Rajasthan Polls: छोटी पार्टियां और बागी कांग्रेस-भाजपा दोनों की बढ़ा रहे सिरदर्दी, बदल रहे सियासी समीकरण
राजस्थान विधानसभा के चुनाव में वैसे तो तीसरे विकल्प की गुंजाइश अब भी नहीं है मगर जातीय समीकरणों पर आधारित छोटी पार्टियों के साथ बागी उम्मीदवार कांग्रेस और भाजपा दोनों की चुनावी सिरदर्दी बढ़ाते नजर आ रहे हैं। हनुमान बेनीवाल जहां जाट बिरादरी का कार्ड खेल रहे। वहीं चंद्रशेखर की आसपा अब खुद को बसपा की जगह दलित समाज की उभरती सियासी छतरी के रूप में पेश कर रही है।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Fri, 17 Nov 2023 06:56 PM (IST)
संजय मिश्र, सवाई माधोपुर। राजस्थान विधानसभा के चुनाव में वैसे तो तीसरे विकल्प की गुंजाइश अब भी नहीं है, मगर जातीय समीकरणों पर आधारित छोटी पार्टियों के साथ बागी उम्मीदवार सत्ताधारी कांग्रेस और भाजपा दोनों की चुनावी सिरदर्दी बढ़ाते नजर आ रहे हैं।
सत्ता सियासत की होड़ में शामिल दोनों पार्टियां चाहे जैसा भी दावा करें पर कोई एकतरफा चुनावी बयार जैसी सूरत अभी तक दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में राजस्थान के चुनावी मुकाबले में बागियों के साथ छोटी पार्टियों के वोट काटने का असर चुनावी करवट की दशा-दिशा तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है। इस लिहाज से हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (ASP) के जातीय समीकरणों का नया प्रयोग राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा दोनों को कई पॉकेट में परेशान कर रहा है।
सूबे में सामाजिक समीकरणों के इस नए प्रयोग की झलक पूर्वी हरियाणा से सटे पूर्वी राजस्थान के इलाके से शुरू होकर जाट बहुल शेखावटी इलाके के चुनावी परिदृश्य में साफ नजर आ रही है। अलवर जिले की तिजारा, किशनगढ़, रामगढ़ सीट से लेकर दौसा, करौली, सवाई माधोपुर, भरतपुर, धौलपुर जैसे पूर्वी राजस्थान के जिलों में कई सीटों पर आसपा के प्रत्याशी कांग्रेस और भाजपा की परेशानी का सबब बन रहे हैं।
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मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में जुटी RLP-ASP
हनुमान बेनीवाल जहां अपनी जाट बिरादरी का कार्ड खेल रहे। वहीं, चंद्रशेखर की आसपा अब खुद को बसपा की जगह दलित समाज की उभरती सियासी छतरी के रूप में पेश कर रही है। इन दोनों पार्टियों का गठबंधन वैसे तो सवा सौ से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रहा, मगर करीब 60 सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहा है।चुनाव नतीजों में यह गठबंधन कितना दम दिखाएगा इसको लेकर इनके नेता-कार्यकर्ता सिर्फ उम्मीद के सहारे हैं, लेकिन सत्ता की दावेदारी में शामिल दोनों पार्टियों के चुनावी गणित को कई जगह फिलहाल प्रभावित जरूर कर रहे हैं।अलवर जिले की तिजारा सीट इसका उदाहरण है, जो भाजपा सांसद बाबा बालकनाथ के चुनाव लड़ने के चलते सूबे की सबसे चर्चित सीटों में शामिल हैं। भाजपा के यहां ध्रुवीकरण के प्रयासों में कोई एक अड़चन है तो वह आसपा के उम्मीदवार उद्यमी पोषवाल हैं, जो दलित वर्ग से आते हैं।
इसी तरह जिले की किशनगढ़ बास में कांग्रेस को छोड़कर निमरत कौर, रामगढ़ में भाजपा छोड़ सुखवंत सिंह जैसे स्थानीय प्रभावी चेहरे आसपा के टिकट पर मैदान में हैं। पूर्वी राजस्थान की अधिकांश सीटों पर कमोबेश यही स्थिति है।