MP Assembly Election 2023: खुद को दिलीप कुमार जैसा मानने वाले वो सीएम जो खानपान के थे बड़े शौकीन
MP Assembly Election 2023 former CM Prakash Chandra Sethi सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लेकर आए हैं उस मुख्यमंत्री का किस्सा जिसकी प्रशासनिक सख्ती की आज भी मिसालें दी जाती हैं। इंदिरा गांधी के प्रति निष्ठा और अपने अजीबोगरीब शौक के चलते वो हमेशा चर्चा में रहे। पढ़िए मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी (पीसी सेठी) की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े चर्चित किस्से…
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। MP Assembly Election 2023: सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लेकर आए हैं उस मुख्यमंत्री का किस्सा, जिसकी प्रशासनिक सख्ती की आज भी मिसालें दी जाती हैं। इंदिरा गांधी के प्रति निष्ठा और अपने अजीबोगरीब शौक के चलते वो हमेशा चर्चा में रहे।
जब उनके सामने डाकुओं के बढ़ते आतंक की समस्या लाई गई तो उन्होंने इसका जो निराकरण सुझाया, उसे सुनकर आला अधिकारी भी चौंक गए थे। वहीं हवाई जहाज से पजामा मंगाने का किस्सा भी आज तक याद किया जाता है।
तो आइए जानते हैं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी (पीसी सेठी) की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े चर्चित किस्से…
महाकाल की नगरी से शुरू हुआ था सफर
सेठी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत उज्जैन से की थी। साल 1961 में वो कांग्रेस पार्टी से उज्जैन नगर पालिका के अध्यक्ष थे। तभी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का निधन हुआ, जिससे सेठी के भाग्य को नया जन्म मिल गया।
उन दिनों उज्जैन के त्र्यंबकेश्वर दामोदर पुस्तके राज्यसभा सदस्य थे। उनके निधन के बाद उनके स्थान पर सेठी को राज्यसभा भेजा गया। हालांकि सेठी के पहले विंध्य प्रदेश के कद्दावर नेता व दो बार राज्यसभा सांसद रह चुके अवधेश प्रताप सिंह का नाम चला, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
उस समय कांग्रेस पार्टी बैक टू बैक दो बार से ज्यादा बार किसी को भी राज्यसभा नहीं भेजती थी। ऐसे में अवधेश का नाम कटा और सेठी की लॉटरी लग गई। सेठी सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे। कहा जाता था कि सेठी को द्वारका प्रसाद मिश्र की नजदीकी फल रही थी। हालांकि, ये नजदीकियां हमेशा से नहीं थीं।
(सोर्स : मप्र विधानसभा, राजनीतिनामा मध्यप्रदेश, प्रकाश चंद्र सेठी-अभिनंदन ग्रंथ, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के)
पीएम के रहे खास
सेठी स्थानीय राजनीति में डीपी मिश्र के विरोधी तख्तमल जैन के समर्थक माने जाते थे, लेकिन केंद्र में आने पर उन्होंने पाला बदल लिया था। साल 1963 में डीपी कसडोल सीट से चुनाव जीते। कामराज के प्लान के तहत उस वक्त के सीएम भगवंतराव मंडलोई का इस्तीफा हुआ। इंदिरा की सिफारिश पर डीपी मिश्र की कांग्रेस पार्टी में शानदार वापसी हुई। नेहरू ने मिश्र के राज्याभिषेक कराने का जिम्मा सेठी को सौंपा था। सेठी ने भोपाल पहुंचकर विधायक दल की बैठक में हाईकमान का फैसला सुनाया। इस पूरे एपिसोड में सेठी ने एक बात सीखी कि पार्टी हाईकमान की इच्छा ही अपनी अभिलाषा होनी चाहिए। इसके बाद पीएम पद पर लाल बहादुर शास्त्री आए, फिर इंदिरा गांधी सुशोभित हुईं। पर सेठी सभी के साथ रहे। जब राज्य में विधानसभा चुनाव आए तो द्वारका प्रसाद मिश्र ने टिकट वितरण के लिए सेठी को कुछ निर्देश दिए। इसका सार यह था कि मिश्र अपने लोगों को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन सेठी ने यह बात नहीं मानी। नाराज मिश्र ने अपना आजमाया हुआ फॉर्मूला अपनाया। उन्होंने जबलपुर और भोपाल में अपने खास मंत्री और विधायकों के जरिये चुनाव से पहले सीएम सेठी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।'हद में रहो, वरना हवालात में रहोगे'
मिश्र के फॉर्मूले का जवाब सेठी ने एक जबरदस्त धमाके के रूप में दिया। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गुलाबी चना कांड की जांच कराने का ऐलान कर दिया। बताया जाता है कि यह फैसला लेने से पहले सेठी दिल्ली गए थे। उन्हें वहां की रंगत बदली हुई नजर आई। पीएम ऑफिस में इंदिरा के बेटे संजय का दखल बढ़ चुका था। डीपी मिश्र किनारे किए जा रहे थे। दिल्ली में सेठी ने इंदिरा गांधी से अपने उम्मीदवारों की लिस्ट पर मुहर लगवा ली। साथ ही डीपी मिश्र के कारण होने वाली परेशानी का जिक्र भी कर दिया। इंदिरा ने सूची पर साइन किए और सेठी को गुलाबी चना कांड याद दिलाया।दरअसल, इसी घोटाले के कारण साल 1967 में गोविंद नारायण सिंह ने मिश्र की सरकार गिरा दी थी और खुद सीएम बन गए थे। सेठी ने घोटाले की फाइल दोबारा खोलकर द्वारका प्रसाद मिश्र को साफ कर दिया था कि हद में रहो, वरना हवालात में रहना होगा।बम गिरा दो...
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाले कुछ जिलों में डाकुओं का आतंक था। सेठी उनका खात्मा करना चाहते थे, पर इसके लिए वो गांधीवादी विचारधारा से सहमत नहीं थे। एक दिन वो अचानक दिल्ली पहुंच गए और केंद्रीय गृह विभाग के अधिकारियों संग बैठक कर अपनी इच्छा भी जाहिर कर दी।सेठी ने कहा, 'डकैतों की छिपने वाली जगह पर भारतीय वायुसेना को बम गिरा देना चाहिए।' यह प्रस्ताव सुन अधिकारी सन्नाटे में आ गए। इसके बाद सेठी तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम के दफ्तर पहुंचे और बम गिराने की अनुमति ले आए। अगले दिन सेठी भोपाल लौट आए। उधर एयर फोर्स मुख्यालय में ऑपरेशन की तैयारी होने लगी। लेकिन यह खबर लीक हो गई और अखबारों में छप गई। डकैतों को भी खबर लगी तो घबराकर करीब 450 ने हथियार डाल दिए। बाकी रहे बचे डकैतों ने वहां से भाग निकलने में ही अपनी भलाई समझी।दामाद बना हिस्सेदार तो नहीं लगने दिया प्लांट
प्रकाश चंद्र सेठी को प्रशासनिक चुस्ती और सख्ती के लिए भी याद किया जाता है। उनके चार साल के कार्यकाल पर कोई उंगली नहीं उठा पाया। सेठी ने न चंदा उगाही करने दी और न ही अपने रिश्तेदारों को पद का लाभ लेने दिया। सेठी के एक दामाद अशोक पाटनी, बस्तर जिले (अविभाजित मध्यप्रदेश) में लगाए जाने वाले सॉल्वेंट प्लांट में हिस्सेदार बन गए। इस प्लांट को राज्य सरकार की मंजूरी भी मिल चुकी थी। जब सेठी को यह जानकारी मिली तो उन्होंने कारखाने के लिए मिली मंजूरी को वापस ले लिया। इस कारण बस्तर में वह प्लांट नहीं लग सका।हवाई जहाज से मंगाया था पजामा
शासन-प्रशासन को लेकर सख्ती के साथ ही सीएम सेठी के सनक मिजाज के भी कई किस्से बहुत चर्चित हैं। बतौर सीएम सेठी सरकारी हवाई जहाज से यात्रा करना पसंद करते थे। यह किस्सा तब का है जब सेठी कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की शादी में शामिल होने के लिए कश्मीर गए थे। वहां उन्हें याद आया कि वे अपने साथ पजामा लाना भूल गए हैं। बस फिर क्या था, सेठी ने तुरंत पायलट को वापस भोपाल भेजा और उससे अपना पजामा मंगाया।खुद को बताया था दिलीप कुमार
सेठी को अपनी छवि से बेहद प्रेम था। रायपुर (अब छत्तीसगढ़ की राजधानी) में आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए वह बोल गए थे कि 'लोग श्यामाचरण शुक्ल को खूबसूरत और सुंदर कहते हैं, पर मैं क्या दिलीप कुमार से कम हूं।'अधिकारी पर उठाया था हाथ
प्रकाश चंद्र सेठी बातचीत करते और भाषण देते वक्त अक्सर बहक जाया करते थे। अधिकारियों को भला बुरा कहते। एक बार तो गुस्से में हाथ भी उठा दिया था। जब इसकी शिकायत इंदिरा गांधी तक पहुंची तो उन्होंने सेठी को स्वास्थ्य लाभ के लिए पहले एक योग केंद्र में भेजा। फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर श्यामाचरण शुक्ल को दोबारा सीएम बना दिया था।साल 1989 में इंदौर से लोकसभा चुनाव लड़े। उस चुनाव में वह भाजपा प्रत्याशी सुमित्रा महाजन से 90 हजार वोटों से हार गए। इसी के साथ वह हमेशा के लिए हाशिए पर चले गए। फिर 21 फरवरी, 1996 में उनका निधन हो गया।अगर घटनाक्रम पर नजर डाली जाए तो लगता है - जैसे सेठी का भाग्य इंदिरा गांधी के भाग्य से जुड़ा था। इंदिरा गांधी की हत्या के साथ ही उनका राजनीतिक अवसान शुरू हो गया।यह भी पढ़े - MP Assembly Election 2023: राजनीति का वो चाणक्य, जिसने दुनिया को अलविदा कहा तो कफन भी नसीब नहीं हुआ यह भी पढ़ें - Madhya Pradesh assembly election 2023: पत्रकार से पार्षद और फिर रातोंरात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की कहानी(सोर्स : मप्र विधानसभा, राजनीतिनामा मध्यप्रदेश, प्रकाश चंद्र सेठी-अभिनंदन ग्रंथ, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के)