Rajasthan assembly Election 2023 सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लाए हैं राजस्थान के उस मुख्यमंत्री का किस्सा जो सिर्फ 13 महीने ही कुर्सी पर रहे थे। संजय गांधी ने सीएम मनोनीत किया तो महादेवी वर्मा की कविता पर टिप्पणी करने पर इंदिरा गांधी ने उनसे इस्तीफा मांग लिया। पढ़िए राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े राजनीतिक किस्से...
By Jagran NewsEdited By: Deepti MishraUpdated: Thu, 09 Nov 2023 01:41 PM (IST)
ऑनलाइन डेस्क, जयपुर। सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लाए हैं राजस्थान के उस मुख्यमंत्री का किस्सा, जो सिर्फ 13 महीने ही कुर्सी पर रहे थे। 25 साल की उम्र में वे नेहरू से मिलने गए और वापसी के समय उनके पास लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट था। संजय गांधी ने सीएम मनोनीत किया तो महादेवी वर्मा की कविता पर टिप्पणी करने पर इंदिरा गांधी ने उनसे इस्तीफा मांग लिया।
पढ़िए, दलितों के मुद्दे उठाने वाले, शराब पर पूरी पाबंदी लगाने और सीतापुल का मिथक तोड़ने की कोशिश करने वाले राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े राजनीतिक किस्से...
कैसे बने मुख्यमंत्री?
5 जून, 1980 को दिल्ली स्थित राजस्थान हाउस में विधायक दल का नेता चुनने के लिए बैठक चल रही थी। कुछ विधायकों ने रामकिशोर व्यास का नाम फुसफुसाया, तभी पीछे से एक आवाज आई, 'मुख्यमंत्री होंगे जगन्नाथ पहाड़िया।'यह आवाज थी देश के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू के नाती और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की। सभा खत्म और शपथ की तैयारी शुरू। 6 जून, 1980 को जगन्नाथ पहाड़िया ने शपथ ली और सूबे के पहले दलित सीएम बन गए।
शराबबंदी करने वाले पहले सीएम
जगन्नाथ पहाड़िया का कार्यकाल भले ही 13 महीने का रहा, लेकिन उन्होंने उस अवधि में ही राज्य में पूरी तरह शराबबंदी लागू कर दी थी।पहाड़िया ने एक इंटरव्यू में बताया था, ''केंद्र सरकार ने वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार शराबबंदी के कारण होने वाले घाटे की पूर्ति नहीं की जाएगी। इसके बावजूद मैंने शराबबंदी को नहीं हटाया। क्योंकि मैं जानता था कि शराबखोरी से गरीब आदमी ही मरता है। दिन भर काम करता है और रात को शराब पीकर औरत को पीटता है।''
हालांकि, जगन्नाथ पहाड़िया के पद से हटने के बाद आए नए मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने शराबबंदी को समाप्त कर दिया था।
राजनीति से पहले
जगन्नाथ पहाड़िया का जन्म 15 जनवरी, 1932 को जाट रियासत भरतपुर के एक छोटे से गांव भुसावर में हुआ। पहाड़िया ने एलएलबी और फिर एमए की पढ़ाई राजस्थान विश्वविद्यालय से की। छात्र जीवन से पहाड़िया राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित गतिविधियों में सक्रिय रहते थे।
नेहरू से मिलने गए और चुनाव टिकट लेकर लौटे
दरअसल, कांग्रेस के सोशलिस्ट धड़े के नेता मास्टर आदित्येंद्र की ससुराल भुसावर में थी। 1957 के लोकसभा चुनाव से पहले मास्टर आदित्येंद्र ने कहा था कि हमारे साथ दिल्ली चलो, तुमको पंडित जी (पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू) से मिलवाते हैं। पहाड़िया, मास्टर जी के साथ दिल्ली आ गए।25 साल के पहाड़िया को देखकर नेहरू ने पूछा, देश कैसा चल रहा है? जवाब में पहाड़िया ने कहा, यूं तो बस अच्छा है, लेकिन देश में दलितों को प्रतिनिधित्व ठीक से नहीं मिल रहा है।
इस पर नेहरू ने कहा कि तुम चुनाव लड़कर दलितों की आवाज क्यों नहीं बनते हो? जवाब में युवा नेता ने कहा कि आप टिकट दीजिए, मैं चुनाव लडूंगा। नेहरू राजी हो गए और कुछ दिनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव का टिकट थमा दिया।
मैं सांसद हूं, सुनकर टीटी बोला- मैं भी नेहरू हूं
जगन्नाथ पहाड़िया की जिंदगी से जुड़ा एक बेहद रोचक किस्सा खासा चर्चित है। दरअसल, जब पहाड़िया सांसद निर्वाचित हुए तब उनकी उम्र 25 साल दो महीने थी। वो सवाई माधोपुर सीट से लोकसभा का चुनाव जीतकर सबसे युवा सांसद बने थे।
चुनाव जीतने के बाद वो दिल्ली के लिए रवाना हुए। ट्रेन में टीटी ने टिकट मांगा तो पहाड़िया ने बताया कि वह सांसद हैं। इस पर टीटी बोला- 'मैं भी जवाहर लाल नेहरू हूं। चलिए सीट से उठिए।'पहाड़िया खड़े हुए और सीट के नीचे से बक्सा खींचा फिर उसमें से सर्टिफिकेट निकाल टीटी को थमा दिया, जिसे देखते ही टीटी के चेहरे के रंग उड़ गए। बता दें कि ट्रेनों में सांसद और विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री का टिकट नहीं लगता है।
कविता पर टिप्पणी का भुगतान इस्तीफा देकर किया
पहाड़िया को संजय गांधी का करीबी माना जाता था। लेकिन दुर्भाग्य ये पहाड़िया के सीएम बनने के कुछ हफ्ते बाद ही संजय गांधी का विमान दुर्घटना में निधन हो गया। जब पहाड़िया सीएम थे, उन्हीं दिनों जयपुर में लेखकों का एक सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें मुख्यमंत्री को भी बुलाया गया। कार्यक्रम में छायावाद की कविताओं के लिए मशहूर कवयित्री महादेवी वर्मा भी आई थीं।
सीएम पहाड़िया ने अपने संबोधन में महादेवी वर्मा की कविताओं के बारे कहा था, ''महादेवी की कविताएं आम लोगों के सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं। उनकी कविताएं मुझे भी कभी समझ नहीं आईं कि आखिर वे कहना क्या चाहती हैं। साहित्य ऐसा होना चाहिए कि आम आदमी को समझ आए।''इस बात पर उस वक्त 73 साल की महादेवी वर्मा को भयंकर गुस्सा आया। उन्होंने इसे अपना अपमान बताया और इसकी शिकायत इंदिरा गांधी से कर दी। महादेवी वर्मा इलाहाबाद से थीं और इंदिरा गांधी ने उन्हें बुआ बुलाया करती थीं। बुआ की शिकायत पर भतीजी इंदिरा ने सीएम जगन्नाथ पहाड़िया से इस्तीफा मांग लिया।
सांसद-विधायक, मंत्री-मुख्यमंत्री और राज्यपाल रहे पहाड़िया
जगन्नाथ पहाड़िया 6 जून 1980 से 14 जुलाई 1981 तक यानी महज 13 महीने ही सूबे के मुखिया रह पाए थे। वह साल 1957, 1967, 1971 और 1980 में लोकसभा तो साल 1980, 1985, 1999 और 2003 में विधानसभा चुनाव जीते।पहाड़िया इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे थे। साल 1989 से 1990 तक एक साल के लिए बिहार और 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल भी रहे थे।
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(सोर्स: जागरण नेटवर्क की खबरें, विधानसभा की वेबसाइट, वरिष्ठ पत्रकार विजय भंडारी की किताब 'राजस्थान की राजनीति सामंतवाद से जातिवाद के भंवर में' से साभार)