Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Rajasthan election 2023 : राजस्‍थान का वो नेता जिसका महाराणा प्रताप से था नाता, एनकाउंटर से मिली CM की कुर्सी 15 दिन बाद छोड़नी पड़ी

Rajasthan Assembly election 2023 सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लाए हैं राजस्थान के उस मुख्‍यमंत्री की कहानी जिसका सीधा संबंध महाराणा प्रताप से था। पढ़िए महाराणा प्रताप के पिता की जान बचाने वाले परिवार का बेटा और राजस्थान में सबसे कम दिन महज 15 दिन के मुख्यमंत्री रहने वाले हीरालाल देवपुरा की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े किस्‍से...

By Deepti Mishra Edited By: Deepti Mishra Updated: Wed, 22 Nov 2023 02:00 PM (IST)
Hero Image
Rajasthan Assembly election 2023: राजस्थान में सबसे कम दिन महज 15 दिन के मुख्यमंत्री रहने वाले हीरालाल देवपुरा

 डिजिटल डेस्क, नई दिल्‍ली। सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज हम लाए हैं राजस्थान के उस मुख्‍यमंत्री की कहानी, जिसका सीधा संबंध महाराणा प्रताप से था। राजस्थान में एक विधायक का पुलिस एनकाउंटर होने पर सीएम की कुर्सी मिली, लेकिन महज 15 दिन ही सत्ता में रहे। सीधे-सरल स्वभाव वाले देवपुरा अपनी ईमानदारी और कांग्रेस के प्रति निष्ठा के लिए जाने जाते थे।

पढ़िए, महाराणा प्रताप के पिता की जान बचाने वाले परिवार का बेटा और राजस्थान में सबसे कम दिन महज 15 दिन के मुख्यमंत्री रहने वाले हीरालाल देवपुरा की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े किस्‍से...

एक एनकाउंटर ने बना दिया सीएम

साल 1985 का फरवरी महीना। राजस्थान में विधानसभा चुनाव थे। सभी राजनेता प्रचार में जुटे थे। उस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्‍यमंत्री थे शिवचरण माथुर। माथुर के मुख्यमंत्री कार्यकाल को खत्म होने में सिर्फ 15 दिन ही बचे थे कि एक घटना घटती है, जिसने उस वक्त लोगों के जज्बात और कांग्रेस के हालत बदल दिए थे।

दरअसल, शिवचरण माथुर डींग में रैली करने पहुंचे थे। इसी दौरान उनके हेलीकॉप्टर पर राजपरिवार से जुड़े व सात बार निर्दलीय विधायक रहे राजा मानसिंह ने हमला कर दिया।

अगले दिन यानी 21 फरवरी, 1985 को राजस्थान में पुलिस ने डीग विधानसभा सीट से प्रत्याशी राजा मानसिंह की गोली मारकर हत्‍या कर दी। राजा मानसिंह की हत्‍या का जाटों ने जोरदार विरोध किया, जिससे कांग्रेस हाईकमान को हार का डर सताने लगा।

विधानसभा चुनाव में दो हफ्ते भी नहीं बचे थे। कांग्रेस पार्टी जाटों की नाराजगी के चलते चुनाव हारना नहीं चाहती थी। इसलिए 24 घंटे के भीतर ही शिवचरण माथुर से इस्‍तीफा ले लिया गया। फिर माथुर सरकार में वरिष्‍ठ मंत्री और विधायकी के लिए अपनी सीट कुंभलगढ़ में प्रचार कर रहे देवपुरा को सूचना भेजी गई कि जयपुर आ जाइए, शपथ लेनी है।

हीरालाल देवपुरा जयपुर पहुंचे और 23 फरवरी 1985 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। हीरालाल देवपुरा जानते थे कि दो हफ्ते बाद चुनाव हैं, लेकिन उन्‍हें उम्मीद थी कि अगर पार्टी चुनाव जीत गई तो उन्‍हें दोबारा सीएम बनाया जाएगा।

दिल्ली से आया फोन- 'आप इस्‍तीफा दे दीजिए'

मार्च, 1985 का पहला हफ्ता था। राजस्थान में कांग्रेस ने फिर से विधानसभा चुनाव जीत लिया था और वो भी बहुमत से। चुनाव से महज 15 दिन पहले ही सूबे का मुखिया बदला गया था। ऐसे में नए मुख्यमंत्री हीरालाल देवपुरा को फिर से अपनी ताजपोशी होने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन तभी दिल्‍ली से एक फोन आया- 'आप इस्‍तीफा दे दीजिए, जोशी जी को टेकओवर करना है।'

दिल्ली से आए फोन पर यह सुनना हीरालाल देवपुरा के लिए थोड़ा अप्रत्याशित था भी और नहीं भी। था इसलिए- हरिदेव जोशी पहले मुख्यमंत्री थे और उनकी सरकार गिरने के बाद जब कांग्रेस वापस सत्ता में लौटी तो उन्‍हें सीएम नहीं बनाया गया था। इसके अलावा, राजीव गांधी के करीबी कई बड़े नेता जोशी के खिलाफ लॉबिंग भी कर रहे थे।

इसलिए नहीं था... हरिदेव जोशी इस सबके बावजूद राजीव गांधी की गुडविल में थे। सबसे वरिष्ठ थे, इसलिए विधायकों का भी उन्‍हें भरपूर समर्थन मिला हुआ था। खैर, हीरालाल देवपुरा को मिली सीएम की कुर्सी 17 दिन बाद यानी 10 मार्च 1985 को जा चुकी थी और इसी के साथ वह पूर्व मुख्यमंत्री बन चुके थे।

महाराणा की जर-जमीन पर जन्‍मे देवपुरा

हीरालाल देवपुरा का जन्म 12 अक्टूबर, 1925 को मेवाड़ के कुंभलगढ़ दुर्ग की तलहटी में बसे गांव केलवाड़ा में हुआ था। वीरों की धरती पर पले-बढे देवपुरा ने छात्र जीवन में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। आर्थिक तौर पर परिवार कमजोर था, लेकिन हीरालाल देवपुरा ने पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत की।

फिर साल 1967 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े और विधायक चुने गए। मोहनलाल सुखाड़िया ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया।

राजनीतिक सफर

इसके बाद हीरालाल देवपुरा ने साल 1972, 1980, 1985, 1990, 1998 के विधानसभा चुनाव जीते। साल 1985 में मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद उन्हें राजस्थान विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन उन्होंने सात महीने बाद ही इस्‍तीफा दे दिया था। इसके बाद वह कांग्रेस संगठन में जिला मंत्री से लेकर प्रदेश महामंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। 80 साल की उम्र में साल 2004 में उनका निधन हो गया।

महाराणा प्रताप के पिता को देवपुरा के पूर्वजों ने बचाया 

वीरांगना पन्ना धाय की निष्ठा और बलिदान की कहानी तो हम सबने पढ़ी ही है। 16वीं सदी में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह को राजा बनने से पहले बनवीर मार देना चाहता था। बालक उदय सिंह को बचाने के लिए पन्‍ना धाय ने अपने बेटे चंदन की बलि दे दी थी।

पन्‍ना धाय बालक उदय सिंह को लेकर कुंभलगढ़ के केलवाड़ा गांव पहुंची, जहां आशा शाह देवपुरा ने उन्‍हें अपने घर में छिपाया। पन्‍ना धाय और उदय सिंह को अपने घर में छिपाने वाले आशा शाह देवपुरा हीरालाल देवपुरा के पूर्वज थे।

यह भी पढ़ें - Rajasthan assembly elections: कहानी उस राजकुमारी की जो राजमहल से निकलकर दो बार मुख्यमंत्री निवास तक पहुंची

यह भी पढ़ें - Rajasthan elections 2023: क्रिकेटर का बेटा जिसे मंदिर के महंत ने पाला, 17 साल तक रहे राजस्थान के CM; शादी के विरोध में बंद था पूरा शहर

यह भी पढ़ें - Assembly Elections: 2018 में इन धुरंधरों की जब्‍त हुई जमानत, राजस्थान में वसुंधरा के चहेते मंत्री नहीं बचा पाए साख; MP में दिग्गजों का था ये हाल

(सोर्स: जागरण नेटवर्क की खबरें, वरिष्ठ पत्रकार विजय भंडारी की किताब 'राजस्थान की राजनीति सामंतवाद से जातिवाद के भंवर में' से साभार)