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Maharashtra: सूबे में जाति आधारित मुद्दे जोरों पर, युवा पीढ़ी को सामाजिक बंटवारे के नए खांचे में डाल रही राजनीति

महाराष्ट्र विधानसभा 2024 के चुनावी मैदान में जहां पहली बार राजनीतिक खेमेबंदी का महाप्रयोग सूबे की सियासत को नए रोचक दौर की ओर ले जा रहा है। सत्ता केंद्रित चुनावी राजनीति का बढ़ता प्रभुत्व इसका सबसे बड़ा कारण बन रहा है और लगभग सभी पार्टियां युवा पीढ़ी को बंटवारे के खांचे में डालने के ऐसे कदमों को सामाजिक सशक्तिकरण के चादर से ढंकने के प्रयासों का हिस्सा बन रही हैं।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Wed, 13 Nov 2024 05:50 AM (IST)
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सूबे में जाति आधारित मुद्दे जोरों पर
 संजय मिश्र, नासिक। महाराष्ट्र विधानसभा 2024 के चुनावी मैदान में जहां पहली बार राजनीतिक खेमेबंदी का महाप्रयोग सूबे की सियासत को नए रोचक दौर की ओर ले जा रहा है। वहीं यह चुनाव में महाराष्ट्र की युवा पीढ़ी को जातीय आधार पर सामाजिक बंटवारे के नए खांचे की ओर ले जाने का आधार तैयार करता हुआ भी दिख रहा है।

सत्ता केंद्रित चुनावी राजनीति का बढ़ता प्रभुत्व इसका सबसे बड़ा कारण बन रहा है और लगभग सभी पार्टियां युवा पीढ़ी को बंटवारे के खांचे में डालने के ऐसे कदमों को सामाजिक सशक्तिकरण के चादर से ढंकने के प्रयासों का हिस्सा बन रही हैं।

महाराष्ट्र जातीय राजनीति की राह पर

सरकारी स्तर पर गठित सामाजिक समूहों का महामंडल इसका सबसे सशक्त जरिया बन रहा है और जाति आधारित कोचिंग-पेशवेर प्रशिक्षण कार्यक्रमों को चुनाव में जिस तरह प्रमुखता से उभरा जा रहा उसमें महाराष्ट्र भविष्य में जातीय राजनीति की कसौटी पर उत्तरप्रदेश और बिहार को टक्कर देने लगे तो आश्चर्य नहीं होगा।

सामाजिक समूहों के महामंडल को सरकारी प्रोत्साहन देने की महायुति गठबंधन की सक्रियता उसके चुनावी अभियानों के दौरान नजर आ रही है और उत्तर महाराष्ट्र का इलाका भी इससे अछूता नहीं है। राजनीतिक दृष्टि से कई बार सूबे के अन्य इलाकों से अलग चुनावी मिजाज रखने वाले उत्तर महाराष्ट्र के सबसे बड़े शहर नासिक ही नहीं इसके आसपास के अ‌र्द्ध शहरी क्षेत्रों और तालुकों में दिखाई दे रहे हैं।

मराठा आरक्षण आंदोलन विवाद

युवाओं को जातीय समूह में पेशेवर पाठयक्रमों से लेकर प्रदेश सिविल सेवा परीक्षा के लिए कोचिंग देने के लिए संस्थानों के बैनर-बोर्ड प्रचार इसके गवाह हैं। मराठा आरक्षण आंदोलन विवाद की गरमाहट बढ़ने के बाद पिछले कुछ अर्से से सामाजिक महामंडलों के माध्यम से अन्य जातीय समूहों को साधने की राजनीति ने जोर पकड़ी है।

सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य में आदिवासी तथा दलित वर्ग के लिए अलग-अलग महामंडल बेशक दशकों से हैं मगर मराठा आरक्षण आंदोलन की आंच धीमी करने के लिए इस वर्ग के युवाओं को नौकरी, रोजगार पाठयक्रमों का संचालन करने के लिए शिंदे सरकार ने सारथी स्कीम शुरू की है। इससे ओबीसी वर्ग नाखुश न हो इसके मद्देनजर महाज्योति, मातंग समाज के लिए अन्ना भाऊ साठे महामंडल तो ब्राहृमण-मरवाड़ी वर्ग के युवाओं के लिए अमृत महामंडल बना है।

जाति आधारित इन महामंडलों के जरिए निजी शैक्षणिक व कोचिंग संस्थानों में इन वर्गों के युवाओं को उनके सामाजिक खांचे में रखते हुए प्रशिक्षण-ट्रेनिंग का खर्च राज्य सरकार दे रही है। इसके लिए प्रत्येक युवा पर 20 से लेकर 60 हजार रूपए राज्य सरकार अपने खजाने से दे रही है। विधानसभा चुनाव को मराठा आरक्षण की आंच से बचाने की इस पहल को जहां सत्तापक्ष अब सामाजिक संतुलन साधने के प्रभावी अस्त्र के रूप में देख रहा है। तो विपक्षी महाविकास अघाड़ी गठबंधन जाति जनगणना से लेकर तमाम वर्गों को साधने के लिए अलग-अलग तरीके के वादों के सहारे महामंडलों का कायाकल्प करने का परोक्ष संदेश देने में जुटा है।

जातीय आधार समूहों में बांटने का यह दांव चिंता की बात

नासिक स्थित वरिष्ठ मराठी राजनीतिक विशेलषक पत्रकार सुरेश भटेवरा कहते हैं कि महाराष्ट्र ने कभी सामाजिक ढांचे में इस तरह के खांचे को कभी नहीं देखा था। चुनावी राजनीति के अलावा इसके आगे-पीछे कोई मकसद नहीं है, यह इसी से समझा जा सकता है कि जैन समाज के लिए भी महामंडल बनाया गया है। नासिक से सटे ज्योर्ति¨लग पीठ त्रयंबेकश्वर में लोकमान्य तिलक के नाम से जुड़े एक निजी प्रशिक्षण संस्थान में पढ़ाने वाले शिक्षक केशव दोनर ने भी कहा कि जातीय आधार समूहों में बांटने का यह दांव चिंता की बात है।

साथ ही यह भी कहते हैं कि फिलहाल महाराष्ट्र के लोगों के प्रगतिशील चिंतन की जड़ इतनी मजबूत है कि सामाजिक सरोकारों-जुड़ावों पर असर नहीं हुआ है और इस चुनाव में महाराष्ट्र की जनता को यह तय करना है कि सामाजिक खांचे में बांटने की राजनीति के लिए लकीर कहां खींची जाए।

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