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Rajasthan Election: राजस्थान की राजनीति में अब भी पूर्व राजघरानों का प्रभाव, हवा के साथ बदलते रहे हैं अपनी आस्था

राजस्थान की राजनीति का एक बड़ा सच यह है कि पूर्व राजपरिवारों की आस्था समय के साथ पार्टियों के प्रति बदलती भी रही है। आजादी के बाद प्रदेश के अधिकांश पूर्व राजपरिवारों ने स्वतंत्र पार्टी को समर्थन दिया और फिर भाजपा व कांग्रेस के साथ चलते रहे। पूर्व राजपरिवारों की समय के साथ राजनीतिक पार्टियों के प्रति आस्था भी बदलती रही है।

By Jagran NewsEdited By: Amit SinghUpdated: Fri, 17 Nov 2023 03:49 PM (IST)
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पूर्व राजपरिवारों की समय के साथ राजनीतिक पार्टियों के प्रति आस्था भी बदलती रही है

नरेंद्र शर्मा, जयपुर। देश के अन्य राज्यों की तरह आजादी के बाद राजस्थान के पूर्व राजपरिवारों की सत्ता लोकतांत्रिक सरकारों के हाथ में आ गई। लेकिन अब भी एक दर्जन ऐसे पूर्व राजपरिवार हैं जो प्रत्यक्ष रूप से राजस्थान की राजनीति में भूमिका निभा रहे हैं। सत्ता में इनकी पकड़ बनी हुई है।

कुछ क्षेत्र तो अब भी ऐसे हैं जहां पूर्व राजपरिवारों की मर्जी से पार्टियां टिकट तय करती है। मतदाता भी इनके इशारे पर वोट करते हैं। प्रदेश की राजनीति का एक बड़ा सच यह है कि पूर्व राजपरिवारों की आस्था समय के साथ पार्टियों के प्रति बदलती भी रही है। आजादी के बाद प्रदेश के अधिकांश पूर्व राजपरिवारों ने स्वतंत्र पार्टी को समर्थन दिया और फिर भाजपा व कांग्रेस के साथ चलते रहे।

चुनाव में अजमा रहे किस्मत

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे धौलपुर की महारानी हैं। उनका मायका ग्वालियर देश के प्रमुख पूर्व राजघरानों में माना जाता है। जयपुर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य दीया कुमारी वर्तमान में राजसमंद से सांसद होने के साथ ही झोटवाड़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। महाराणा प्रताप के वंशज उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह नाथद्वारा से चुनाव लड़ रहे हैं।

भरतपुर के पूर्व महाराजा विश्वेंद्र सिंह डीग-कुम्हेर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। बीकानेर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य सिद्धी कुमारी बीकानेर पूर्व से चुनाव लड़ रही हैं।कोटा के पूर्व राजपरिवार की सदस्य कल्पना देवी,भींडर सीट से पूर्व ठिकानेदार रणधीर सिंह भिंडर,कुंभलगढ़ से पूर्व ठिकानेदार सुरेंद्र सिंह एवं खींवसर पूर्व राजपरिवार के गजेंद्र सिंह चुनाव मैदान में है।

समय के साथ बदली आस्था

पूर्व राजपरिवारों की समय के साथ राजनीतिक पार्टियों के प्रति आस्था भी बदलती रही है। जयपुर के पूर्व राजमाता स्व.गायत्री देवी ने राजस्थान में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की वे जयपुर से सांसद रही। फिर उनके पुत्र स्व.भवानी सिंह कांग्रेस में शामिल होकर जयपुर से लोकसभा का चुनाव लड़कर हार गए। अब स्व.भवानी सिंह की पुत्री दीयाकुमारी भाजपा में है।

अलवर राजपरिवार की पूर्व महारानी स्व.महेंद्र कुमारी भाजपा से सांसद रही, लेकिन उनके पुत्र जितेंद्र सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राहुल गांधी के खास हैं। भरतपुर पूर्व राजपरिवार के विश्वेंद्र सिंह पहले भाजपा में रहे और फिर कांग्रेस से विधायक बन कर अशोक गहलोत सरकार में मंत्री हैं। विश्वेंद्र सिंह की पत्नी दिव्या सिंह भाजपा से सांसद रही हैं। विश्वेंद्र सिंह के चाचा स्व.मानसिंह निर्दलीय विधायक रहे और उनकी चचेरी बहन कृष्णेंद्र कौर भाजपा से विधायक व वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रही हैं।

कोटा के पूर्व राजपरिवार के सदस्य इज्येराज सिंह कांग्रेस से सांसद रहे और अब उनकी पत्नी कल्पना देवी भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। जोधपुर पूर्व राजपरिवार की सदस्य चंद्रेश कुमारी कांग्रेस से सांसद रही हैं।डूंगरपुर पूर्व राजपरिवार के सदस्य हर्षवद्र्घन भाजपा से राज्यसभा सांसद रहे हैं।

इससे पहले डूंगरपुर,बांसवाड़ा और सीकर के पूर्व राजपरिवारों ने समय-समय पर पार्टियों के प्रति अपनी आस्था बदली है। जोधपुर के पूर्व महाराजा गजसिंह कभी सक्रिय राजनीति में नहीं रहे।लेकिन जोधपुर में लोकसभा व विधानसभा चुनाव में उनकी निर्णायक भूमिका रहती है।पार्टियां टिकट तय करते समय उनकी सलाह को महत्व देती हैं। वहीं लोग भी उनके प्रति आस्था रखते हैं।