महाराष्ट्र में जिसके साथ विदर्भ, उसकी नैया पार; यहां भाजपा बनाम कांग्रेस में क्या है पार्टियों की रणनीति?
Maharashtra Assembly Elections 2024 महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव 2024 में विदर्भ क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है। यह क्षेत्र जिसकी ओर झुकता है वही सत्ता के करीब पहुंचता है। विदर्भ में नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं के विकास कार्यों के बावजूद क्या भाजपा की सीटें घट रही हैं? क्या कांग्रेस अपने गढ़ रहे विदर्भ पर फिर कब्जा कर पाएगी यहां पढ़िए...
ओमप्रकाश तिवारी, नागपुर। देश के कम से कम 10 राज्यों से ज्यादा विधानसभा सीटें रखने वाला महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र विधानसभा चुनाव में जिस दल का साथ देता है, वहीं सत्ता के करीब पहुंच जाता है। 10 लोकसभा एवं 62 विधानसभा सीटों वाले इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला अभी भी दो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच ही देखने को मिलता है। इस बार भी ये दोनों दल विदर्भ पर आधिपत्य के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकते दिखाई दे रहे हैं।
विदर्भ शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन देश में राम जन्मभूमि आंदोलन के उभार के साथ ही इस क्षेत्र में भाजपा ने भी अपनी जड़ें मजबूत करनी शुरू कर दीं। भाजपा की पितृ संस्था कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय विदर्भ के केंद्र नागपुर में है ही, पिछले तीन दशक में इसी नागपुर से नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं का भी उदय हुआ है।
लोग बोले-विकास हुआ तो फिर क्यों घट रहीं सीटें?
गडकरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं तो देवेंद्र फडणवीस 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं। इन दोनों नेताओं के कारण कभी बहुत पिछड़ा कहे जाने वाले विदर्भ में विकास के कई काम हुए हैं। इसे क्षेत्र के लोग भी स्वीकार करते हैं।यही कारण है कि नितिन गडकरी पिछले लोकसभा चुनाव में तीसरी बार नागपुर से चुनकर संसद में पहुंचे हैं, लेकिन उसी लोकसभा चुनाव में विदर्भ क्षेत्र में भाजपा की सीटें भी घटकर पांच से दो हो चुकी हैं। यानी विदर्भ में भाजपा की सीट संख्या घटकर 2009 के बराबर पहुंच गई है।
जिसके साथ विदर्भ, उसके पास सत्ता!
विदर्भ के बारे में कहा जाता है कि यह जिसका साथ देता है, वही महाराष्ट्र की सत्ता के नजदीक पहुंच पाता है। इसे पिछले 10 साल के इतिहास से भी समझा जा सकता है। 2014 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने विदर्भ की सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थीं। छह माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा और शिवसेना अलग-अलग चुनाव लड़े थे, फिर भी भाजपा को क्षेत्र की 62 में से 44 सीटें हासिल हुई थीं।
तब उसे राज्य में 122 सीटें मिली थीं और पहली बार राज्य में उसका मुख्यमंत्री बना था। जबकि 2019 में शिवसेना के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने के बावजूद भाजपा 29 सीटों पर ही सिमट गई। इसका परिणाम यह हुआ उसकी कुल सीटें भी 105 तक ही पहुंच सकीं और शिवसेना के धोखा देकर कांग्रेस-राकांपा के साथ चले जाने के कारण वह सत्ता से भी दूर रह गई।अब 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पूरे विदर्भ में उसकी दो ही सीटें आई हैं। एक नागपुर से दिग्गज नेता नितिन गडकरी की, तो दूसरी उसकी हमेशा जीतने वाली सीट अकोला। जहां संभवतः प्रकाश आंबेडकर के खड़े होने का लाभ उसे मिला था।