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MP Elections 2023: मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर फिर आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा के परंपरागत चेहरे, पार्टियों ने बड़े अंतर से हुई हार के बावजूद जताया भरोसा

MP Elections 2023 भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के अब तक घोषित नामों में 90 विधानसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की तस्वीर साफ हो गई है। इनमें 28 सीटों पर दोनों पार्टियों ने उन पर ही विश्वास जताया है जो पिछले विधानसभा चुनाव में भी मैदान में थे। इनमें श्योपुर जबलपुर पूर्व भैंसदेही हरदा खिलचीपुर कसरावद पेटलावाद और गंधवानी शामिल हैं।

By Jagran NewsEdited By: Shashank MishraUpdated: Tue, 17 Oct 2023 08:17 PM (IST)
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कुछ प्रत्याशियों की बड़े अंतर से हार के बाद भी पार्टियों ने मैदान में उतारा
शशिकांत तिवारी, भोपाल। मध्य प्रदेश में 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना में भले ही इस बार मुद्दे बदल गए हों, पर कुछ सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के परंपरागत चेहरे फिर आमने-सामने हैं। क्षेत्र में मजबूत पकड़, जातिगत समीकरण, सर्वे और अन्य पहलुओं के आधार पर कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस ने दूसरी या तीसरी बार उन्हें मैदान में उतारा है। यहां तक कि कुछ को बड़े अंतर से हारने के बाद भी पार्टियों ने उन पर ही भरोसा जताया है।

कई पुराने चेहरों पर पार्टियों ने जताया भरोसा

भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के अब तक घोषित नामों में 90 विधानसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की तस्वीर साफ हो गई है। इनमें 28 सीटों पर दोनों पार्टियों ने उन पर ही विश्वास जताया है, जो पिछले विधानसभा चुनाव में भी मैदान में थे। इन 28 में से आठ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां वर्ष 2013 में भी यही उम्मीदवार मैदान में उतरे थे। इनमें श्योपुर, जबलपुर पूर्व, भैंसदेही, हरदा, खिलचीपुर, कसरावद, पेटलावाद और गंधवानी शामिल हैं। यह तो 90 सीटों की तस्वीर है।

140 और सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की तस्वीर स्पष्ट होने के बाद लगभग 40 और सीटों पर परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों में ही आमना-सामना होने की उम्मीद है। बता दें कि कांग्रेस ने पहले कहा था कि लगातार हारने वाले प्रत्याशियों को चुनाव नहीं लड़ाया जाएगा, लेकिन बाद में पार्टी द्वारा कराए गए अलग-अलग सर्वेक्षणों में सामने आया कि उस क्षेत्र के लिए वही उम्मीदवार जीतने योग्य हैं तो पार्टी ने उन्हें मैदान में उतार दिया।

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कई सीटों पर उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर

इन परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों में कुछ तो ऐसे हैं, जिनके बीच कांटे की टक्कर रही है। उन्हें ही चुनाव लड़ाने की दूसरी वजह जातिगत समीकरण भी हैं। इसी तरह से भाजपा ने भी सर्वे और स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिले फीडबैक के आधार पर इस बार और पिछले चुनावों में उम्मीदवारों का चयन किया है।

पिछले चुनाव में कुछ सीटों पर प्रत्याशी की बड़े अंतर से हार के बाद भी पार्टी ने फिर उन नेताओं को मौका दिया है, जो लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं और विवादित नहीं हैं। हालांकि, दोनों पार्टियों ने 2013 और 2018 के चुनाव में आमने-सामने रहे कुछ प्रत्याशियों को जीत-हार के गणित के आधार पर बदल दिया है। अब देखना होगा दोनों पार्टियों की रणनीति आगामी चुनाव में कितनी सफल होती है।

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