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Telangana Election Results: सत्ताविरोधी लहर में बीआरएस धराशायी, बहुमत का आंकड़ा पार करने में कांग्रेस सफल

Telangana Election Results 2023 तेलंगाना में सत्ता विरोधी लहर में बीआरएस पूरी तरह से धराशायी हो गई। साल 2018 की तुलना में न सिर्फ उसकी सीटें आधी से भी कम रह गईं बल्कि वोट प्रतिशत में भी लगभग 10 फीसद की गिरावट आई है। वहीं मुस्लिम वोट के सहारे कांग्रेस 63 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार करने में सफल रही।

By Jagran NewsEdited By: Abhinav AtreyUpdated: Sun, 03 Dec 2023 08:36 PM (IST)
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सत्ताविरोधी लहर में बीआरएस हुई धराशायी, कांग्रेस की जीत (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। तेलंगाना में सत्ता विरोधी लहर में बीआरएस पूरी तरह से धराशायी हो गई। साल 2018 की तुलना में न सिर्फ उसकी सीटें आधी से भी कम रह गईं, बल्कि वोट प्रतिशत में भी लगभग 10 फीसद की गिरावट आई है। वहीं, मुस्लिम वोट के सहारे कांग्रेस 63 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार करने में सफल रही।

बीआरएस की पहले से चल रही लोकलुभावन योजनाओं की तुलना में इस बार मतदाताओं ने कांग्रेस की मुफ्त रेवडि़यों की गारंटी को ज्यादा पसंद किया। भाजपा भले ही बहुत पीछे तीसरे नंबर पर आई, लेकिन पिछली बार की तुलना में उसका वोट प्रतिशत दोगुना हो गया और सीटें एक से बढ़कर आठ हो गईं। 2018 में बीआरएस लगभग 47 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 88 सीटें जीती थी।

बहुमत के आंकड़े से आगे पहुंची कांग्रेस

वहीं, कांग्रेस लगभग 28 फीसद वोट के साथ ही 19 सीटें ही जीत पाई थी। इस बार कांग्रेस बाजी पलटने में सफल रही और 39 फीसद से अधिक वोट शेयर के साथ 64 सीटों पर पहुंच गई, जो बहुमत के आंकड़े से तीन अधिक है। कांग्रेस की इस जीत में मुस्लिम वोटों की अहम भूमिका रही। अभी तक बीआरएस के साथ रहा मुस्लिम वोटबैंक पहली बार दरका और कांग्रेस इसका बड़ा हिस्सा अपने साथ करने में सफल रही।

मुस्लिम वोटों का कांग्रेस के पक्ष में आना अहम

माना जा रहा है कि कांग्रेस की जीत के पीछे मुस्लिम वोटों का उसके पक्ष में धुव्रीकरण अहम वजह है। इस साल के शुरूआत तेलंगाना में कांग्रेस की स्थिति को देखते हुए इस जीत को बड़ी माना जा रहा है। 2020 के हैदराबाद नगर निकाय चुनाव के बाद से ही भाजपा खुद को बीआरएस को चुनौती देने वाली पार्टी के रूप में अपने आप को सामने लाने की कोशिश कर रही थी।

कांग्रेस नेता पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामने लगे

भाजपा के तेजी से बढ़ते ग्राफ को देखते हुए राज्य कांग्रेस के बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे थे। कर्नाटक में कांग्रेस को मिली भारी जीत के बाद पार्टी नेताओं का मनोबल मजबूत हुआ। बूथ स्तर पर मजबूत संगठन के सहारे कांग्रेस पिछले छह महीने में सत्ताविरोधी वोटों को अपने पक्ष में करने में सफल रही। इसमें कांग्रेस तेलंगाना के अध्यक्ष रेमंत रेड्डी की अहम भूमिका रही।

तेलंगाना में भाजपा को संगठन मजबूत करना होगा

वहीं, पश्चिम बंगाल के बाद तेलंगाना में एक फिर साबित हो गया कि भाजपा को बड़े नेताओं की लोकप्रियता को वोट में तब्दील करने के लिए संगठन को मजबूत करना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के रोडशो और रैलियों के बावजूद संगठन की कमजोरी के कारण मतदाताओं तक पहुंचने में विफल रही।

2018 से तुलना में भाजपा का प्रदर्शन काफी बेहतर

वैसे 2018 से तुलना करें तो भाजपा का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा है। पहली बार अकेले विधानसभा चुनाव में उतरी भाजपा सात फीसद वोट के साथ एक सीट जीतने में सफल रही थी। इस बार उसे लगभग 14 फीसद वोट मिले हैं और सीटें की संख्या आठ पहुंच गई है। इससे आगामी लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।

दिलचस्प हो सकता है लोकसभा चुनाव

साल 2018 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने वाली भाजपा लोकसभा चार सीट जीतने में सफल रही थी और उसका वोट प्रतिशत सात से बढ़ 19.5 हो गया था। जबकि, कांग्रेस 24 फीसद से अधिक वोट के बावजूद तीन सीटें जीतने में ही सफल हो पाई थी। बीआरएस का ग्राफ गिरने के बाद लोकसभा में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होने की संभावना है।

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