Worli सीट से जीते आदित्य उद्धव ठाकरे, विरासत में मिली राजनीति को बढ़ाएंगे आगे
शिवसेना प्रमुख के बेटे आदित्य उद्धव ठाकरे ने वर्ली विधानसभा सीट से धमाकेदार जीत दर्ज कर भविष्य की नई राजनीति के संकेत दे दिए हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 24 Oct 2019 04:52 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आदित्य उद्धव ठाकरे वर्ली विधानसभा सीट से अपना चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने इस चुनाव में यहां से एनसीपी के एडवोकेट डॉक्टर सुरेश माणे को 67 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी है। इस चुनाव में तीसरे नंबर पर वंचित बहुजन अगाड़ी के गौतम अन्ना गायकवाड रहे। आदित्य को इस चुनाव में 89248 (69.14 फीसद) मत मिले जबकि माणे को 21821 (16.91 फीसद) और गायकवाड को महज 6572 (5.09 फीसद) वोट मिले। इस चुनाव की एक खास बात और भी रही। वो ये कि वर्ली की इस सीट पर 6305 मत नोटा को पड़े जो कुल मतों का 4.88 फीसद थे। आपको बता दें कि आदित्य उद्धव ठाकरे परिवार के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो विधानसभा चुनाव में उतरे और जीते भी हैं।
अब तक शिवसेना राज्य में किंगमेकर की ही भूमिका में रहती आई है, लेकिन अब आदित्य के सक्रिय राजनीति में आ जाने से पार्टी की भविष्य में होने वाली राजनीति के संकेत साफतौर पर दिखाई दे रहे हैं। आपको बता दें कि आदित्य को उनके पिता उद्धव से भी अधिक एग्रेसिव पॉलिटिशियन माना जाता है। पहले बाला साहेब ठाकरे और फिर अपने पिता से राजनीति का ककहरा सीखने वाले उद्धव ने महाराष्ट्र की सियासत में कदम रखते ही अपने बयानों से भाजपा को कुछ संकेत भी दे दिए हैं। वर्ली से जीत दर्ज करने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि हर बार भाजपा की ही नहीं चलने वाली है।
गौरतलब है कि आदित्य के चुनाव में उतरने के साथ ही यह धारणा बनने लगी थी कि अब शिवसेना केवल किंग मेकर की ही भूमिका में नहीं रहेगी बल्कि किंग बनेगी भी। मौजूदा चुनाव में भले ही शिवसेना भाजपा केे बराबर सीट लाने में पीछे लग रही है लेकिन पार्टी न तो भाजपा और न ही आदित्य की किसी भी बात को दरकिनार करन ने की स्थिति में नहीं होगी। आदित्य के विधानसभा में प्रवेश के साथ ही शिवसेना की धमक भी अधिक सुनाई देगी।
वर्ली सीट की बात करें तो यह सीट 2014 से ही शिवसेना के कब्जे में है। 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां से सुनील शिंदे ने जीत हासिल की थी। इसके अलावा 1990 से 2004 के दौराना भी इस सीट पर शिवसेना के दत्ताजी नलवाड़े का कब्जा था। यही वजह थी कि आदित्य के लिए इस सीट को चुना गया था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि इस सीट पर आदित्य की दावेदारी के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने भी इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था।