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MP Assembly Election 2023: कहानी उस CM की जिसने दो कार्यकाल पूरे किए; जब कुर्सी गई तो विपक्षियों ने राजा साहब को कहा ‘मिस्‍टर बंटाधार’

सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लाए हैं कहानी मध्‍यप्रदेश के उस मुख्‍यमंत्री की जिसे आज भी राजगढ़-ब्यावरा बेल्ट में ‘राजा साहब’ बुलाया जाता है। लगातार दो बार सीएम बने और दोनों कार्यकाल पूरे किए जो कि राज्य में बहुत कम मुख्‍यमंत्री ही कर पाए हैं। विरोधियों ने मिस्टर बंटाधार की उपाधि दी। पढ़िए मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े चर्चित किस्से…

By Deepti MishraEdited By: Deepti MishraUpdated: Fri, 27 Oct 2023 08:00 AM (IST)
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MP Assembly Election 2023: मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीतिक जिंदगी।

ऑनलाइन डेस्‍क, दिल्ली। MP Assembly Election 2023: सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लाए हैं कहानी मध्‍यप्रदेश के उस मुख्‍यमंत्री की, जिसे आज भी राजगढ़-ब्यावरा क्षेत्र में ‘राजा साहब’ बुलाया जाता है। अयोध्या में बाबरी ढांचा गिरा तो तत्कालीन भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और सूबे के मुखिया की कमान इन्हें मिली। बैतूल के चर्चित गोलीकांड के बावजूद लगातार दूसरी बार सीएम बने और कार्यकाल भी पूरा किया।

लेकिन सत्ता सुख लंबा नहीं चला और 2003 में पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। विरोधियों ने उनके कार्यकाल की निंदा करते हुए उन्हें 'मिस्टर बंटाधार' की उपाधि दी। उनके कई किस्से बेहद मशहूर हैं, जिनमें से एक तो उत्साह में सचिव के बाल खींचने का है तो दूसरा यह है कि उनकी बेटी उन्हें दाढ़ी बनाने वाला समझती थी। हम आपको यह भी बताएंगे कि राजा साहब को दिग्गी राजा नाम कैसे मिला।

पढ़िए, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े कुछ चर्चित किस्से…

हर किसी को याद रखना, नाम लेकर पुकारना, कभी विनम्र तो कभी कठोर हो जाना। कभी किसी को गले लगाना, किसी के कंधे पर हाथ रख देना और कभी वही शख्स सामने पड़ जाए तो भी उसे अनदेखा कर देना। एक पल में ही बात सुन-समझकर मान लेना तो कभी गंभीर बात को हंसी ठहाके में उड़ा देना... ये और ऐसी तमाम अदाएं दिग्विजय सिंह की पहचान हैं। अपने राजनीतिक विरोधियों को भी अपनी विनम्रता के अस्त्र से निरुत्तर कर देना उनकी खास राजनीतिक शैली है।

6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहाया गया। ढांचा गिरने की आंच मध्यप्रदेश तक आई और राज्य की पटवा सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि उस समय विधानसभा का कार्यकाल ढाई साल बाकी था।

अगले एक साल तक राजभवन से राजकाज देखा गया। नवंबर, 1993 में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस को 320 में से 174 सीटें मिलीं। इसी के साथ विधायक दल के नेता की रेस शुरू हो गई।

प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने शुरुआत में अर्जुन सिंह को मध्यप्रदेश की कमान थमानी चाही, लेकिन उस वक्त राव के एक भरोसेमंद ज्‍योतिषी ने इसके उलट सलाह दी। कहा- इससे आगे चलकर राव को खतरा हो सकता है। अब शुरू हुई सीएम पद की दावेदारी।

सिंधिया का विमान खड़ा रहा और दिग्गी ने ली शपथ

पहला नाम पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल का आया। दूसरा माधवराव सिंधिया का, जो उस वक्त केंद्र में मंत्री थे। सिंधिया की दावेदारी इतनी पुख्ता थी कि उन्होंने दिल्‍ली एयरपोर्ट पर एक प्‍लेन भी रिजर्व में रखा था। कहा गया कि मंत्री जी कभी सीएम पद की शपथ लेने के लिए भोपाल की उड़ान भर सकते हैं।

तीसरा नाम अर्जुन सिंह ने आगे बढ़ाया। यह नाम दिल्‍ली में कम चर्चित और मध्‍यप्रदेश कांग्रेस में ओबीसी वर्ग के सबसे बड़े नेता सुभाष यादव का था। कहा गया कि अब दलितों और पिछड़ों को शीर्ष पर बैठाने का वक्त आ गया है।

राव खेमा बैकफुट पर था और अर्जुन सिंह एकदम चुप, क्‍योंकि सुभाष यादव सिर्फ डमी थे। अर्जुन सिंह की ओर से सीएम पद के असली दावेदार दिग्विजय सिंह थे। वह उस वक्त कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाल रहे थे।

अर्जुन सिंह ने शुरुआत में दिग्विजय सिंह का नाम इसलिए आगे नहीं बढ़ाया, क्योंकि उन्हें डर था कि श्यामाचरण और सिंधिया एक हो जाएंगे तो दिग्गी सीएम नहीं बन पाएंगे। हालांकि, श्यामाचरण और सिंधिया एक हुए, लेकिन तब तक तीर कमान से छूट चुका था।

दिल्ली से सिंधिया का चार्टर्ड प्लेन रवाना हुआ, लेकिन उसमें वह खुद नहीं थे। उनके दूत थे। सिंधिया ने अपने दूतों के जरिये समर्थक विधायकों के लिए संदेश भेजा। कहा कि विधायक दल की बैठक में श्यामाचरण के नाम पर वोट दें, लेकिन विधायकों ने ऐसा नहीं किया।

आखिरकार 7 दिसंबर 1993 को दिग्विजय सिंह ने सीएम पद की शपथ ले ली। उस वक्त अर्जुन सिंह को लगा कि उन्होंने बाजी जीत ली, लेकिन जल्द ही दिग्विजय सिंह ने अपनी निष्ठा बदल ली। दिग्विजय साल भर में राव के खास बन गए। बाद में सोनिया राज में प्रासंगिक बने रहे।

उत्साह में खींचे सचिव के बाल

बताया जाता है कि जब विधायक दल की बैठक हुई और सर्वसम्मति से दिग्विजय सिंह के नाम पर तालियां बजीं, तो वहां बैठे उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह इतने खुश हुए कि उन्होंने साथ बैठे आदमी के सिर के बाल पकड़कर प्रसन्नता में खींच दिए। जिसके बाल खींचे वह कोई और नहीं सचिव रघुवंशी थे। लक्ष्मण सिंह उन दिनों विधायक थे।

बैतूल गोली कांड के बाद बने दोबारा सीएम

12 जनवरी, 1998 का दिन था। मध्यप्रदेश के बैतूल में तहसील दफ्तर के बाहर किसान जमा हुए। किसानों की फसल गेरुआ चाट गया था। तभी किसी ने ललकारा तो भीड़ काबू करने वाला प्रशासन खुद भीड़ में गिर गया। पुलिस ने हवा में गोलियां चलानी शुरू की, लेकिन गोलियों की आवाज सुनकर भीड़ तहसील की ओर बढ़ी।

तभी बंदूक की नली किसानों की ओर कर दी गई। एक-दो नहीं, उस दिन 19 लाशें गिरीं, जिनमें 18 किसान थे और एक फायर ब्रिगेड का ड्राइवर, जो भीड़ के हत्थे चढ़कर मारा गया था।

यह घटना दिग्गी के पहले कार्यकाल में हुई थी, उसके कुछ ही समय बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे। नवंबर 1998 में दिग्विजय के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव में उतरी तो 320 में से 172 सीटें जीतीं। 1993 की तुलना में महज दो सीटें कम मिली थीं। दिग्विजय सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बने।

राजनीतिक सफर की शुरुआत

दिग्विजय सिंह का जन्‍म 28 फरवरी 1947 को मध्यप्रदेश के राघोगढ़ राजपरिवार में हुआ। बचपन में हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट खूब खेला। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फिर सियासत में उतर आए।

दिग्विजय के पिता बलभद्र सिंह 1952 में राघोगढ़ से विधायक बने थे। उन्‍होंने पर्चा निर्दलीय भरा था, लेकिन बाद में हिंदू महासभा ने समर्थन कर दिया। दिग्विजय ने भी 22 साल की उम्र राघोगढ़ से निर्दलीय नगरपालिका चुनाव जीता था।

इस जीत ने किसी को हैरान नहीं किया, क्योंकि राजगढ़-ब्यावरा बेल्ट में अब भी दिग्विजय को राजा साहब ही बुलाया जाता है। यहां की प्रजा अब तक अपने राजा को ही वोट देती आई है। कांग्रेस नेता गोविंद नारायण सिंह से बलभद्र सिंह का याराना था। ऐसे में 25 की उम्र में दिग्विजय कांग्रेस में शामिल हो गए।

पहले कांग्रेस से सांसद रहीं और मौजूदा वक्त में जनसंघ की नेता राजमाता विजयाराजे सिंधिया दिग्विजय सिंह को अपनी पार्टी में करना चाहती थीं। राघोगढ़ रियासत ग्वालियर राज्य के अधीन आती थी, इसलिए दिग्गी के पिता राजमाता के पति को अन्नदाता कहा करते थे।

दिग्विजय पुरानी अन्‍नदाता के दरबार में जाकर मात्र ताबेदार बनना नहीं चाहते थे। 1977 में राघोगढ़ से विधायक बन वह विधानसभा पहुंचे। 1980 में फिर विधानसभा चुनाव जीते तो अर्जुन सरकार में मंत्री बने।

10 साल सीएम और फिर 10 साल बाहर...

दिग्विजय सिंह 1984 के लोकसभा चुनाव में राजगढ़ सीट से जीतकर दिल्‍ली पहुंचे। जब अर्जुन सिंह पंजाब के राज्यपाल बने तो दिग्विजय को मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनवा दिया। साल 1993 से लगातार 2003 तक सीएम रहे।

और कहा जाने लगा बंटाधार

दूसरी बार सीएम बनने के बाद दिग्विजय सिंह ने विकास के मुद्दे की खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि चुनाव सड़कें बनवाकर नहीं जीते जाते, बल्कि राजनीतिक प्रबंधन से जीते जाते हैं।

बतौर मुख्यमंत्री दिग्विजय ने अनगिनत गलतियां कीं। सरकारी तंत्र में कॉन्ट्रैक्ट कल्चर ले आए। शिक्षक की जगह शिक्षाकर्मी, खस्ता हाल सड़कें और हमेशा नदारद बिजली तीनों ही दिग्‍गी को हराने के कारण बने।

बस फिर क्‍या था साल 2003 में भाजपा नेता उमा भारती ने दिग्‍गी को मिस्टर बंटाधार कहना शुरू कर दिया। जब हारे तो 10 साल तक चुनाव न लड़ने का फैसला किया और उस पर कायम भी रहे। साल 2013 में कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को पार्टी का राष्‍ट्रीय महासचिव बना दिया।

कैसे पड़ा दिग्गी राजा नाम?

यह घटना दिल्ली की है। राजीव गांधी ने कुछ वरिष्ठ संपादकों को डिनर पर बुलाया। इस दौरान दिग्विजय समेत पार्टी के कुछ युवा सांसद भी मौजूद थे। आयोजन में ब्लिट्ज अखबार के संपादक रूसी करंजिया भी आए थे। वो बार-बार दिग्विजय सिंह बोलने पर अटक जा रहे थे।

ऐसे में उन्होंने दिग्विजय सिंह को दिग्गी राजा बुलाना शुरू कर दिया। बस तभी से यह नाम मीडिया में मशहूर हो गया। हालांकि, दिग्विजय को यह संबोधन पसंद नहीं है।

पापा क्या करते हैं? जवाब सुन चौंक गई टीचर

यह बात है साल 1980 की। दिग्विजय सिंह उन दिनों राजनीति में इतना व्‍यस्‍त रहते कि बच्चों को समय ही नहीं दे पाते थे। दिग्गी की बड़ी बेटी भोपाल के सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ती थी।

एक दिन क्‍लास टीचर ने उनकी बेटी से पूछा कि आपके पापा क्या करते हैं? छोटी बच्‍ची ने बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया- पापा दाढ़ी बनाते हैं। यह सुनकर टीचर और बाकी सभी बच्‍चे हैरान रह गए।

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(Source: जागरण नेटवर्क की पुरानी खबरों एवं मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा मध्‍यप्रदेश से साभार)