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कभी महाराष्ट्र में वोट जिहाद की बहस की धुरी बना था मालेगांव, आज गुलजार है आम जिंदगी

मालेगांव ब्लास्ट तो सुना ही होगा जिसमें प्रज्ञा ठाकुर का नाम आया था। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हैं लेकिन मालेगांव में अब सामाजिक-आर्थिक जीवन चक्र में ध्रुवीकरण का न कोई असर दिखता है और न ही आपसी मनमुटाव। कपड़ा बुनकरों के इस शहर में चाहे राजनीति के पहिए विरोधाभासी दिशा में हों लेकिन हिंदू और मुसलमान यहां के कारोबार के दो पहिए हैं।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Sun, 17 Nov 2024 06:27 AM (IST)
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कभी महाराष्ट्र में वोट जिहाद की बहस की धुरी बना था मालेगांव (फोटो- सोशल मीडिया)
 संजय मिश्र, जागरण, मालेगांव। महाराष्ट्र की मालेगांव विधानसभा की एक सीट के वोटिंग पैटर्न से बदले धुले लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों को लेकर ध्रुवीकरण की राजनीति की व्याख्या राष्ट्रीय स्तर पर कई रूपों में की जाती है। विशेषकर भाजपा नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन के मालेगांव में उम्मीदवार न उतारने के फैसले ने इस चर्चा को ज्यादा गर्म कर दिया है।

हिंदू और मुसलमान यहां के कारोबार के दो पहिए

हालांकि, यहां के सामाजिक-आर्थिक जीवन चक्र में ध्रुवीकरण का न कोई असर दिखता है और न ही आपसी मनमुटाव। कपड़ा बुनकरों के इस शहर में चाहे राजनीति के पहिए विरोधाभासी दिशा में हों लेकिन हिंदू और मुसलमान यहां के कारोबार के दो पहिए हैं, जिसमें एक के बिना दूसरे की गाड़ी नहीं चल सकती।

चुनावी फिजा में ध्रुवीकरण की गर्माई इस सियासत के बीच मालेगांव की मुख्य सड़क कैंप रोड से लेकर बड़े कब्रिस्तान तक आधी रात 12 बजे के बाद तक खुले बाजार में शाम की तरह दिखती जिंदगी की चहल-पहल में डर-भय या सामाजिक मनमुटाव जैसी झलक का कहीं भी नामोनिशान नजर नहीं आता।

मालेगांव में 90 प्रतिशत मुस्लिम है और हिंदू सात प्रतिशत

कभी दंगे और विस्फोट की वजह से सुर्खियों में रहे मालेगांव की चुनावी राजनीति और आम जीवन में अंतर पर स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र भोसले कहते हैं कि यहां विभाजन-हिंदू मुसलमान का नहीं बल्कि राजनीति का है। मालेगांव की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी मुस्लिम है और हिंदू सात प्रतिशत हैं। लेकिन, आधी रात को भी आप देख रहे कि असुरक्षा-डर जैसी कोई बात नहीं है।

मालेगांव की एकतरफा वोटिंग से धुले लोकसभा सीट का नतीजा बदला

मालेगांव की एकतरफा वोटिंग से धुले लोकसभा सीट का नतीजा बदलने के संबंध में भोंसले कहते हैं कि सच्चाई यह भी है कि 2019 में भाजपा को सात हजार वोट मिले थे तो 2024 में साढ़े चार हजार रहे। दरअसल, लोकसभा चुनाव में तत्कालीन केंद्रीय राज्यमंत्री सुभाष भामरे धुले की छह में से पांच विधानसभा सीटों में आगे रहे लेकिन, मालेगांव में कांग्रेस उम्मीदवार शोभा बाचव को कुल पड़े 2.03 लाख वोट में करीब 1.98 लाख वोट मिले और वे सांसद बन गईं।

मालेगांव-धुले के इस वोटिंग पैटर्न के बाद ही भाजपा ने वोटिंग जिहाद का मुद्दा उठाते हुए बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे से जवाबी ध्रुवीकरण का दांव चलने की कोशिश शुरू की है। वोट जिहाद को लेकर मालेगांव के सुर्खियों में आने पर स्थानीय प्रोफेसर सलीम पिंजारी दावा करते हैं कि आजादी के बाद 2001 के एकमात्र दंगे और 2006 तथा 2008 के विस्फोट के अलावा मालेगांव में सामाजिक समरसता पर वैमनस्य की कभी कोई छाया नहीं रही है।

गठबंधन महायुति ने विधानसभा चुनाव में अपना कोई उम्मीदवार ही नहीं दिया

बुनकर कारोबारी नसीम अहमद कहते हैं कि मालेगांव के हिंदू-मुसलमानों का पूरा आर्थिक जीवन कपड़े के कारोबार पर निर्भर है। दोनों के हितों का जुड़ाव यह है कि सारे उत्पादक मुसलमान तो व्यापारी गुजराती-राजस्थानी हिंदू हैं और एक के बिना दूसरे की जिंदगी नहीं चल सकती। वैसे ध्रुवीकरण की बहस से दिलचस्प यह भी है कि मालेगांव में भाजपा तथा उसके गठबंधन महायुति ने विधानसभा चुनाव में अपना कोई उम्मीदवार ही नहीं दिया है।

आइएनडीआइए गठबंधन में भी यहां एकजुटता नहीं है, क्योंकि समाजवादी पार्टी की चर्चित स्थानीय उम्मीदवार शाने हिंद निहाल अहमद के मैदान में उतरने के बावजूद कांग्रेस ने मालेगांव में अपना प्रत्याशी उतारा है। शाने हिंद यहां के समाजवादी नेता रहे निहाल अहमद की बेटी हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मालेगांव आकर खुद उनके उम्मीदवारी की घोषणा की थी।

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ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम का अभी प्रभाव

वैसे मालेगांव की सियासत पर स्थानीय मुफ्ती वर्तमान विधायक मौलाना मुक्ति इस्माइल के सहारे असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम का अभी प्रभाव है। राकांपा के यहां के प्रमुख आसिफ शेख भी पार्टी छोड़ निर्दलीय मैदान में हैं। आम चर्चा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एआइएमआइएम उम्मीदवार इस्माइल को अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं।