के बजाय तीन घंटे की दूरी पर गोवा में रुके हुए थे। नतीजा यह निकला कि हुबली की अदालत ने उमा भारती के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया।अब सवाल ये था कि मुख्यमंत्री के तौर पर उमा भारती गिरफ्तारी कैसे दें? इसको लेकर उधेड़बुन मची हुई थी। आखिरकार, 23 अगस्त 2004 को उमा भारती को इस्तीफा देना पड़ा। उनके साथ ही 24 मंत्रियों ने भी इस्तीफा दिया।राजनीति के जानकार कहते हैं कि उमा ने यह फैसला इसलिए भी लिया था कि तिरंगे के नाम पर कुर्बानी उन्हें और बड़ा नेता बना देगी, पर ये उनके जीवन की शायद सबसे बड़ी राजनीतिक गलती थी।21 देवी-देवताओं के सामने गंगाजल से शपथ
जब उमा भारती ने जब इस्तीफा दिया तो उनके बदले मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी की पसंद शिवराज सिंह (मौजूदा सीएम) थे, लेकिन उमा ने अपने सबसे भरोसेमंद बाबूलाल गौर को सीएम बनाया। उमा को लगा था कि जब वह जेल से छूटकर आएंगी तो गौर पद छोड़ देंगे।सीएम पद की शपथ दिलाने से पहले उमा भारती ने सीएम हाउस में बने 21 देवी-देवताओं के मंदिर में बाबूलाल गौर को गंगाजल हाथ में लेकर शपथ दिलाई कि जब वह कहेंगी, तब गौर इस्तीफा दे देंगे। हालांकि जब उमा ने कहा, तब गौर ने इस्तीफा नहीं दिया और हालात ऐसे बने कि भाजपा ने उमा भारती को ही पार्टी से निष्कासित कर दिया था।'इस्तीफा देने की बात हुई थी...'
बाबूलाल गौर करीब 16 महीने तक सीएम पद पर रहे। जब शिवराज के सीएम बनने की बारी आई और उमा भारती ने बाबूलाल गौर को इस्तीफा देने से मना किया।तब बाबू लाल गौर ने कहा, ''आपने मुझे जब आप कहें, तब इस्तीफा देने की कसम दिलाई थी। इस बात की नहीं कि मैं इस्तीफा कब नहीं दे सकता।''यह भी पढ़ें - Madhya Pradesh assembly election 2023: पत्रकार से पार्षद और फिर रातोंरात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की कहानीयह भी पढ़ें - MP Assembly Election 2023: राजनीति का वो चाणक्य, जिसने दुनिया को अलविदा कहा तो कफन भी नसीब नहीं हुआयह भी पढ़ें - MP Assembly Election 2023: खुद को दिलीप कुमार जैसा मानने वाले वो सीएम जो खानपान के थे बड़े शौकीन(Source: जागरण नेटवर्क की पुरानी खबरों एवं मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा मध्यप्रदेश से साभार)