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Rajasthan election 2023: सात बार निर्दलीय विधायक रहे एक नेता की कहानी, जिसका पुलिस ने प्रचार करने के दौरान कर दिया था एनकाउंटर

Rajasthan Assembly election 2023 राजस्थान में सभी विधानसभा सीटों पर 25 नवंबर को वोटिंग होनी है। साल 1985 के विधानसभा का प्रचार अभियान जारी था। इस बीच पुलिस ने सात बार निर्दलीय विधायक रहे एक नेता की गोली मारकर हत्‍या कर दी थी। संभवत देश के इतिहास में यह पहली घटना थी जब किसी मौजूदा विधायक का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया था।

By Deepti MishraEdited By: Deepti MishraUpdated: Thu, 23 Nov 2023 08:38 AM (IST)
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Rajasthan Assembly election 2023: भरतपुर रिसासत के राजा मानसिंह की कहानी।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्‍ली। राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 25 नवंबर को वोटिंग होनी है। सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता प्रचार में जी-जान से जुटे हैं। अभी की तरह साल 1985 में भी राजस्थान में विधानसभा चुनाव थे और सभी राजनीतिक दल अपना-अपना प्रचार कर रहे थे। तभी एक ऐसी घटना हुई, जिसने राजस्थान की राजनीति में भूचाल ला दिया।

पुलिस ने सात बार निर्दलीय विधायक रहे एक नेता की गोली मारकर हत्‍या कर दी थी। संभवत: देश के इतिहास में यह पहली घटना थी, जब किसी मौजूदा विधायक का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया था।

कौन था वह नेता जिसका पुलिस ने दिन दहाड़े एनकाउंटर किया था? क्या हुआ था उस दिन? क्या पुलिस वालों पर कार्रवाई हुई? क्या उस विधायक के परिवार से अभी कोई राजनीति में हैं? पढ़िए, ऐसे ही कई सवालों के जवाब...

अंग्रेजों की नौकरी को धता बता राजनीति में आए

पुलिस ने 21 फरवरी, 1985 को जिस विधायक का एनकाउंटर किया था, वह कोई और नहीं, भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह थे। साल 1921 में जन्मे राजा मानसिंह बहुत ही स्वाभिमानी शख्स थे। साल 1942 में इंग्‍लैंड से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर स्वदेश लौटे। यहां ब्रिटिश सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट बन गए। उन दिनों भरतपुर में लोग देश के साथ-साथ रियासत का झंडा भी लगाया करते थे, लेकिन अंग्रेजों ने इसका विरोध किया तो वह ब्रिटिश फौज से भिड़ गए। नौकरी छोड़ दी।

कांग्रेस का साथ मंजूर नहीं...

साल 1947 में जब देश आजाद हो गया तो राजा मानसिंह भी राजनीति में आ गए, लेकिन उन्‍हें कांग्रेस में शामिल होना मंजूर नहीं था। इसलिए निर्दलीय चुनाव लड़े। वह डीग विधानसभा क्षेत्र से साल 1952 से लेकर 1984 तक सात बार निर्दलीय चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा पहुंचे।

राजा मानसिंह और कांग्रेस के बीच एक समझौता था, जिसके मुताबिक, कांग्रेस पार्टी चाहे तो उनके खिलाफ अपना उम्‍मीदवार चुनावी मैदान में उतार सकती है, लेकिन कोई बड़ा नेता प्रचार करने नहीं आएगा। साल 1977 की जेपी लहर और साल 1980 की इंदिरा लहर में भी वह चुनाव जीते थे।

सीएम ने तोड़ी डील तो छोड़नी पड़ी कुर्सी

साल 1985 की बात है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी और शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री थे। माथुर ने डीग सीट को शान का मुद्दा बना लिया। कांग्रेस ने राजा मानसिंह के सामने चुनावी मैदान में सेवानिवृत्त आईएएस ब्रिजेंद्र सिंह को उतारा था।

शिवचरण माथुर 20 फरवरी को कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने डीग पहुंचे। माथुर के पहुंचने से स्थानीय कांग्रेसी नेता बहुत खुश हुए और उन्होंने उत्साह में राजा मान सिंह के पोस्टर फाड़ डाले। माथुर का प्रचार के लिए डीग जाना राजा मानसिंह और कांग्रेस के किसी बड़े नेता को प्रचार के लिए न भेजने के समझौते के खिलाफ था।

MLA ने मुख्‍यमंत्री के हेलीकॉप्टर को मारी टक्कर

राजा मानसिंह कांग्रेस के वादाखिलाफी पर खफा हो गए। उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री की रैली से पहले ही मंच तुड़वा दिया। इसके बाद मानसिंह जीप (जोंगा) लेकर उस हेलीपैड पर पहुंचे, जहां माथुर का हेलीकॉप्टर आया था। गुस्से में आगबबूला हुए राजा मानसिंह ने हेलीपैड पर खड़े मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को कई बार टक्‍कर मारी। पायलट को कूदकर जान बचानी पड़ी। शिवचरण माथुर को सड़क के रास्ते से जयपुर लौटना पड़ा। ऐसा करके राजा मानसिंह ने सीधे सरकार को ललकारा था।

पायलट व आरएसी जवान विशंभर दयाल सैनी ने डीग थाने में आईपीसी की धारा 147,149, 307 427 के तहत एफआईआर कराई। पुलिस ने मानसिंह के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया, लेकिन उन्‍हें गिरफ्तार करने में विफल रही। अनहोनी की आशंका के चलते कर्फ्यू लगा दिया गया।

राजा मानसिंह की हत्‍या के दिन क्या हुआ था?

21 फरवरी, 1985 का दिन। राजा मानसिंह प्रचार के लिए निकले तो लोगों ने उन्‍हें मना किया कि कर्फ्यू लगा है, मत जाइए। उन्होंने जवाब दिया कि अपनी रियासत में डर कैसा। पुलिस ने अनाज मंडी में राजा मानसिंह को हाथ से रुकने का इशारा किया। जब राजा मानसिंह अपनी जीप (जोंगा) बैक करने लगे तभी पुलिस ने फायरिंग कर दी। इस फायरिंग में राजा मानसिंह, उनके साथी सुमेर सिंह और हरिसिंह की गोली लगने से जान चली गई।

हालांकि, राजा मानसिंह के परिजनों का कहना है कि वह प्रचार करने नहीं, आत्मसमर्पण करने जा रहे थे। बाद में राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने 18 लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया था।

24 घंटे में सीएम को देना पड़ा इस्‍तीफा

राजा मानसिंह की हत्‍या के बाद भरतपुर जल उठा था। 24 घंटे बाद ही मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को इस्‍तीफा देना पड़ा था। हीरालाल देवपुरा को सीएम की कुर्सी मिली।

35 साल बाद आया फैसला

सीबीआई को जांच सौंपी गई। इस मामले की सुनवाई के दौरान 1700 से अधिक तारीखें पड़ी और 25 जिला जज बदल गए। साल 1990 में इस मामले को मथुरा जिला जज की अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया। दोनों पक्ष से कुल 78 लोगों ने गवाही दी। करीब 1000 से ज्यादा दस्‍तावेज पेश किए गए। आठ बार फाइनल बहस हो चुकी थी।

मथुरा जिला हाईकोर्ट ने 35 साल पुराने बहुचर्चित राजा मानसिंह हत्याकांड में साल 2020 में 11 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। तीन आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि तीन आरोपी- नेकीराम, सीताराम और कुलदीप की मौत हो चुकी थी। एक आरोपी महेंद्र सिंह को पहले ही रिहा कर दिया था।

बेटी वसुंधरा सरकार में रही मंत्री

राजा मानसिंह की बेटी कृष्णेंद्र कौर उर्फ दीपा साल 1985 में विधानसभा की सदस्य बनीं। इसके बाद 1990 के चुनाव में भी जीतीं। साल 1991 के लोकसभा चुनाव में भी भरतपुर से सांसद चुनी गईं। इसके बाद 2004, 2009 और 2014 में विधायक चुनी गईं। इस साल वह चुनाव में खड़ी नहीं हुई हैं। कृष्णेंद्र कौर वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं।

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(सोर्स: जागरण नेटवर्क की खबरें, वरिष्ठ पत्रकार विजय भंडारी की किताब 'राजस्थान की राजनीति सामंतवाद से जातिवाद के भंवर में' से साभार)