MP Election Result 2023: BJP की जबरदस्त चुनावी जीत, अपना गढ़ भी नहीं बचा पाए कई दिग्गज कांग्रेस नेता
मध्य भारत प्रांत में भाजपा की ऐसी सुनामी आई कि साढ़े तीन वर्ष पूर्व ही कांग्रेस की 20 महीने की सरकार में मंत्री रहे अपने क्षेत्रों के कई दिग्गज भी अपनी सीट तक नहीं बचा पाए। राजधानी भोपाल से चुने जाने वाले कद्दावर नेता और जनसंपर्क मंत्री रहे पीसी शर्मा से लेकर ऊर्जा मंत्री रहे प्रियव्रत सिंह हार का सामना करना पड़ा।
By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Wed, 06 Dec 2023 03:00 AM (IST)
प्रवीण मालवीय, भोपाल। मध्य भारत प्रांत में भाजपा की ऐसी सुनामी आई कि साढ़े तीन वर्ष पूर्व ही कांग्रेस की 20 महीने की सरकार में मंत्री रहे अपने क्षेत्रों के कई दिग्गज भी अपनी सीट तक नहीं बचा पाए। राजधानी भोपाल से चुने जाने वाले कद्दावर नेता और जनसंपर्क मंत्री रहे पीसी शर्मा से लेकर ऊर्जा मंत्री रहे राजगढ़ के खिलचीपुर से चुने जाने वाले प्रियव्रत सिंह और पीएचई बैतूल की मुलताई के सुखदेव पांसे तक को हार का सामना करना पड़ा। इनमें से अधिकतर अपने गढ़ में मजबूत स्थिति में थे और अपनी जीत के प्रति आश्वस्थ थे लेकिन वे भाजपा की लहर और विरोधी प्रत्याशी की तैयारी भांपने में चूके नतीजतन सीट गंवानी पड़ी।
भाजपा लहर को भांप नहीं पाए पीसी भोपाल के दक्षिण-पश्चिम विधानसभा से विधायक और कांग्रेस सरकार में जनसंपर्क और विधि मंत्री रहे पीसी शर्मा की गिनती जनता से लगातार संपर्क में रहने वाले नेता के रुप में होती थी।भाजपा ने जब भगवान दास सबनानी को यहां से उतारा तो उन पर बाहरी प्रत्याशी होने सहित जनता और कार्यकर्ताओं में पैठ नहीं होने के हमले किए गए। आत्मविश्वास से भरे पीसी भी अपने अंदाज में प्रचार कर रहे थे इधर सबनानी को भाजपा संगठन और स्थानीय कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक का भरपूर साथ मिला।
आखिर तक मुकाबला कांटे का लग रहा था राजनीति के विशेषज्ञ भी अनुमान नहीं लगा पाए कि पीसी पिछड़ सकते हैं। ऐसे में अतिआत्मविश्वास और पार्टी और उसके संगठन के बजाए केवल सबनानी को सामने समझने के चलते दक्षिण पश्चिम में हार हुई। पीएचई मंत्री रहे सुखदेव पांसे को जनता ने नकारा बैतूल की मुलताई विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे सुखदेव पांसे को जनता ने नकार दिया।
पांसे के द्वारा क्षेत्र में जनता से किए वायदे पूरे नहीं किए जिससे असंतोष बढ़ता चला गया। चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं से उनकी नजदीकी से भी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को निराश होना पड़ गया। चुनाव प्रचार के दौरान बाहरी लोगों के हाथों में प्रबंधन सौंपना उनकी हार का प्रमुख कारण बन गया। आम जनता से उनका लगातार संपर्क नहीं बना रहा जिसका लाभ भाजपा को मिला और चंद्रशेखर देशमुख ने जीत हासिल कर ली।