Maharashtra assembly elections 2019: पश्चिम महाराष्ट्र को लेकर बढ़ी शरद पवार की चिंता, जानें क्या है कारण
Maharashtra assembly elections 2019 महाराष्ट्र के सबसे ऊंचे कद के नेता माने जाने वाले शरद पवार की सबसे बड़ी चिंता अपने पश्चिम महाराष्ट्र को भाजपा-शिवसेना गठबंधन से बचाना है।
By Babita kashyapEdited By: Updated: Mon, 14 Oct 2019 09:46 AM (IST)
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। मराठा क्षत्रप शरद पवार की सबसे बड़ी चिंता इस विधानसभा चुनाव में अपने पश्चिम महाराष्ट्र के किले को बचाना है, जबकि भाजपा-शिवसेना गठबंधन इस किले में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर चुका है। इसमें कोई शक नहीं कि शरद पवार आज भी महाराष्ट्र के सबसे ऊंचे कद के नेता माने जाते हैं। उनका यह राजनीतिक कद उनकी नेतृत्व क्षमता के कारण ही बना है।
इसी नेतृत्व क्षमता के बल पर 1999 में कांग्रेस से अलग होने के बाद वह महाराष्ट्र में न केवल उसके समानांतर संगठन खड़ा करने में कामयाब रहे, बल्कि तब के शिवसेना-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस से लड़कर इतनी सीटें भी लाने में कामयाब रहे कि कांग्रेस उनके बगैर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं आ सकी। तब उसी पश्चिम महाराष्ट्र ने उनका भरपूर साथ दिया था, जिसे उन्होंने सहकारी और निजी चीनी मिलों, टेक्सटाइल मिलों, मिल्क फेडरेशनों, शैक्षणिक संस्थानों के जरिए एक-दूसरे से जोड़कर रखने का काम किया था।
उनके एक आह्वान पर पश्चिम महाराष्ट्र के ज्यादातर ऐसे दिग्गज नेता उनकी नवगठित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में आ गए थे, जिनकी दो-दो तीन-तीन पीढ़ियां अपने जिले और क्षेत्र में राज करती आई थीं। इनमें प्रमुख था सोलापुर का मोहिते-पाटिल परिवार, सतारा का छत्रपति शिवाजी महाराज का वंशज परिवार, कोल्हापुर का महाडिक परिवार इत्यादि। हालांकि, सतारा के प्रतापराव भोसले, सोलापुर के सुशील कुमार शिंदे, अहमदनगर के राधाकृष्ण विखे पाटिल और कराड के पृथ्वीराज चह्वाण जैसे नेता तब भी कांग्रेस में ही रहे। हालांकि, 15 साल तक लगातार राज्य में कांग्रेस-राकांपा की सरकार रहने के कारण सब पहले की कांग्रेस की तरह ही साथ मिलकर काम करते रहे। कांग्रेस के नेता भी पवार को राज्य में अपना ही नेता मानते रहे। कभी कोई फर्क महसूस नहीं हुआ।
अपनी इसी ताकत के बल पर 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किसी हद तक पश्चिम महाराष्ट्र मोदी लहर से अप्रभावित ही रहा। 2014 में राकांपा को मिली सभी चार लोकसभा सीटें पश्चिम महाराष्ट्र से ही मिली थीं। महाराष्ट्र के पांच भागों में पश्चिम महाराष्ट्र ऐसा अकेला भाग था, जहां 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा-शिवसेना दो-तिहाई विधानसभा क्षेत्रों से आगे नहीं बढ़ पाईं, जबकि अन्य चार भागों कोकण, विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में भाजपा-शिवसेना गठबंधन 80 फीसद से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में अपनी बढ़त दिखा चुका है। इसी बढ़त की बदौलत छह माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 226 पर भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बढ़त मिली थी। हालांकि, अब पश्चिम महाराष्ट्र में भी चित्र उल्टा नजर आने लगा है। सिर्फ छह महीनों के अंदर पश्चिम महाराष्ट्र की कृष्णा नदी में बहुत पानी बह चुका है। जिसकी बाढ़ में मराठा क्षत्रप शरद पवार के कई करीबी सूबेदार बहकर भाजपा खेमे में पहुंच चुके हैं।
अब तक सतारा का किला थामे रखने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के 13वें वंशज उदयनराजे भोसले और उनके सगे भतीजे शिवेंद्र राजे भोसले अब भाजपा में आ चुके हैं। 2014 में राकांपा के ही सांसद रहे सोलापुर के विजयसिंह मोहिते पाटिल का परिवार भी पिछले लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा में आ चुका है। कोल्हापुर के धनंजय महाडिक भी अब भाजपा में हैं। कभी राकांपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे मधुकर राव पिचड़ भी पवार का साथ छोड़ चुके हैं। दूसरी ओर पवार खेमे के विरोधी माने जानेवाले अहमदनगर के विखे पाटिल जैसे पश्चिम महाराष्ट्र के कई कांग्रेसी नेता भी अब भाजपा या शिवसेना का दामन थाम चुके हैं।
एक जानकारी के मुताबिक, पिछले लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस-राकांपा के करीब दो दर्जन विधायक या पूर्व विधायक पाला बदल कर भाजपा-शिवसेना में आ चुके हैं। इन दिनों बारामती में राकांपा नेता अजीत पवार के प्रचार की कमान संभाल रहीं उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार कहती हैं कि यह तो राजनीति का खेल है। आज लोग मौका देखकर उधर गए हैं, तो कल इधर भी आ सकते हैं। हालांकि, सच्चाई यही है कि कभी कांग्रेस-राकांपा की ताकत रहे इन सूबेदारों के पाला बदलने से कांग्रेस और राकांपा का सबसे मजबूत किला पश्चिम महाराष्ट्र आज कमजोर हो गया है।
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