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महाराष्‍ट्र में जिसके साथ विदर्भ, उसकी नैया पार; यहां भाजपा बनाम कांग्रेस में क्‍या है पार्टियों की रणनीति?

Maharashtra Assembly Elections 2024 महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव 2024 में विदर्भ क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है। यह क्षेत्र जिसकी ओर झुकता है वही सत्ता के करीब पहुंचता है। विदर्भ में नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं के विकास कार्यों के बावजूद क्‍या भाजपा की सीटें घट रही हैं? क्‍या कांग्रेस अपने गढ़ रहे विदर्भ पर फिर कब्‍जा कर पाएगी यहां पढ़िए...

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Thu, 24 Oct 2024 02:44 PM (IST)
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Maharashtra Vidhan sabha election 2024: इस चुनाव में किसके पक्ष में फैसला करेगा विदर्भ। जागरण ग्राफिक्‍स
ओमप्रकाश तिवारी, नागपुर। देश के कम से कम 10 राज्यों से ज्यादा विधानसभा सीटें रखने वाला महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र विधानसभा चुनाव में जिस दल का साथ देता है, वहीं सत्ता के करीब पहुंच जाता है। 10 लोकसभा एवं 62 विधानसभा सीटों वाले इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला अभी भी दो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच ही देखने को मिलता है। इस बार भी ये दोनों दल विदर्भ पर आधिपत्य के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकते दिखाई दे रहे हैं।

विदर्भ शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन देश में राम जन्मभूमि आंदोलन के उभार के साथ ही इस क्षेत्र में भाजपा ने भी अपनी जड़ें मजबूत करनी शुरू कर दीं। भाजपा की पितृ संस्था कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय विदर्भ के केंद्र नागपुर में है ही, पिछले तीन दशक में इसी नागपुर से नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं का भी उदय हुआ है।

लोग बोले-विकास हुआ तो फिर क्यों घट रहीं सीटें?

गडकरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं तो देवेंद्र फडणवीस 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं। इन दोनों नेताओं के कारण कभी बहुत पिछड़ा कहे जाने वाले विदर्भ में विकास के कई काम हुए हैं। इसे क्षेत्र के लोग भी स्वीकार करते हैं।

यही कारण है कि नितिन गडकरी पिछले लोकसभा चुनाव में तीसरी बार नागपुर से चुनकर संसद में पहुंचे हैं, लेकिन उसी लोकसभा चुनाव में विदर्भ क्षेत्र में भाजपा की सीटें भी घटकर पांच से दो हो चुकी हैं। यानी विदर्भ में भाजपा की सीट संख्या घटकर 2009 के बराबर पहुंच गई है।

जिसके साथ विदर्भ, उसके पास सत्ता!

विदर्भ के बारे में कहा जाता है कि यह जिसका साथ देता है, वही महाराष्ट्र की सत्ता के नजदीक पहुंच पाता है। इसे पिछले 10 साल के इतिहास से भी समझा जा सकता है। 2014 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने विदर्भ की सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थीं। छह माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा और शिवसेना अलग-अलग चुनाव लड़े थे, फिर भी भाजपा को क्षेत्र की 62 में से 44 सीटें हासिल हुई थीं।

तब उसे राज्य में 122 सीटें मिली थीं और पहली बार राज्य में उसका मुख्यमंत्री बना था। जबकि 2019 में शिवसेना के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने के बावजूद भाजपा 29 सीटों पर ही सिमट गई। इसका परिणाम यह हुआ उसकी कुल सीटें भी 105 तक ही पहुंच सकीं और शिवसेना के धोखा देकर कांग्रेस-राकांपा के साथ चले जाने के कारण वह सत्ता से भी दूर रह गई।

अब 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पूरे विदर्भ में उसकी दो ही सीटें आई हैं। एक नागपुर से दिग्गज नेता नितिन गडकरी की, तो दूसरी उसकी हमेशा जीतने वाली सीट अकोला। जहां संभवतः प्रकाश आंबेडकर के खड़े होने का लाभ उसे मिला था।

क्या इस चुनाव में परिणाम लोकसभा जैसे आएंगे?

भाजपा के लिए ये संकेत अच्छे नहीं कहे जा सकते, लेकिन भाजपा नेता नहीं मानते कि लोकसभा जैसे चुनाव परिणाम विधानसभा में भी आएंगे। भाजपा प्रवक्ता अजय पाठक कहते हैं कि लोकसभा और विधानसभा के मुद्दे बिल्कुल अलग-अलग होते हैं। लोकसभा चुनाव में संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का भ्रम फैलाकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने लाभ ले लिया। अब वैसा नहीं होनेवाला।

विदर्भ की ही कामटी सीट से खुद चुनाव लड़ रहे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि नागपुर जैसे बड़े नगर तो भाजपा के विकास को देख रहे हैं। कभी नक्सलवाद के लिए कुख्यात रहे गढ़चिरौली जिले में भी अब उद्योग पहुंच रहे हैं। इसके कारण वहां के युवाओं को रोजगार मिलने की सुनिश्चितता बढ़ गई है।

विदर्भ के ही दूसरे विभाग अमरावती को टेक्सटाइल उद्योग का केंद्र बनाने का प्रयास भी भाजपा सरकार ही कर रही है, जिसके कारण इस विदर्भ और मराठवाड़ा के कपास उत्पादक किसानों के उत्पादों की खपत अब आसान हो जाएगी।

इन विकास कार्यों के अलावा पिछड़े विदर्भ में कुछ ही महीनों पहले शुरू की गई मुख्यमंत्री लाडली बहिन योजना का भी अच्छा असर दिखाई दे रहा है। सत्ता पक्ष को उम्मीद है कि महाराष्ट्र की लाभार्थी बहनें भी उसकी नैया पार लगाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

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कांग्रेस के भी हौसले बुलंद

दूसरी ओर कांग्रेस के हौसले भी बुलंद हैं। उसे राज्य में लोकसभा चुनावों के परिणाम दोहराए जाने का पूरा भरोसा है। यही कारण है कि वह अपने पुराने गढ़ विदर्भ की ज्यादातर सीटें खुद लड़ना चाहती हैं।

वास्तव में भाजपा की ही भांति उसके भी कई बड़े नेता विदर्भ क्षेत्र से ही आते हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले विदर्भ की साकोली सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, तो नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार ब्रह्मपुरी से।

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कांग्रेस मानती है कि उसे अपने इन बड़े नेताओं के प्रभाव का भी अच्छा लाभ मिलेगा। जातीय समीकरण के लिहाज से भी विदर्भ महत्त्वपूर्ण है। दलितों एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की संख्या यहां ज्यादा है। ओबीसी के अंतर्गत आने वाले मराठा कुनबी भी यहां बहुतायत में हैं। लोकसभा चुनाव में झटका खाने के बाद से भाजपा ओबीसी समाज को साधने की पूरी कोशिश कर रही है।

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