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MP Election 2023: राजनीति की नई तस्वीर बना महाकोशल, भाजपा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह सीट; समझें पूरा समीकरण

MP Election 2023 महाकोशल में जिसने चुनावी बाजी मार ली वही सत्ता का सिकंदर होता है। अगर सिंधिया का विद्रोह नहीं हुआ होता तो पिछला चुनाव इसका उदाहरण था। इस विद्रोह के बाद भी महाकोशल की तस्वीर में कोई खास बदलाव नहीं आया। सत्ता के नए सिकंदर को चुनने की ओर जा रहे प्रदेश में आज भी महाकोशल की कुल 38 सीटों में से 24 पर कांग्रेस का कब्जा है।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Thu, 31 Aug 2023 06:45 AM (IST)
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MP Election 2023: राजनीति की नई तस्वीर बना महाकोशल, भाजपा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह सीट; समझें पूरा समीकरण
जबलपुर, जेएनएन। 2018 में अगर कांग्रेस की सरकार बनी थी तो इसमें महाकोशल क्षेत्र का बड़ा योगदान था। यहां कांग्रेस ने 11 सीटों से बढ़त हासिल की थी। इन्हीं 11 सीटों की बढ़त के दम पर कांग्रेस प्रदेश में सरकार बना पाई थी। बाद में हुआ सिंधिया का विद्रोह इतिहास में दर्ज हो ही गया है। इन्हीं के दम पर प्रदेश में भाजपा की सरकार सत्ता में है। कांग्रेस का पूरा प्रयास है कि इस इलाके में बनी बढ़त कायम रखी जाए। वहीं, भाजपा का जोर इस बात का है कि महाकोशल में अपनी साख वापस प्राप्त की जाए। यह तय है कि यहां की कुल 38 सीटों से ही प्रदेश की सत्ता का खेवैया तय होगा।

कहते हैं कि महाकोशल में जिसने चुनावी बाजी मार ली, वही सत्ता का सिकंदर होता है। अगर सिंधिया का विद्रोह नहीं हुआ होता तो पिछला चुनाव इसका उदाहरण था। इस विद्रोह के बाद भी महाकोशल की तस्वीर में कोई खास बदलाव नहीं आया। सत्ता के नए सिकंदर को चुनने की ओर जा रहे प्रदेश में आज भी महाकोशल की कुल 38 सीटों में से 24 पर कांग्रेस का कब्जा है।

भारतीय जनता पार्टी के हिस्से में एक दर्जन से एक सीट अधिक यानी 13 सीटें ही आईं थीं। एक पर निर्दलीय प्रदीप जायसवाल ने जीत हासिल की थी। महाकोशल के बदले हालात में राजनीतिक पंडित मानते हैं कि जो महाकोशल फतह कर लेगा, वही सत्ता को संभालेगा। इससे शायद भाजपा भी सहमत है, तभी तो प्रदेश के 34 विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों की पहली सूची में महाकोशल के ही 11 प्रत्याशी शामिल हैं।

सिवनी में गार्गी शंकर और विमला वर्मा की

यादें आज भी कांग्रेस के काम की सिवनी के गार्गी शंकर मिश्रा हों या विमला वर्मा, अब तो इन दोनों की यादें ही बाकी हैं लेकिन उनकी सीधी-सपाट प्रभावशाली राजनीति के चर्चे आज भी होते रहते हैं। 1970 के आसपास की बात करें तो कांग्रेस उस जमाने से यहां ताकतवर रही है। यही कारण है कि यहां भाजपा अधिकतम दो सीटें सिवनी या केवलारी से ही जीत पाती है। बाकी दो बरघाट और लखनादौन पर कांग्रेस का ही कब्जा रहता है। बालाघाट जिले में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का कभी प्रभाव हुआ करता था लेकिन पिछले चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिली।

कमल नाथ की कर्मभूमि है महाकोशल

महाकोशल के साथ खास बात यह भी है कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ की यह कर्मभूमि है। छिंदवाड़ा जिले की सभी सातों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा इसी कारण है। पड़ोस के जिलों तक उनका असर है। सिवनी में चार में से दो, नरसिंहपुर में चार में से तीन और बालाघाट में छह में से तीन सीट पर कांग्रेस जीती थी। कमल नाथ की कोशिश पिछले विधानसभा चुनाव से और अच्छी स्थिति बनाने की है। वहीं भाजपा पिछले चुनाव में लगे झटके से उबरने की कोशिश में है और कमल नाथ को उनके गढ़ में हराने का उसका सपना भी वाजिब है।

प्रियंका का चुनाव प्रचार शुरू

महाकोशल के महत्व को देखते हुए कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही यहां कोई कमी रखने के मूड में नहीं हैं। कांग्रेस ने तो अपने चुनाव अभियान का आगाज महाकोशल की राजधानी माने जाने वाले जबलपुर से राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से इसी कारण करवाया है। पूरे राज्य से कांग्रेस बड़े नेता जुटे थे। भाजपा की ओर से यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग हर हफ्ते आ रहे हैं। हाल ही में उनका बड़ा रोड शो जबलपुर में हुआ और यहीं उन्होंने सु-राज कालोनी योजना का शुभारंभ भी किया।

भाजपा के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है महाकोशल

एक-एक सीट का संघर्ष होना है तो महाकोशल भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। यहां पिछले चुनाव में भाजपा 11 सीटों से पीछे रही। पार्टी इस चुनाव में अपनी कमी को दूर करना चाहती है। जबलपुर भाजपा का गढ़ था लेकिन प्रत्याशी चयन और भितरघात के कारण भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। जबलपुर को ही देखें तो यहां एक सीट से धीरज पटेरिया ने विद्रोह कर दिया था, नतीजा भाजपा की हार हुई थी। एक और सीट जबलपुर पश्चिम टिकट के दावेदारों के भितरघात के कारण हाथ से चली गई थी। धीरज लौट आए हैं और जबलपुर उत्तर सीट से दावेदारी जता रहे हैं।