'ये लीजिए, अब नए सीएम के नाम का प्रस्ताव दीजिए' राजनाथ ने जब पर्ची वसुंधरा को सौंपी; पढ़ते ही उतर गया था राजे का चेहरा
भाजपा ( Rajasthan CM ) की विधायक दल की बैठक में राजनाथ ( Rajnath Singh ) ने वसुंधरा को अपने पास वाली कुर्सी पर बिठाया था। राजनाथ ने अपनी जेब से पर्ची निकाल कर वसुंधरा को सौंपी। वसुंधरा ने जैसे ही पर्ची खोली तो उनके चेहरा उतर गया। पर्ची में भजनलाल का सीएमदीया कुमारी व प्रेमचंद बैरवा का उप मुख्यमंत्री और वासुदेव देवनानी का नाम विधानसभा अध्यक्ष के लिए था।
By Jagran NewsEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Tue, 12 Dec 2023 10:14 PM (IST)
जागरण संवाददाता, जयपुर। भाजपा ने मंगलवार को राजस्थान के नए मुख्यमंत्री के लिए भजनलाल शर्मा के नाम की घोषणा की है। उनके साथ दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को उप मुख्यमंत्री बनाया गया है। राजस्थान में मुख्यमंत्री का चयन करना छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के मुकाबले काफी जटिल माना जा रहा था। चुनाव परिणाम आने के बाद जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पक्ष में विधायकों की लाबिंग हो रही थी।
चुनाव जीतने वाले विधायक निर्वाचित होने के बाद कई विधायक प्रमाण पत्र लेने के बाद सीधे वसुंधरा से मिलने उनके जयपुर स्थित आवास पर पहुंच रहे थे उससे सीएम चेहरे का चयन जटिल होता नजर आ रहा था। ऐसे में पार्टी नेतृत्व ने पर्यवेक्षकों के जरिए जटिल मसले को सुलझाने का प्रयास किया। मुख्यमंत्री पद को लेकर उलझे मसले को सुलझाने के लिए पार्टी नेतृत्व ने केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर नेता को पर्यवेक्षक बनाया। पार्टी नेतृत्व को विश्वास था कि राजनाथ ही वसुंधरा को साध सकते हैं।
कमान संभालने वाले नेताओं की बढ़ गई थी चिंता
वसुंधरा के समर्थन में कुछ विधायकों की बयानबाजी से प्रदेश में चुनाव की कमान संभालने वाले नेताओं की चिंता बढ़ी थी। लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजनाथ को पर्यवेक्षक बनाकर नए चेहरे को सीएम बनाए जाने की योजना को मृर्ति रूप दिया। राजनाथ को संगठन,आरएसएस और सरकार तीनों का अनुभव होना भी इस मसले को सुलझाने में महत्वपूर्ण रहा है। राजनाथ के साथ वरिष्ठ नेता विनोद तावड़े और राज्यसभा सांसद सरोड़ पांडे को लगाया गया।वसुंधरा को साधने का राजनाथ को पुराना अनुभव
साल, 2008 के अंत में राजनाथ सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। राष्ट्रीय नेतृत्व उस समय ओमप्रकाश माथुर को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता था। इसके लिए राजनाथ ने तत्कालीन सीएम वसुंधरा को संदेश भेजा। खुद ने फोन भी किया। लेकिन वसुंधरा ने राजनाथ से फोन पर बात ही नहीं की थी। इस पर राजनाथ नाराज हुए और बिना वसुंधरा की सहमति के माथुर के नाम की घोषणा कर दी थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा विपक्ष में आ गई और कांग्रेस की सरकार बन गई।2009 में लोकसभा चुनाव हुए तो प्रदेश की 25 सीटों में से भाजपा को केवल चार सीटें मिली थी। कमजोर प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए माथुर और संगठन महामंत्री प्रकाशचंद्र ने राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर इस्तीफा दे दिया था। लेकिन वसुंधरा ने नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। राजनाथ नहीं माने तो वसुंधरा ने 15 अगस्त,2009 को 57 विधायकों के साथ दिल्ली पहुंच गई थी। अक्टूबर में जानकारी सामने आई कि वसुंधरा ने इस्तीफा दे दिया,लेकिन तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह शेखावत को मिला ही नहीं था। फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया।